क्या डीबी देवधर भारतीय क्रिकेट के ग्रैंड ओल्ड मैन हैं?

सारांश
Key Takeaways
- डीबी देवधर का जन्म 14 जनवरी 1982 को हुआ था।
- उन्होंने रणजी ट्रॉफी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- डीबी देवधर ने 4,522 रन बनाए और 9 शतक जड़े।
- वे 1965 में 'पद्म श्री' और 1991 में 'पद्म भूषण' से सम्मानित हुए।
- उनका जीवन और योगदान आज भी प्रेरणा का स्रोत है।
नई दिल्ली, 23 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। डीबी देवधर को 'भारतीय क्रिकेट का ग्रैंड ओल्ड मैन' माना जाता है। उन्होंने भारतीय क्रिकेट को एक मजबूत आधार प्रदान किया और रणजी ट्रॉफी के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
दिनकर बलवंत देवधर, जिनका जन्म 14 जनवरी 1982 को पूना में हुआ, एसपी कॉलेज में संस्कृत के प्रोफेसर थे और उन्हें क्रिकेट का भी शौक था। देवधर ने 1911/12 में अपने फर्स्ट क्लास करियर की शुरुआत की।
उन्हें 1930 के दशक में महाराष्ट्र को एक प्रमुख प्रथम श्रेणी टीम के रूप में स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है।
देवधर जितने आक्रामक बल्लेबाज थे, उतने ही सरल कप्तान भी थे। उन्होंने 1939 से 1941 तक महाराष्ट्र रणजी टीम की कप्तानी की।
जब भारत ने 1932 में अपना पहला टेस्ट मैच खेला, तब देवधर देश के दिग्गज बल्लेबाजों में से एक थे, पर उनकी उम्र 40 साल हो चुकी थी। इस कारण उन्हें भारतीय टीम के लिए 'पुराना' माना गया और वह कभी भी टीम इंडिया का हिस्सा नहीं बन सके।
सीके नायडू की कप्तानी वाली टीम ने जिस साल टेस्ट क्रिकेट में कदम रखा, उस टीम के आइडल डीबी देवधर थे।
हालांकि 40 की उम्र में उन्हें नजरअंदाज किया गया, लेकिन 49 की उम्र में उन्होंने 246 रन की पारी खेलकर अपने आलोचकों को करारा जवाब दिया।
डीबी देवधर ने 1947/48 तक फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेला। इस दौरान उन्होंने 81 मैचों में 133 पारियों में 39.32 की औसत से 4,522 रन बनाए, जिसमें 9 शतक और 10 अर्धशतक शामिल हैं। इसके साथ ही उन्होंने 11 विकेट भी लिए।
करीब 50 की उम्र में भी देवधर ने फिटनेस में युवा खिलाड़ियों को पीछे छोड़ दिया।
क्रिकेट से रिटायरमेंट के बाद, उन्होंने पत्रकार के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। 1946 में जब टीम इंडिया इंग्लैंड के दौरे पर गई, तो देवधर खेल पत्रकार के रूप में वहां मौजूद थे। 1947 में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर भी देवधर वहां थे।
घरेलू क्रिकेट में उनके उत्कृष्ट योगदान को देखते हुए 1973 में 'डीबी देवधर ट्रॉफी' की शुरुआत की गई।
देवधर ने क्रिकेट प्रशासक के रूप में भी कार्य किया। वह बीसीसीआई के उपाध्यक्ष के रूप में कार्यरत रहे और महाराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष भी बने। उन्होंने राष्ट्रीय चयनकर्ता का पद भी संभाला।
1965 में उन्हें 'पद्म श्री' और 1991 में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया। 24 अगस्त 1993 को 101 वर्ष की आयु में भारत के इस महान बल्लेबाज ने दुनिया को अलविदा कहा।