क्या आपातकाल का दौर वास्तव में खौफनाक था? संजय टंडन का बयान

सारांश
Key Takeaways
- आपातकाल का समय एक भयावह अध्याय था।
- संविधान के हनन की याद दिलाता है।
- सतर्कता और जन-जागरूकता की आवश्यकता है।
- लोकतंत्र की रक्षा के लिए साहस की आवश्यकता है।
- राजनीतिक अस्थिरता के कारण आपातकाल की घोषणा हुई।
चंडीगढ़, 25 जून (राष्ट्र प्रेस)। भाजपा के वरिष्ठ नेता संजय टंडन ने चंडीगढ़ में बुधवार को आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर आयोजित एक कार्यक्रम में उस समय को याद किया जब माहौल "खौफनाक" था और लोग एक-दूसरे की सहायता करने के बजाय नजरें चुराते थे।
आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर उन्होंने बुधवार को समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा कि 'संविधान की हत्या' हुए 50 साल बीत चुके हैं। इन 50 वर्षों में हम उस काले दिन को याद करते हैं। हमारे पिता को पुलिस द्वारा घर से उठाकर ले जाया गया और बिना किसी कारण के 19 महीने जेल में रखा गया। घर पर हमें यह भी नहीं पता था कि हमें कैसे खाना मिलेगा या रोजमर्रा की जिंदगी कैसे बितानी है। अगर बाजार से कोई व्यक्ति या उनका मित्र हमसे बात करने की कोशिश भी करता, तो उन्हें डर लगता था कि कहीं उन्हें भी आपातकाल के दौरान जेल न भेज दिया जाए। डर और खौफ का माहौल था। अखबारों की आजादी छीन ली गई, रेडियो और टेलीविजन पर सरकार ने पाबंदी लगाई थी। उस समय सोशल मीडिया नहीं था। लोगों की आजादी का हनन किया गया था।
भाजपा नेता ने कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए कहा कि आज संविधान के हत्यारे चुप क्यों हैं? वे आज खामोश क्यों हैं? उन्हें यह बताना चाहिए कि देश में ऐसा दिन क्यों आया था। भाजपा नेता ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान राजनेताओं को जेल में डाल दिया था।
संजय टंडन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर आपातकाल को लेकर एक पोस्ट किया। उन्होंने लिखा, “संविधान के हत्यारे आज के दिन खामोश क्यों हैं?” आज आपातकाल लागू किए जाने के 50 वर्ष पूर्ण होने पर चंडीगढ़ प्रशासन की ओर से राज्य स्तरीय कार्यक्रम ‘संविधान हत्या दिवस’ में सम्मिलित हुए। आपातकाल के दौरान लोकतंत्र की रक्षा में जेल जाने वाले वीरों को सम्मानित कर उनके अदम्य साहस और योगदान को नमन किया गया। यह दिन हमें याद दिलाता है कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए निरंतर सतर्कता और जन-जागरूकता आवश्यक है।