क्या जूडो: जापानी मार्शल आर्ट, सैन्य कैंप से ओलंपिक मंच तक पहुंचा?

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क्या जूडो: जापानी मार्शल आर्ट, सैन्य कैंप से ओलंपिक मंच तक पहुंचा?

सारांश

जूडो, एक प्रसिद्ध जापानी मार्शल आर्ट, ने सैन्य कैंप से ओलंपिक तक का सफर तय किया है। इसके संस्थापक जिगोरो कानो ने इसे तकनीक, संतुलन और आत्मरक्षा के लिए विकसित किया। आज यह खेल न केवल पुरुषों, बल्कि महिलाओं के लिए भी लोकप्रिय है। जानें इसके इतिहास और विकास के बारे में।

Key Takeaways

  • जूडो एक जापानी मार्शल आर्ट है जो तकनीक पर आधारित है।
  • जूडो के खिलाड़ियों को जूडोका कहा जाता है।
  • इस खेल में अनुशासन और मानसिक मजबूती का विकास होता है।
  • जूडो ने ओलंपिक में अपनी पहचान बनाई है।
  • भारत में जूडो की प्रगति हो रही है।

नई दिल्ली, 21 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। जापानी मार्शल आर्ट ‘जूडो’ की नींव जिगोरो कानो ने रखी थी। जिगोरो ने पारंपरिक युद्ध विधियों से प्रेरणा लेकर इस खेल का निर्माण किया। यह खेल आत्मरक्षा, अनुशासन और मानसिक दृढ़ता को विकसित करने में सहायक है। इसमें ताकत से अधिक तकनीक, संतुलन और प्रतिद्वंद्वी की ऊर्जा का सही उपयोग सिखाया जाता है।

शुरुआत में इसे आत्मरक्षा की विधि के रूप में देखा जाता था, लेकिन समय के साथ इसे शैक्षिक मूल्य और शारीरिक एवं चरित्र विकास के लिए मान्यता मिलने लगी।

20वीं सदी की शुरुआत में, पश्चिमी देशों ने जूडो में रुचि दिखाई। कई देशों में इसे शैक्षणिक पाठ्यक्रम में शामिल किया गया और यह खेल संगीत हॉल, सर्कस और मेलों में भी देखने को मिला।

अमेरिका और अन्य देशों में, जूडो पहले सैन्य और पुलिस प्रशिक्षण केंद्रों में प्रसिद्ध हुआ, जिसके बाद इसे फिटनेस सेंटर्स में भी पढ़ाया जाने लगा। कुछ समय बाद, केवल पुरुष ही नहीं, बल्कि महिलाएं भी इस कला का अभ्यास करने लगीं।

1964 के टोक्यो ओलंपिक में जूडो ने अपने खेलों के महाकुंभ में प्रवेश किया, परंतु अगले ओलंपिक से इसे बाहर कर दिया गया। फिर, 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में इस खेल की वापसी हुई। तब से जूडो ओलंपिक का स्थायी हिस्सा बना हुआ है। 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में महिलाओं के लिए भी इस खेल की शुरुआत की गई।

जूडो के खिलाड़ियों को ‘जूडोका’ कहा जाता है, जबकि प्रशिक्षक को ‘सेंसेई’ कहा जाता है। खिलाड़ी ‘जुडोगी’ पहनकर प्रतिस्पर्धा करते हैं। ‘जुडोगी’ शब्द ‘जूडो’ (जूडो) और ‘गी’ (वर्दी) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है ‘जूडो की वर्दी’

इस खेल में थ्रो, होल्ड और सबमिशन के लिए अंक प्रदान किए जाते हैं। जूडोका अपने प्रतिद्वंद्वी को बल से जमीन पर गिराने या समय के भीतर उस पर दबाव बनाए रखने का प्रयास करता है।

ओलंपिक में 7 वजन वर्गों में होने वाले इस खेल में पुरुषों के क्वालीफाइंग राउंड में 4 मिनट, जबकि सेमीफाइनल और फाइनल में 5 मिनट का समय दिया जाता है। वहीं, महिलाओं के लिए सभी राउंड मैच में 4 मिनट का समय निर्धारित है। अगर कोई मुकाबला टाई रहता है, तो अतिरिक्त समय दिया जाता है, जहां पहला अंक या पेनाल्टी हासिल करने वाला जूडोका जीतता है।

भारत में जूडो धीरे-धीरे उन्नति कर रहा है और कई युवा तथा वरिष्ठ खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। भारत ने इस खेल में विश्व जूनियर रैंकिंग, एशियाई चैंपियनशिप और जूनियर वर्ल्ड लेवल पर उत्कृष्टता दिखाई है।

उम्मीद है कि प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की पहचान करते हुए विश्व स्तरीय कोचिंग, अंतरराष्ट्रीय मंचों और विश्व रैंकिंग में सुधार के साथ भारत भविष्य में इस खेल में ओलंपिक पदक जीत सकता है।

Point of View

जो कि एक जापानी मार्शल आर्ट है, न केवल आत्मरक्षा का एक माध्यम है, बल्कि यह अनुशासन और मानसिक विकास का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत में जूडो की बढ़ती लोकप्रियता इस खेल को एक नई दिशा दे रही है। यह आवश्यक है कि हमारे युवा इस खेल में आगे बढ़ें और देश का नाम रोशन करें।
NationPress
21/12/2025

Frequently Asked Questions

जूडो किसने स्थापित किया?
जूडो की स्थापना जिगोरो कानो ने की थी।
जूडो में खिलाड़ियों को क्या कहा जाता है?
जूडो के खिलाड़ियों को 'जूडोका' कहा जाता है।
ओलंपिक में जूडो कब शामिल हुआ?
जूडो ने 1964 के टोक्यो ओलंपिक में अपने खेलों के महाकुंभ में प्रवेश किया।
भारत में जूडो की स्थिति क्या है?
भारत में जूडो धीरे-धीरे उन्नति कर रहा है और कई युवा एवं वरिष्ठ खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं।
जूडो में अंक कैसे दिए जाते हैं?
जूडो में थ्रो, होल्ड और सबमिशन के लिए अंक प्रदान किए जाते हैं।
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