क्या इम्तियाज अनीस ओलंपिक में स्पर्धा समाप्त करने वाले एकमात्र घुड़सवार हैं?
सारांश
Key Takeaways
- घुड़सवारी का इतिहास भारत में प्राचीन है।
- इम्तियाज अनीस ने ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
- उन्होंने 1998 के एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीता।
- उनकी आत्मकथा प्रेरणा का स्रोत है।
- वे युवा घुड़सवारों को प्रशिक्षित करते हैं।
नई दिल्ली, 24 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत में घुड़सवारी की परंपरा बहुत पुरानी है। हमारे इतिहास में कई किस्से हैं जिनमें योद्धाओं ने अपनी घुड़सवारी के कौशल से युद्ध में विजय प्राप्त की है। समय के साथ, यह कला एक महत्वपूर्ण खेल की शक्ल ले चुकी है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता पा चुकी है। भारतीय घुड़सवारी में इम्तियाज अनीस का नाम एक विशेष सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होंने ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया है।
इम्तियाज अनीस का जन्म 25 दिसंबर 1970 को हुआ। उनके परिवार में घुड़सवारी का शौक था, जिससे उनका लगाव बचपन से ही था। जैसे-जैसे वे बड़े हुए, उनका यह लगाव और भी गहरा होता गया। एक साधारण पृष्ठभूमि से आने के बावजूद, उन्होंने इस खेल में अद्वितीय सफलताएँ हासिल की। उन्होंने चार साल की उम्र में घोड़े की सवारी शुरू की और छह साल की उम्र में अपनी पहली प्रतियोगिता जीत ली।
1998 में बैंकॉक एशियाई खेलों में उन्होंने टीम ड्रेसेज में कांस्य पदक जीता, जो उनके करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसके बाद, 2000 के सिडनी ओलंपिक में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया और इवेंटिंग स्पर्धा में 23वें स्थान पर रहे। यह उपलब्धि इसलिए खास है क्योंकि वे दूसरे भारतीय घुड़सवार हैं जिन्होंने ओलंपिक में भाग लिया और स्पर्धा समाप्त करने वाले एकमात्र हैं।
ओलंपिक के बाद, इम्तियाज ने अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में उच्च स्तरीय घुड़सवारी प्रशिक्षण लिया और प्रतियोगिताओं में भाग लिया। वे ईक्वेस्ट्रियन ऑस्ट्रेलिया के लेवल 2 कोच और कोच प्रशिक्षक हैं। इम्तियाज अनीस ने गुजरात के नरगोल में सीहॉर्स ईक्वेस्ट्रियन प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की है, जहाँ घुड़सवारी से जुड़ी सभी विधाओं का प्रशिक्षण दिया जाता है। इस केंद्र पर वे युवा घुड़सवारों को प्रशिक्षित करते हैं और इंटर्नशिप कार्यक्रम चलाते हैं।
इम्तियाज अनीस ने अपनी यात्रा को अपनी आत्मकथा 'राइडिंग फ्री: माय ओलंपिक जर्नी' में समेटा है, जो उन्होंने 2021 में लिखी थी।