क्या भारत पर अमेरिकी दबाव की रणनीति 'बहुत मायने नहीं रखती' है?

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क्या भारत पर अमेरिकी दबाव की रणनीति 'बहुत मायने नहीं रखती' है?

सारांश

वाशिंगटन में एक प्रमुख विशेषज्ञ के अनुसार, ट्रंप प्रशासन की भारत पर दबाव की रणनीति का कोई खास महत्व नहीं है। जानें, इस विषय पर उनके विचार और भारत-चीन संबंधों में क्या हो रहा है।

Key Takeaways

  • भारत और अमेरिका के संबंधों में तनाव बढ़ सकता है।
  • ट्रंप प्रशासन की रणनीति का कोई विशेष महत्व नहीं है।
  • भारत को अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करनी चाहिए।
  • रूस और चीन के साथ सहयोग का आकलन करना महत्वपूर्ण है।
  • हिंद महासागर में चीन की बढ़ती उपस्थिति पर ध्यान देना आवश्यक है।

वाशिंगटन, 3 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। वाशिंगटन में भारत-अमेरिका आर्थिक संबंधों के विशेषज्ञ का मानना है कि हाल के हफ्तों में ट्रंप प्रशासन द्वारा भारत पर लागू की गई दबाव की रणनीति 'अत्यधिक महत्वपूर्ण नहीं है।'

व्हाइट हाउस के वरिष्ठ सलाहकार पीटर नवारो के हालिया बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए, जिसमें उन्होंने कहा था कि 'भारत को रूस के साथ नहीं, बल्कि हमारे साथ रहना चाहिए', सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (सीएसआईएस) में भारत और उभरते एशिया अर्थशास्त्र के अध्यक्ष रिचर्ड रोसो ने कहा कि भारत को अलग-थलग करने की वर्तमान अमेरिकी रणनीति संबंधों के लिए सहायक नहीं है।

उन्होंने राष्ट्र प्रेस से कहा, "अमेरिका-भारत संबंधों के लंबे समय से समर्थक रूस के साथ भारत के सहयोग में कमी देखना चाहेंगे। लेकिन हाल के हफ्तों में राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा अपनाई गई दबाव की रणनीति, जो केवल भारत पर लागू होती है, का कोई विशेष महत्व नहीं है।"

पिछले कुछ दिनों में, नवारो ने बार-बार भारत पर निशाना साधा है और नई दिल्ली पर यूक्रेन में युद्ध से 'मुनाफा कमाने' का आरोप लगाया है। भारत सरकार ने इस आरोप का खंडन किया है, और पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने एक लेख में लिखा, "इससे ज्यादा सच से दूर कुछ भी नहीं हो सकता।"

नवारो के आलोचकों का कहना है कि उनके विचार हमेशा प्रशासन की नीतियों के अनुरूप नहीं होते। लेकिन, रोसो ने तर्क दिया कि व्यापार सलाहकार राष्ट्रपति से बहुत दूर नहीं जा रहे हैं।

उन्होंने कहा, "उनके बयान राष्ट्रपति ट्रंप के बयानों से बहुत भिन्न नहीं हैं। उनकी टिप्पणियों पर ध्यान दिया गया है, लेकिन वे लंबे समय से ट्रंप के करीबी रहे हैं।"

व्हाइट हाउस सलाहकार का यह बयान प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा के समापन के बाद आया है, जहां उन्होंने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में भाग लिया।

रोसो ने इस अटकल को कम करके आंका कि भारत रूस और चीन के साथ गठबंधन कर रहा है। उन्होंने कहा, "मैंने इसे मुख्य रूप से एक बैठक मंच के रूप में देखा, न कि एक कार्य मंच के रूप में।"

उन्होंने आगे कहा कि शिखर सम्मेलन से पहले पीएम मोदी की टोक्यो यात्रा में 'कहीं अधिक महत्वपूर्ण घोषणाएं' की गईं।

भारत-चीन वार्ता पर, रोसो ने 'तनाव कम करने के कदमों' का स्वागत किया, हालांकि उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों में किसी भी तरह के बदलाव के प्रति आगाह भी किया।

उन्होंने आगे कहा, "हिंद महासागर में चीन की बढ़ती उपस्थिति, एकतरफा व्यापार और तिब्बती बौद्ध धर्म के भविष्य जैसे मुद्दों पर गहरे तनाव के कारण सहयोग की सीमाएं शायद काफी कम हैं।"

रोसो ने अमेरिकी सांसदों की मौन प्रतिक्रिया पर भी बात की। उन्होंने बताया, "कांग्रेस में रिपब्लिकन राष्ट्रपति ट्रंप के विपरीत रुख अपनाने को लेकर चिंतित हैं।"

उन्होंने आगे कहा, "जहां तक डेमोक्रेट्स की बात है, तो शायद बहुत सी चिंताजनक बातें हो रही हैं, जिनमें से कई अमेरिका के घरेलू मुद्दे हैं और इन्हें हमेशा प्राथमिकता दी जाएगी।"

Point of View

यह स्पष्ट है कि अमेरिका की वर्तमान रणनीति भारत के साथ संबंधों को और अधिक जटिल बना सकती है। भारत को अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करनी चाहिए और किसी भी बाहरी दबाव का सामना करने में सक्षम होना चाहिए।
NationPress
03/09/2025

Frequently Asked Questions

भारत पर अमेरिकी दबाव की रणनीति का क्या प्रभाव पड़ेगा?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह रणनीति भारत के साथ संबंधों को कमजोर कर सकती है।
क्या भारत रूस और चीन के साथ गठबंधन कर रहा है?
विशेषज्ञों का कहना है कि यह केवल एक बैठक मंच है, कार्य मंच नहीं।