क्या डॉ. हिफ्जुर रहमान को लीबिया में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया?
सारांश
Key Takeaways
- डॉ. हिफ्जुर रहमान की नियुक्ति से भारत-लीबिया संबंधों में नई दिशा मिल सकती है।
- लीबिया में भारतीयों की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिकता है।
- ऊर्जा और तेल के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाना आवश्यक है।
- भारत को लीबिया की राजनीतिक अस्थिरता का सामना करना पड़ेगा।
- भविष्य में व्यापारिक संबंधों में सुधार की संभावनाएं हैं।
नई दिल्ली, 27 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत ने लीबिया में डॉ. हिफ्जुर रहमान को अपना नया राजदूत नियुक्त किया है। हिफ्जुर रहमान वर्तमान में चाड गणराज्य के लिए भारत के राजदूत हैं। विदेश मंत्रालय ने बताया है कि वह शीघ्र ही अपनी नई जिम्मेदारी संभालेंगे।
विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को डॉ. हिफ्जुर रहमान की नियुक्ति की जानकारी दी। उन्होंने मध्य पूर्व (सऊदी अरब, सीरिया और ट्यूनीशिया) में लंबा समय बिताया है, जिसके कारण उन्हें अरब की राजनीति, संस्कृति और अर्थव्यवस्था की गहरी समझ है।
इन्हें राजनायिक अनुभव के साथ-साथ प्रशासन, व्यापार, वाणिज्य और सांस्कृतिक क्षेत्र में भी अनुभव है, क्योंकि वह चाड के राजदूत भी रह चुके हैं। इस अनुभव का लाभ उठाकर वह लीबिया और भारत के बीच संबंधों को मजबूती प्रदान कर सकते हैं।
लीबिया में भारत की प्राथमिकताएं कई हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण वहां रहने वाले भारतीयों की सुरक्षा है। इसके साथ ही, ऊर्जा और तेल के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाना भी भारत की प्राथमिकता है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि लीबिया अफ्रीका का एक प्रमुख तेल उत्पादक देश है। ऐसे में भारतीय राजदूत का अनुभव तेल आयात में स्थिरता लाने में सहायक हो सकता है।
हालांकि, लीबिया में एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता है। वहां की राजनीति में मिलिशिया और बाहरी हस्तक्षेप की अधिकता है। इस स्थिति में भारत के लिए स्थिरता बनाए रखना एक महत्वपूर्ण चुनौती है। भारत के लिए आवश्यक है कि वह इन हस्तक्षेपों के बावजूद अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं के अनुसार कार्य करे।
कई भारतीय कंपनियां लीबिया में सक्रिय हैं। इन कंपनियों ने वहां बुनियादी ढांचा, ऊर्जा, निर्माण, अस्पताल, स्कूल, सड़कें, और अन्य क्षेत्रों में कार्य किया है।
2011 से 2019 तक के गृह संघर्ष और राजनीतिक अस्थिरता के कारण दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध कमजोर हुए हैं। हालांकि, 2024-2025 में दूतावास की पुनः स्थापना और नागरिकों की वापसी की संभावना के मद्देनजर, उम्मीद है कि दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों में सुधार होगा। यदि ऐसा होता है, तो न केवल नए समझौते होंगे, बल्कि पुराने प्रोजेक्ट्स भी फिर से आरंभ हो सकेंगे।