क्या बसनगौड़ा पाटिल ने अमित शाह से हलाल प्रमाणन पर देशव्यापी प्रतिबंध की मांग की?

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क्या बसनगौड़ा पाटिल ने अमित शाह से हलाल प्रमाणन पर देशव्यापी प्रतिबंध की मांग की?

सारांश

क्या बसनगौड़ा पाटिल ने हलाल प्रमाणन पर प्रतिबंध की मांग की है? जानें इस पत्र में उनकी चिंताएं क्या हैं।

Key Takeaways

  • हलाल प्रमाणन पर प्रतिबंध की मांग का मुद्दा उठाया गया है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए चिंता व्यक्त की गई है।
  • हलाल प्रमाणन से जुड़े संस्थाओं की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए गए हैं।

नई दिल्ली, २५ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भाजपा से निष्कासित विधायक बसनगौड़ा पाटिल ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर देश में हलाल प्रमाणन एजेंसियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की है। उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा हलाल प्रमाणन पर लगाए गए प्रतिबंध का उदाहरण देते हुए इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की अपील की।

पाटिल ने अपने पत्र और सोशल मीडिया एक्स हैंडल पर इस मुद्दे को उठाया, जिसमें उन्होंने हलाल प्रमाणन से प्राप्त धन के दुरुपयोग और राष्ट्रीय सुरक्षा पर इसके प्रभाव की चिंता जताई।

पाटिल ने पत्र में लिखा कि हलाल प्रमाणन का पैसा आतंकवादी गतिविधियों को वित्तपोषित करने, उन्हें कानूनी सहायता प्रदान करने और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने में इस्तेमाल हो रहा है।

उन्होंने दावा किया कि हलाल इंडिया, जमीयत उलेमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट, ग्लोबल इस्लामिक शरिया, हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और जमीयत उलेमा-ए-महाराष्ट्र जैसी संस्थाएं मांस, खाद्य उत्पादों, सौंदर्य प्रसाधनों और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के लिए हलाल प्रमाणन प्रदान करती हैं, जो भारतीय संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है।

उन्होंने कहा कि ये प्रमाणन मुस्लिम उपभोक्ताओं को लक्षित करते हैं, जिससे धार्मिक आधार पर भेदभाव को बढ़ावा मिलता है।

पाटिल ने २०१६ में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के कानूनी प्रमुख गुलजार अजमी के बयान का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि हलाल प्रमाणन से प्राप्त धन का उपयोग आतंकवादियों को जमानत दिलाने में किया गया था। इससे इन संगठनों की विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं।

पाटिल ने तर्क किया कि जब भारत में खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण जैसी स्वायत्त संस्था खाद्य सुरक्षा और विनियमन की देखरेख करती है, तो हलाल प्रमाणन की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने इसे शरिया कानून से जोड़ा, जिसकी भारत में कोई कानूनी मान्यता नहीं है।

उन्होंने ७ जुलाई २०१४ के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें जस्टिस सी.के. प्रसाद की पीठ ने कहा था कि दारुल-कजा जैसे समानांतर न्यायिक मंच की कोई कानूनी मान्यता नहीं है।

साथ ही, पाटिल ने मद्रास हाईकोर्ट के १९ दिसंबर २०१६ के आदेश का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि पूजा स्थलों का उपयोग संविधानेतर मंच के लिए नहीं किया जा सकता।

बसनगौड़ा पाटिल ने जोर देकर कहा कि हलाल प्रमाणन से एकत्रित धन का उपयोग आतंकवाद को बढ़ावा देने, जिहाद समर्थक साहित्य छापने, और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में होता है। उन्होंने इसे एफएसएसएआई के नियमों को कमजोर करने वाला बताया और मांग की कि इसे अवैध घोषित कर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाए।

उनका कहना है कि धार्मिक आधार पर प्रमाणन से एक समुदाय को लाभ होता है, जबकि गैर प्रमाणित उत्पादों को नुकसान उठाना पड़ता है, जो संविधान के समानता के सिद्धांत के खिलाफ है।

पाटिल ने यह भी बताया कि उन्होंने नवंबर २०२३ में केंद्रीय उपभोक्ता मामले मंत्री पीयूष गोयल को भी इस मुद्दे पर पत्र लिखा था। उन्होंने गृह मंत्री से अनुरोध किया कि राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता को प्राथमिकता देते हुए हलाल प्रमाणन एजेंसियों पर तुरंत प्रतिबंध लगाया जाए।

Point of View

इस मुद्दे पर गहन चर्चा आवश्यक है।
NationPress
25/10/2025

Frequently Asked Questions

बसनगौड़ा पाटिल ने हलाल प्रमाणन पर क्यों प्रतिबंध लगाने की मांग की?
बसनगौड़ा पाटिल का मानना है कि हलाल प्रमाणन से प्राप्त धन का दुरुपयोग आतंकवादी गतिविधियों में होता है।
क्या हलाल प्रमाणन भारत में कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त है?
हलाल प्रमाणन का कोई कानूनी मान्यता नहीं है और यह शरिया के सिद्धांतों पर आधारित है।