क्या आचार्य नंदलाल बोस एक महान चित्रकार थे?
सारांश
Key Takeaways
- आचार्य नंदलाल बोस का जन्म 3 दिसंबर 1882 को हुआ।
- वे भारतीय आधुनिक कला के प्रमुख चित्रकार थे।
- उन्होंने राष्ट्रवादी विचार को अपनी कला में समाहित किया।
- उनकी कृतियों में 'सबरी इन हर यूथ' और 'अभिमन्यु वध' शामिल हैं।
- उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए।
नई दिल्ली, 2 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। महान चित्रकार आचार्य नंदलाल बोस की जयंती पर सम्पूर्ण देश उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है। नंदलाल बोस का जन्म बिहार के मुंगेर जिले के हवेली खड़गपुर नामक छोटे से कस्बे में 3 दिसंबर 1882 को हुआ था। एक मध्यमवर्गीय बंगाली परिवार में जन्मे नंदलाल बोस एक भारतीय आधुनिक कलाकार और शिक्षाशास्त्री थे।
उनके पिता का नाम पूर्ण चंद्र बोस महाराजा और माता का नाम क्षेत्रमणि देवी था। उनके पिता दरभंगा के तत्कालीन राज में हवेली खड़गपुर तहसील के व्यवस्थापक थे।
बोस का कला से परिचय बचपन में ही हो गया था। बचपन में उनकी माता, क्षेत्रमणि देवी, उनके मनोरंजन के लिए नए-नए खिलौने और गुड़िया बनाती थीं। नंदलाल ने अपनी मां से यह हुनर सीखा और मिट्टी की कलाकृतियां बनाने में दक्षता हासिल की। वह इस प्रतिभा का उपयोग दुर्गा पूजा के वार्षिक उत्सव के दौरान करते थे, जिसमें पंडाल या झांकियां सजाना शामिल था।
वे 1897 में सेंट्रल कॉलेजिएट स्कूल में पढ़ाई के लिए कलकत्ता चले गए और बाद में 1905 में अपने परिवार के कहने पर प्रेसीडेंसी कॉलेज में वाणिज्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। बाद में उन्होंने अपने माता-पिता को मनाकर कलकत्ता के गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट (अब गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट) में दाखिला लिया।
1907 में उन्हें तत्कालीन नव-स्थापित इंडियन सोसाइटी ऑफ ओरिएंटल आर्ट से एक यात्रा छात्रवृत्ति मिली, जिसके तहत वे विद्वान ओसी गंगोली के साथ दक्षिण भारत की मंदिर कला के अध्ययन के लिए गए।
1916 में जापानी कला के साथ उनका पहला साक्षात्कार हुआ और 1924 में उन्होंने चीन और जापान की अपनी पहली यात्रा की।
1920 में जब उन्होंने नव स्थापित कला भवन का कार्यभार संभाला, तब वे बंगाल स्कूल के वैचारिक मार्गदर्शन में अपनी पहचान बना चुके थे।
रवींद्रनाथ टैगोर के साथ उनके संबंधों ने उनके मन में आधुनिक भारतीय कला की संभावनाओं के द्वार खोल दिए।
1930 में जब महात्मा गांधी ने डांडी मार्च शुरू किया, तो बोस ने इस घटना को अपनी कलाकृति के माध्यम से दर्शाया, जो बाद में एक आदर्श छवि बन गई। उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर के पुस्तक संग्रह सहज पथ (1937 में प्रकाशित) को भी लिनोकट प्रिंटों के साथ चित्रित किया। उनकी कई चर्चित पेंटिंग्स में से एक, सबरी इन हर यूथ (1941-42) है, जिसमें रामायण के एक दृश्य को दर्शाया गया है, जिसमें एक युवा लड़की, संभवतः स्वदेशी पृष्ठभूमि की, एक पेड़ की शाखाओं पर बैठी राम से मुक्ति की प्रतीक्षा कर रही है।
भारत की भित्ति चित्रकला परंपरा को पुनर्जीवित करने की प्रेरणा से उन्होंने बागदार रोड (हजारीबाग) (1943) और अभिमन्यु वध (1946-47) जैसी महत्वपूर्ण कृतियों का सृजन किया। 1946 में उन्होंने बड़ौदा स्थित मोहनदास और कस्तूरभाई गांधी के स्मारक, कीर्ति मंदिर के लिए भी भित्ति चित्र बनाए।
बोस अपने युग के सबसे प्रभावशाली और ऐतिहासिक रूप से संदर्भित कलाकारों में से एक थे। राष्ट्रवादी विमर्शों में उनकी सार्वजनिक भागीदारी, शैक्षणिक योगदान और उनकी कला की अद्वितीय लोकप्रियता ने उन्हें नए भारतीय आधुनिकतावादियों की श्रेणी में स्थापित किया। उन्हें 1954 में पद्म विभूषण, 1956 में ललित कला अकादमी की फेलोशिप, 1957 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से मानद डी.लिट., और 1965 में एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल द्वारा टैगोर जन्म शताब्दी पदक से सम्मानित किया गया। 1993 में भारत सरकार ने बोस की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में उनकी पेंटिंग "प्रतीक्षा" पर एक डाक टिकट जारी किया।
उनकी अधिकांश पेंटिंग नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय और भारत तथा विदेशों में निजी संग्रहों में सुरक्षित हैं। बोस जीवनभर अपने शिक्षकों और छात्रों, दोनों के प्रिय रहे। 1966 में उनका निधन हो गया। भारतीय कला के जिस आधुनिक पक्ष को चित्रकार आचार्य नंदलाल बोस ने उजागर किया, उसके कारण वे सदा अमर रहेंगे।