क्या आपने जान लिया है कि लड्डू गोपाल को 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग क्यों अर्पित करते हैं?

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क्या आपने जान लिया है कि लड्डू गोपाल को 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग क्यों अर्पित करते हैं?

सारांश

भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन पर 56 भोग क्यों अर्पित किए जाते हैं? जानें इस परंपरा की जड़ें और लोक कथा के पीछे का रहस्य। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि कैसे कान्हा ने गोवर्धन पर्वत की पूजा के लिए इंद्रदेव को नाराज किया और 56 भोग का महत्व क्या है।

Key Takeaways

  • भगवान श्रीकृष्ण का दिव्य रूप भक्तों को प्रेरित करता है।
  • 56 भोग की परंपरा गोवर्धन पूजा से जुड़ी है।
  • छप्पन भोग में सभी स्वादों का समावेश होता है।
  • कृष्ण की कथा जीवन के महत्वपूर्ण शिक्षाओं को दर्शाती है।
  • प्रकृति की पूजा का महत्व भारतीय संस्कृति में गहराई से निहित है।

नई दिल्ली, 16 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। जब भगवान श्रीकृष्ण का नन्हा रूप भक्तों के दिलों में समा जाता है, तो हर कोई आनंदित हो उठता है। उनके जन्मोत्सव के खास मौके पर, सभी घरों में विशेष तैयारियां शुरू होती हैं, झूले सजाए जाते हैं, शंख की ध्वनि गूंजती है, और अपने लड्डू गोपाल की खातिर 56 प्रकार के भोग बनाए जाते हैं।

56 भोग बनाने के पीछे एक प्रसिद्ध लोक कथा छिपी हुई है, जो भगवान श्रीकृष्ण के बचपन से जुड़ी है।

कथा के अनुसार, एक बार सभी बृजवासी इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए पूजा की तैयारी में लगे हुए थे। इस पर कान्हा जी ने नंद बाबा से पूछा कि लोग इंद्रदेव की पूजा क्यों कर रहे हैं। नंद बाबा ने बताया कि उनकी कृपा से ही वर्षा होगी। कान्हा ने उत्तर दिया कि वर्षा तो इंद्र का कार्य है, हमें तो गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि इसी पर्वत के कारण हमें फल-सब्जियां और चारा मिलता है।

कृष्ण की बात को सुनकर सभी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे, लेकिन इससे इंद्रदेव नाराज हो गए और उन्होंने इतनी वर्षा की कि बृजवासी संकट में पड़ गए। उनकी रक्षा के लिए कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया और सभी बृजवासियों ने अपने पशुओं के साथ पर्वत के नीचे शरण ली।

कथा के अनुसार, श्रीकृष्ण ने पूरे 7 दिनों तक गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर थामे रखा। जब इंद्रदेव ने कृष्ण के दिव्य रूप को देखा, तो उन्होंने आठवें दिन कृष्ण से माफी मांगी और वर्षा रोक दी।

इन सात दिनों में, कृष्ण ने बिना भोजन किए पर्वत को थामे रखा। इस दौरान, मां यशोदा ने अपने प्यारे कान्हा के लिए 56 भोग तैयार किए, क्योंकि वह उन्हें रोज़ आठ बार भोजन कराती थीं। इस प्रकार, 7 दिनों के लिए 8 बार भोजन जोड़कर 56 भोग बनाए गए और कृष्ण को अर्पित किए गए। यही कारण है कि कान्हा को छप्पन भोग चढ़ाने की परंपरा की शुरुआत हुई।

छप्पन भोग का अर्थ है 56 प्रकार के पकवान, जिनमें हर स्वाद और भावना समाहित होती है। ये व्यंजन 6 विभिन्न स्वादों को मिलाकर बनाए जाते हैं, जैसे कि मीठा, नमकीन, खट्टा, तीखा, कड़वा और कसैला।

Point of View

बल्कि यह हमारे किसान जीवन और प्रकृति की पूजा का भी संकेत देती है।
NationPress
16/08/2025

Frequently Asked Questions

लड्डू गोपाल को 56 भोग क्यों अर्पित करते हैं?
56 भोग की परंपरा का आरंभ भगवान श्रीकृष्ण के गोवर्धन पर्वत की पूजा से जुड़ी कथा से होता है, जब उन्होंने इंद्रदेव के क्रोध से बृजवासियों की रक्षा की।
छप्पन भोग में क्या-क्या शामिल होता है?
छप्पन भोग में 56 प्रकार के व्यंजन होते हैं, जो 6 स्वादों - मीठा, नमकीन, खट्टा, तीखा, कड़वा, और कसैला - का मिश्रण होते हैं।
कृष्ण की कथा का क्या महत्व है?
कृष्ण की कथा हमें सिखाती है कि कैसे हमें सच्चे श्रद्धा से अपने धर्म का पालन करना चाहिए, और प्रकृति की पूजा का महत्व समझना चाहिए।