क्या बिहार चुनाव में भाजपा का अभेद्य किला बांकीपुर विपक्ष के लिए चुनौती है?

सारांश
Key Takeaways
- बांकीपुर सीट भाजपा का अभेद्य किला है।
- कायस्थ समुदाय का इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रभाव है।
- नितिन नबीन ने इस सीट पर लगातार जीत दर्ज की है।
- विपक्ष के लिए यह सीट एक कठिन चुनौती बनी हुई है।
- आगामी चुनावों में भाजपा की पकड़ बनाए रखना एक चुनौती होगी।
पटना, 23 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार की राजनीति में कुछ ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं, जिनका नाम सुनते ही जीत-हार का परिणाम लगभग निश्चित सा लगता है। पटना शहर में स्थित बांकीपुर विधानसभा सीट भी उनमें से एक है। यह प्रमुख विधानसभा क्षेत्र, जो पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का एक ऐसा अभेद्य गढ़ बन चुका है, जिसे विपक्ष के लिए भेदना हर बार और भी चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है।
2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रमुख नेता नितिन नबीन ने यहाँ शानदार जीत हासिल की थी। उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार लव सिन्हा को 39,036 वोटों के अंतर से हराकर इस सीट पर भाजपा की मजबूती को दर्शाया।
बांकीपुर का राजनीतिक इतिहास 2008 के परिसीमन से पूर्व की 'पटना वेस्ट' सीट से जुड़ा है। दशकों से यह क्षेत्र भाजपा का मजबूत किला रहा है। यह दबदबा 1990 के दशक में शुरू हुआ, जब नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा ने 1995 से लगातार चार बार इस सीट पर जीत हासिल की।
उनके निधन के बाद, उनके पुत्र नितिन नबीन ने 2006 के उपचुनाव में जीत दर्ज कर अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया। उन्होंने 2010, 2015 और 2020 के चुनावों में लगातार तीन बार जीत हासिल करके इस सीट को भाजपा का एक अजेय दुर्ग बना दिया।
बांकीपुर विधानसभा सीट केवल चुनावी आंकड़ों की कहानी नहीं है, बल्कि एक पिता-पुत्र की सियासी विरासत की गाथा भी है, जिसने आधुनिक युग में भाजपा की जड़ों को और गहरा किया है।
इस सीट के राजनीतिक समीकरण को समझने के लिए यहां के कायस्थ समुदाय के प्रभाव को जानना आवश्यक है। यह समुदाय क्षेत्र में प्रमुख संख्या में है और चुनावी नतीजों में निर्णायक भूमिका निभाता है। यही कारण है कि भाजपा को यहाँ लगातार समर्थन मिल रहा है।
कायस्थों के अलावा, वैश्य और ब्राह्मण मतदाता भी यहाँ बड़ी संख्या में हैं, जो परंपरागत रूप से भाजपा के वोट बैंक माने जाते हैं।
यह कायस्थ प्रभाव केवल विधानसभा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पटना साहिब लोकसभा सीट पर भी स्पष्ट है। शत्रुघ्न सिन्हा ने (जब वे भाजपा में थे) 2009 और 2014 में इस लोकसभा सीट पर जीत हासिल की थी। हालांकि, 2019 में कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ने पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा और भाजपा के रविशंकर प्रसाद ने यह सीट जीत ली।
2024 के लोकसभा चुनाव में भी रविशंकर प्रसाद का मुकाबला कांग्रेस के अंशुल अविजीत से हुआ, जिसमें कायस्थ वोट एक बार फिर निर्णायक साबित हुए।
बांकीपुर सीट पर विपक्ष के लिए हमेशा से ही एक कठिन चुनौती रही है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को अब तक यहाँ कोई जीत नहीं मिली है। प्रारंभिक वर्षों में कांग्रेस और सीपीआई ने कुछ प्रभाव जरूर बनाया था, लेकिन भाजपा के मजबूत उभार के बाद विपक्ष का आधार लगभग समाप्त हो गया है।
2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी लव सिन्हा दूसरे स्थान पर रहे। इस चुनाव में एक हाई-प्रोफाइल चेहरा, प्लूरल्स पार्टी की नेता पुष्पम प्रिया चौधरी, भी मैदान में थीं, जिन्होंने 5,189 वोट हासिल कर तीसरा स्थान प्राप्त किया।
बांकीपुर विधानसभा सीट अब भी भाजपा की मजबूत पकड़, एक स्थापित राजनीतिक विरासत और कायस्थ वोट बैंक के निर्णायक समर्थन के कारण चर्चा में है। हर चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कोई राजनीतिक दल इस अजेय दुर्ग को भेद सकेगा, या भाजपा एक बार फिर परचम लहराएगी।