क्या भागदौड़ भरी लाइफस्टाइल में स्वस्थ रहने के लिए 'प्राकृतिक नुस्खे' अपनाना चाहिए?

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क्या भागदौड़ भरी लाइफस्टाइल में स्वस्थ रहने के लिए 'प्राकृतिक नुस्खे' अपनाना चाहिए?

सारांश

आज की व्यस्त जीवनशैली में मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। लेकिन आयुर्वेद के 'प्राकृतिक नुस्खे' आपकी स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने में मददगार साबित हो सकते हैं। जानें कैसे वात, पित्त और कफ को संतुलित करके आप स्वस्थ रह सकते हैं।

Key Takeaways

  • प्राकृतिक नुस्खे स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने में सहायक हैं।
  • आयुर्वेद के अनुसार वात, पित्त और कफ का संतुलन आवश्यक है।
  • सही आहार से स्वास्थ्य को सुधार सकते हैं।
  • सिद्ध प्रणाली भी स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करती है।

नई दिल्ली, 5 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। आजकल की भागदौड़ भरी लाइफस्टाइल में मानसिक और शारीरिक समस्याएं आम हो गई हैं। लेकिन भारतीय चिकित्सा पद्धति, विशेषकर आयुर्वेद, हमें इससे बचने का उपाय प्रस्तुत करता है। आयुर्वेद के अनुसार, 'प्राकृतिक नुस्खे' जीवन को स्वस्थ रखने का एक महत्वपूर्ण साधन हैं। ये वात, पित्त और कफ को संतुलित करके कई समस्याओं को दूर करते हैं।

आयुर्वेद के अनुसार, वात, पित्त और कफ के असंतुलन से अनेक रोग जन्म लेते हैं। सही आहार और प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से इन दोषों को संतुलित करना संभव है। भोजन में 75-80 प्रतिशत क्षारीय पदार्थ (जैसे फल और सब्जियां) और 20-25 प्रतिशत अम्लीय पदार्थ होना चाहिए। असंतुलित आहार से अम्लता बढ़ती है, जो पित्त और कफ दोष को जन्म देती है।

हेल्थ एक्सपर्ट

वात दोष के कारण पेट में गैस, जोड़ों में दर्द, साइटिका, लकवा और अंगों का सुन्न होना जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। इसके लिए रेशेदार भोजन, जैसे कच्चे फल, सलाद और पत्तेदार सब्जियां, खाना चाहिए। सुबह 2-4 लहसुन की कलियां और मक्खन का सेवन वात रोग को जल्दी ठीक करता है।

पित्त दोष से पेट में जलन, खट्टी डकार, एलर्जी, खून की कमी और चर्म रोग हो सकते हैं। मसालेदार और खट्टे खाद्य पदार्थों से बचना आवश्यक है। गाजर का रस और अनार का सेवन लाभकारी होता है।

कफ दोष से बलगम, सर्दी, खांसी, और मोटापा जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। आयुर्वेदाचार्य के अनुसार, मुनक्का, कच्ची पालक, और अदरक का सेवन फायदेमंद है।

इसके अलावा, सिद्ध प्रणाली भी त्रिदोष को संतुलित करने में मददगार है। यह प्रणाली भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों में से एक है, जो आंतरिक संतुलन पर जोर देती है।

सिद्ध चिकित्सा का श्रेय अठारह सिद्धों को दिया जाता है। यह चिकित्सा रोगी की उम्र, आदतों और शारीरिक स्थिति को ध्यान में रखकर व्यक्तिगत उपचार प्रदान करती है।

Point of View

यह स्पष्ट होता है कि प्राकृतिक चिकित्सा और सही आहार के माध्यम से स्वस्थ जीवन जीना संभव है। आयुर्वेद और सिद्ध प्रणाली का उपयोग करके हम न केवल बीमारियों से बच सकते हैं, बल्कि एक बेहतर जीवन शैली भी अपना सकते हैं।
NationPress
05/08/2025

Frequently Asked Questions

आयुर्वेद में प्राकृतिक नुस्खों का क्या महत्व है?
आयुर्वेद में प्राकृतिक नुस्खे स्वास्थ्य को बनाए रखने और रोगों से बचने का एक महत्वपूर्ण साधन हैं।
कफ दोष को कैसे संतुलित किया जा सकता है?
कफ दोष को संतुलित करने के लिए मुनक्का, अदरक और कच्ची पालक का सेवन करना चाहिए।