क्या विजेंदर सिंह ने नौकरी के पीछे भागते हुए ओलंपिक मेडलिस्ट बनने का सफर तय किया?
सारांश
Key Takeaways
- विजेंदर सिंह का सफर प्रेरणादायक है।
- उन्होंने ओलंपिक मेडल जीतने के लिए मेहनत की।
- सरकारी नौकरी पाने के लिए उन्होंने मुक्केबाजी शुरू की।
- विजेंदर ने कई पुरस्कार जीते हैं।
- उनका संघर्ष युवाओं को प्रेरित करता है।
नई दिल्ली, 28 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। स्टार मुक्केबाज विजेंदर सिंह ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय बॉक्सिंग खिलाड़ी हैं। उन्होंने 2008 बीजिंग ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर एक नया इतिहास रचा। इसके बाद विजेंदर ने प्रोफेशनल बॉक्सिंग की दुनिया में भी कदम रखा और अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।
29 अक्टूबर 1985 को हरियाणा के भिवानी में जन्मे विजेंदर ने सरकारी नौकरी पाने के उद्देश्य से मुक्केबाजी शुरू की थी, लेकिन बाद में उन्हें एहसास हुआ कि यह खेल उनके सपनों को पूरा करने का एक माध्यम बन सकता है।
विजेंदर ने घरेलू सर्किट में अद्भुत प्रदर्शन किया, लेकिन लगातार जीत के बावजूद उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिल रही थी। इस बीच, कई सरकारी विभागों में ओलंपियन की मांग की गई। किसी ने उन्हें सलाह दी कि वह ओलंपिक की तैयारी शुरू करें ताकि उन्हें नौकरी मिल सके।
विजेंदर ने 2004 के एथेंस ओलंपिक में भाग लिया, जहां वह केवल ओलंपियन का टैग हासिल करना चाहते थे। यह उनका पहला ओलंपिक था, लेकिन 18 साल की उम्र में उन्हें शुरुआती दौर में ही हार का सामना करना पड़ा, जिससे वह काफी दुखी हुए।
इस नाकामी ने उनकी नींद उड़ा दी थी। वह बमुश्किल 3-4 घंटे ही सो पाते थे और हमेशा सोचते रहते थे कि एथेंस में उन्होंने एक सुनहरा अवसर गंवा दिया।
हालांकि विजेंदर ओलंपियन का टैग प्राप्त कर चुके थे, लेकिन उनका असली लक्ष्य ओलंपिक पदक जीतना था। इसके बाद उन्होंने अपनी स्किल्स में सुधार करते हुए एशियन गेम्स 2006, कॉमनवेल्थ गेम्स 2006 और एशियन चैंपियनशिप 2007 में मेडल जीते, जिसके बाद उनकी नजरें 2008 के बीजिंग ओलंपिक पर थीं।
2008 का बीजिंग ओलंपिक भारत के लिए विशेष था। एक ओर निशानेबाज अभिनव बिंद्रा व्यक्तिगत खेलों में ओलंपिक गोल्ड जीतने वाले पहले भारतीय बने, वहीं दूसरी ओर विजेंदर ने ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय बॉक्सिंग खिलाड़ी का खिताब हासिल किया।
लंबे कद के विजेंदर ने मिडिलवेट क्वार्टर फाइनल में इक्वाडोर के कार्लोस गोंगोरा को हराकर भारत के लिए ब्रॉन्ज मेडल जीता। इस मुकाबले में गोंगोरा का फुटवर्क तेज था, लेकिन विजेंदर ने अपने बाएं हाथ के जैब्स और अपरकेस से अंतर पैदा करते हुए बाउट जीत ली। इस जीत ने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया।
हालांकि, 2012 लंदन ओलंपिक में विजेंदर अपनी सफलता को दोहरा नहीं सके, लेकिन इसके बाद उन्होंने पेशेवर बॉक्सिंग में कदम रखते हुए भारत का नाम रोशन किया।
मुक्केबाजी में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए विजेंदर को 'अर्जुन पुरस्कार' और 'राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। इस मुक्केबाज ने अपने ओलंपिक मेडल के साथ हजारों युवाओं को इस खेल को पेशेवर रूप से अपनाने के लिए प्रेरित किया है।