क्या गौतम गंभीर को दिल्ली हाई कोर्ट से राहत मिली?
सारांश
Key Takeaways
- गौतम गंभीर को दिल्ली हाई कोर्ट से राहत मिली।
- कोविड-19 के दौरान दवाओं के भंडारण के आरोप खारिज हुए।
- कोर्ट ने ठोस साक्ष्य की कमी पर निर्णय लिया।
- इस मामले में कई महत्वपूर्ण व्यक्ति शामिल थे।
- अदालत का फैसला न्याय प्रणाली पर विश्वास को मजबूत करता है।
नई दिल्ली, 21 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम के हेड कोच और पूर्व सांसद गौतम गंभीर को दिल्ली हाईकोर्ट से एक महत्वपूर्ण राहत मिली है। शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने गौतम गंभीर, उनके एक संगठन और अन्य के खिलाफ कोविड-19 महामारी के दौरान दवाओं के कथित भंडारण और बिना लाइसेंस वितरण के मामले को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि जांच में ऐसा कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिला, जिससे यह साबित हो सके कि गंभीर या उनके फाउंडेशन ने किसी भी तरह से दवाओं का अनुचित लाभ उठाया या अवैध तरीके से वितरण किया है।
जस्टिस नीना बसंल कृष्णा ने अपने आदेश में कहा, "आपराधिक शिकायत रद्द की जाती है।"
आम आदमी पार्टी (आप) की तत्कालीन दिल्ली सरकार के औषधि नियंत्रण विभाग ने पूर्वी दिल्ली के तत्कालीन सांसद गौतम गंभीर, उनके एनजीओ, फाउंडेशन की सीईओ अपराजिता सिंह, गौतम गंभीर की मां सीमा गंभीर और पत्नी नताशा के खिलाफ औषधि एवं कॉस्मेटिक्स अधिनियम की धारा 18(सी) के साथ धारा 27 (बी) (2) के तहत शिकायत दर्ज की थी।
औषधि एवं कॉस्मेटिक्स अधिनियम की धारा 18(सी) बिना लाइसेंस दवाओं के निर्माण, बिक्री या वितरण को प्रतिबंधित करती है, जबकि 27(बी) (2) में बगैर लाइसेंस दवा वितरण पर 3-5 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
इस मामले में पूर्व सांसद गौतम गंभीर के अलावा, नताशा गंभीर, सीमा गंभीर और अपराजिता सिंह को भी नोटिस भेजा गया था। सितंबर 2021 में हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाई थी। इसके बाद दलीलों का दौर चलता रहा और अप्रैल 2024 में अदालत ने यह स्थगन हटा लिया।
ड्रग कंट्रोल विभाग ने आपत्ति जताई थी कि गौतम गंभीर को सीधे हाईकोर्ट नहीं, बल्कि पहले सेशन कोर्ट जाना चाहिए था। इसके साथ ही तर्क था कि फाउंडेशन ने यह स्वीकारा है कि दवाएं बिना लाइसेंस के बांटी गईं, लेकिन बेची नहीं गईं। हालांकि, अदालत ने इन सभी तर्कों को दरकिनार किया और शिकायत खारिज कर दी।