क्या अष्टमी की पूजा से कष्टों से मुक्ति मिलती है? जानें व्रत की सरल विधि
सारांश
Key Takeaways
- अष्टमी की पूजा से कष्टों का नाश होता है।
- दिव्य शुक्र ग्रह की शक्ति को बढ़ाने के लिए व्रत करें।
- सही विधि से पूजा करने पर मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- तामसिक भोजन से बचें।
- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पूजा करें।
नई दिल्ली, 11 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। पौष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि शुक्रवार को दोपहर 2 बजकर 56 मिनट तक रहेगी। इसके बाद नवमी तिथि आरंभ होगी। इस दिन सूर्य वृश्चिक राशि में और चंद्रमा सुबह 10 बजकर 20 मिनट तक सिंह राशि में रहेंगे, इसके बाद कन्या राशि में चले जाएंगे।
द्रिक पंचांग के अनुसार, शुक्रवार के दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 54 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 36 मिनट तक रहेगा। राहुकाल का समय सुबह 10 बजकर 57 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 15 मिनट तक रहेगा।
पौराणिक धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि इस दिन मां संतोषी और लक्ष्मी मैया की विधि-विधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन पूजा करने और व्रत रखने से जातक के जीवन में चल रहे सभी कष्टों का नाश होता है और माता रानी अपने भक्तों को सभी कष्टों से बचाती हैं। साथ ही उनकी जो भी मनोकामनाएं होती हैं, वे भी पूर्ण करती हैं।
इसके अलावा, इस दिन व्रत शुक्र ग्रह को मजबूत करने और उससे संबंधित दोषों को दूर करने के लिए भी किया जाता है। इस व्रत को किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के पहले शुक्रवार से शुरू किया जा सकता है। आमतौर पर यह व्रत लगातार 16 शुक्रवार तक रखा जाता है, जिसके बाद उद्यापन किया जाता है।
जो जातक इस दिन व्रत रखते हैं, वे दिन में एक बार मीठे के साथ किसी एक अनाज का सेवन कर सकते हैं। व्रत के दिन घर में तामसिक भोजन (प्याज, लहसुन, मांस-मदिरा) का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
इस व्रत को करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। लाल कपड़े पर मां लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। दीप जलाएं और फूल, चंदन, अक्षत, कुमकुम और मिठाई का भोग लगाएं। ‘श्री सूक्त’ और ‘कनकधारा स्तोत्र’ का पाठ करें। मंत्र जप करें, ‘ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः’ और ‘विष्णुप्रियाय नमः’ का जप भी लाभकारी है।