क्या कुश्ती के 'दबंग' योगेश्वर दत्त ने ओलंपिक में 'तिरंगे' का मान बढ़ाया?
सारांश
Key Takeaways
- योगेश्वर दत्त ने कुश्ती में भारत का नाम रोशन किया।
- उन्होंने 2012 लंदन ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता।
- उनकी मेहनत और समर्पण ने उन्हें युवाओं के लिए प्रेरणा बना दिया।
- योगेश्वर को पद्म श्री और अर्जुन अवॉर्ड जैसे पुरस्कार मिले हैं।
- उन्होंने मानवीय संवेदनाओं का उदाहरण प्रस्तुत किया।
नई दिल्ली, 1 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। योगेश्वर दत्त ने कुश्ती के क्षेत्र में भारत का नाम रोशन किया है। वर्ल्ड चैंपियनशिप और एशियन गेम्स में मेडल जीतने वाले योगेश्वर दत्त ने 2012 लंदन ओलंपिक में देश को मेडल दिलाया। हरियाणा का यह पहलवान अपनी मेहनत, संघर्ष और समर्पण से युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।
2 नवंबर 1982 को हरियाणा के सोनीपत के भैंसवाला कलां में जन्में योगेश्वर दत्त का परिवार शिक्षकों का है। इसके बावजूद, उन्होंने पहलवानी को अपने करियर के रूप में चुना।
योगेश्वर ने प्रसिद्ध पहलवान बलराज से प्रेरणा लेते हुए कुश्ती शुरू की और जल्दी ही अपने पिता से इस खेल को करियर के रूप में अपनाने का समर्थन प्राप्त किया।
महज 14 वर्ष की आयु में, योगेश्वर रोजाना ट्रेन से दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम तक यात्रा करते थे, जहां वे कुश्ती के दांव-पेंच सीखते थे।
2004 के एथेंस ओलंपिक में, योगेश्वर ने पहली बार ओलंपिक मैट पर कदम रखा। उन्होंने जापानी रेसलर ग्रैफलर चिकारा तानबे का सामना किया, जिसने उस वर्ष ब्रॉन्ज मेडल जीता था। एक अन्य मुकाबले में उनका सामना 2000 के सिडनी ओलंपिक के गोल्ड मेडलिस्ट अब्दुल्लायेव (अजरबैजान) से हुआ था। उस ओलंपिक में योगेश्वर 18वें स्थान पर रहे।
योगेश्वर भारत लौटकर 2006 के एशियन गेम्स की तैयारी में जुट गए, लेकिन इसकी शुरुआत से 9 दिन पहले उनके पिता का निधन हो गया। यह उनके लिए एक बड़ा झटका था, फिर भी उन्होंने ब्रॉन्ज जीतकर इसे अपने पिता को समर्पित किया।
साल 2008 में एशियन चैंपियनशिप में 60 किलोग्राम फ्रीस्टाइल में गोल्ड जीतने वाले योगेश्वर ने उसी वर्ष बीजिंग ओलंपिक में भाग लिया। उस समय उन्हें पदक का दावेदार माना गया, लेकिन जापान के केनिची युमोटो से हारने के बाद उनका सपना टूट गया। इस ओलंपिक में योगेश्वर 8वें स्थान पर रहे और उन्हें कई चोटों का सामना करना पड़ा।
2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स में योगेश्वर दत्त ने गोल्ड जीता। हालाँकि, उनका मुख्य लक्ष्य ओलंपिक मेडल जीतना था।
2012 के लंदन ओलंपिक में, योगेश्वर दत्त ने 60 किलो फ्रीस्टाइल वर्ग में उत्तर कोरिया के री जोंग-म्योंग को हराकर भारत को ब्रॉन्ज मेडल दिलाया। लेकिन कुछ समय बाद, लंदन ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाले रूसी पहलवान बेसिक कुदुखोव को डोपिंग में दोषी पाया गया। इसके बाद योगेश्वर का पदक ब्रॉन्ज से सिल्वर में बदल सकता था, लेकिन उन्होंने इसे लेने से मना कर दिया।
कुदुखोव की सड़क दुर्घटना में 2013 में मृत्यु हो गई, जिसके बाद योगेश्वर ने ट्वीट किया था, "अगर हो सके तो यह मेडल उन्हीं के पास रहने दिया जाए। यह उनके परिवार के लिए सम्मानजनक होगा। मेरे लिए मानवता की संवेदनाएँ सर्वोपरि हैं।"
योगेश्वर दत्त ने 2016 में एक बार फिर ओलंपिक मैट पर कदम रखा। यह उनका चौथा ओलंपिक था। हालाँकि, रियो में, यह भारतीय पहलवान अपनी पहले की सफलताओं को नहीं दोहरा सके। कुछ वर्षों बाद, उन्होंने कुश्ती से संन्यास लेने की घोषणा की।
कुश्ती में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए, योगेश्वर दत्त को 2009 में अर्जुन अवॉर्ड और 2013 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया। आज, ओलंपिक मेडलिस्ट योगेश्वर कई युवाओं के लिए प्रेरणा हैं।