क्या जॉन राइट की कोचिंग ने टीम इंडिया का खेल बदल दिया?

सारांश
Key Takeaways
- जॉन राइट ने भारतीय क्रिकेट को नई दिशा दी।
- उनकी कोचिंग में भारत ने २००३ वनडे विश्व कप फाइनल तक पहुंचा।
- सौरव गांगुली की कप्तानी में आक्रामकता को बढ़ावा मिला।
- राइट ने खिलाड़ियों को आज़ादी दी और खुलकर खेलने की छूट दी।
- उनकी रणनीतियों ने भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफल बनाया।
नई दिल्ली, ४ जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। न्यूजीलैंड के पूर्व बल्लेबाज जॉन राइट भारतीय क्रिकेट में एक महत्वपूर्ण नाम माने जाते हैं। २००० से २००५ तक पहले विदेशी हेड कोच के रूप में उन्होंने भारतीय टीम को एक नई दिशा दी। उनके कार्यकाल में भारत ने विदेशी धरती पर जीत का सफर शुरू किया। २००३ वनडे विश्व कप में भारत का फाइनल तक पहुंचना उनकी कोचिंग का सबसे यादगार लम्हा माना जाता है।
यह समय सौरव गांगुली की आक्रामक कप्तानी और टीम इंडिया की नई सोच का प्रतीक है। राइट की रणनीति और खिलाड़ियों को आज़ादी देने के दृष्टिकोण ने इस सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने खिलाड़ियों से १०० प्रतिशत प्रदर्शन की उम्मीद की और उन्हें खुलकर खेलने की छूट दी। इस अवधि में युवराज सिंह, मोहम्मद कैफ जैसी अद्वितीय प्रतिभाओं को अवसर मिले और भारतीय टीम का फील्डिंग स्तर भी ऊंचा हुआ। राइट के मार्गदर्शन में भारत ने २००१ में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ऐतिहासिक घरेलू टेस्ट सीरीज जीती और २००२ में नेटवेस्ट ट्रॉफी भी हासिल की। राइट की सादगी और खिलाड़ियों के साथ गहरा तालमेल आज भी भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के लिए सम्मान का विषय है।
५ जुलाई को इस महान खिलाड़ी और कोच का जन्मदिन है। न्यूजीलैंड के इस पूर्व खिलाड़ी के क्रिकेट करियर के आंकड़े इस प्रकार हैं- टेस्ट: ८२ मैच, १४८ पारियां, ५३३४ रन, १८५ उच्चतम स्कोर, १२ शतक, २३ अर्धशतक।
वनडे में १४९ मैच, १४८ पारियां, ३८९१ रन, १०१ उच्चतम स्कोर, १ शतक, २४ अर्धशतक। जॉन १९८० के दशक की न्यूजीलैंड क्रिकेट टीम का अभिन्न हिस्सा थे।
भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के बीच वह एक बेहतरीन कोच के रूप में जाने जाते हैं। राइट के कार्यकाल के बाद ग्रेग चैपल और अनिल कुंबले जैसे बड़े नाम भी विवादों में रहे। राइट ने खिलाड़ियों की प्रोफाइल को ऊंचा करने के लिए लो-प्रोफाइल रहकर योगदान दिया। विनम्र और मैन-मैनेजर राइट खिलाड़ियों के साथ बेहतर संबंध स्थापित करने में कुशल थे। उन्होंने भारतीय क्रिकेट की संस्कृति और सिस्टम को समझने में समय लगाया।
राइट ने सौरव गांगुली, सचिन तेंदुलकर, वीवीएस लक्ष्मण, राहुल द्रविड़, अनिल कुंबले जैसे सीनियर खिलाड़ियों को स्वतंत्रता दी और बिना दबाव के प्रदर्शन करने का माहौल बनाया। यह उनकी कोचिंग की एक बड़ी ताकत थी। उनकी यह रणनीति २००३ विश्व कप और २००१ की ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ घरेलू टेस्ट सीरीज जीत में स्पष्ट रूप से दिखाई दी। उन्होंने स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप रणनीति बनाई, जिससे विदेशी धरती पर भारत का प्रदर्शन बेहतर हुआ।
राइट ने विवादों और मीडिया से उचित दूरी बनाए रखी। उन्होंने हेड कोच के पद को प्रतिष्ठित और प्रोफेशनल बनाया। वह टीम इंडिया के पहले विदेशी हेड कोच थे। इसके बाद भारतीय क्रिकेट में विदेशी कोचों का युग शुरू हुआ। लेकिन यह दौर कई मामलों में उथल-पुथल भरा रहा। ग्रेग चैपल का कार्यकाल सबसे विवादास्पद रहा, जिसमें सौरव गांगुली को कप्तानी और टीम से हटा दिया गया, और अन्य वरिष्ठ खिलाड़ियों के साथ विवाद उत्पन्न हुए।
टीम इंडिया में कोचिंग की जटिलता को इस बात से समझा जा सकता है कि गैरी कर्स्टन को छोड़कर कई कोचों का कार्यकाल उतना सहज नहीं रहा। यहां तक कि अनिल कुंबले को भी भारतीय खिलाड़ियों के साथ तालमेल बैठाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
यह सब चीजें बतौर कोच जॉन राइट के व्यक्तित्व और नेतृत्व की क्षमता को दर्शाती हैं। कोचिंग कार्यकाल के बाद उन्होंने कहा कि भारतीय क्रिकेट में असीम संभावनाएं हैं, और सही मार्गदर्शन, स्वतंत्रता और एकता के साथ यह टीम विश्व क्रिकेट पर राज कर सकती है। उनकी कोचिंग ने भारत को एक आक्रामक और आत्मविश्वास से भरी टीम में बदलने की नींव रखी, जिसका प्रभाव बाद के वर्षों में, विशेषकर विश्व कप जीत में देखा गया। भारत ने २००७ में टी-20 विश्व कप और २०११ में विश्व कप पर कब्जा किया था।