क्या सुप्रीम कोर्ट ने बाढ़ और अवैध पेड़ कटाई के खिलाफ सख्त कदम उठाए?

सारांश
Key Takeaways
- सुप्रीम कोर्ट ने बाढ़ और भूस्खलन पर नोटिस जारी किया।
- अवैध पेड़ कटाई की समस्या सख्त चिंता का विषय है।
- राज्यों को दो हफ्तों में जवाब देना होगा।
- प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।
- विकास और पर्यावरण में संतुलन जरूरी है।
नई दिल्ली, 4 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों में आई बाढ़ और भूस्खलन पर गहरी चिंता व्यक्त की है। अदालत ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए चार राज्यों को नोटिस जारी कर उनकी प्रतिक्रिया मांगी है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा जिन चार राज्यों को नोटिस भेजा गया है, उनमें पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर शामिल हैं।
अदालत ने इन राज्यों की सरकारों को नोटिस जारी कर दो हफ्तों के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया है।
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट है कि अवैध पेड़ कटाई बड़े पैमाने पर की गई है, जो हाल की आपदा का एक प्रमुख कारण हो सकता है।
अदालत ने मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा कि हमने हिमाचल प्रदेश में दृश्य देखे, जहां बड़ी संख्या में लकड़ी के गट्ठर बाढ़ में बहते हुए दिखाई दिए। यह अनियंत्रित पेड़ कटाई का संकेत है। इसके अलावा, पंजाब में खेत और गांव तबाह हो चुके हैं। विकास आवश्यक है, लेकिन यह संतुलित होना चाहिए।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी मामले की गंभीरता को उजागर किया।
उन्होंने कहा कि हमने प्रकृति के साथ इतनी छेड़छाड़ की है कि अब प्रकृति हमें उसका जवाब दे रही है। उन्होंने अदालत को आश्वासन दिया कि वे इस मुद्दे पर पर्यावरण मंत्रालय के सचिव से बात करेंगे और संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों से भी संवाद करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रभावित राज्यों को इस पर ठोस उत्तर देना होगा कि बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए और आगे ऐसी आपदाओं से बचाव के लिए उनकी योजना क्या है।
यह ध्यान देने योग्य है कि कई राज्यों में हुई बारिश के कारण जनजीवन पूरी तरह से प्रभावित हो गया है। पंजाब, हिमाचल, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर के कई शहरों में जलजमाव की स्थिति है। पंजाब में हालात सबसे गंभीर हैं, जहां कई गांवों में पानी भर गया है।