क्या भारतीय रंगमंच के ‘भीष्म पितामह’ इब्राहिम अल्काजी के योगदान को भुलाया जा सकता है?

सारांश
Key Takeaways
- इब्राहिम अल्काजी ने भारतीय रंगमंच को एक नई पहचान दी।
- उनका मानना था कि कला का स्रोत जीवन से जुड़ा होना चाहिए।
- उन्होंने 50 से अधिक नाटकों का सफल निर्देशन किया।
- अल्काजी ने रंगमंच को सामाजिक बदलाव का माध्यम बनाया।
- उनकी बेटी ने उनके जीवन पर एक महत्वपूर्ण किताब लिखी है।
नई दिल्ली, 3 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय रंगमंच के ‘भीष्म पितामह’ के रूप में प्रसिद्ध इब्राहिम अल्काजी की पुण्यतिथि 4 अगस्त को मनाई जाएगी। 18 अक्टूबर 1925 को पुणे में जन्मे अल्काजी ने भारतीय रंगमंच को नवीन पहचान प्रदान की और इसे केवल एक विधा नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका बना दिया।
उन्होंने 4 अगस्त 2020 को 94 वर्ष की आयु में नई दिल्ली में दिल का दौरा पड़ने से निधन पाया, लेकिन उनकी विरासत आज भी रंगमंच और कला की दुनिया में जीवित है।
इब्राहिम अल्काजी का जन्म एक सऊदी अरब व्यापारी पिता और कुवैती मां के घर हुआ। नौ भाई-बहनों में से एक, अल्काजी ने 1947 में विभाजन के समय अपने परिवार के पाकिस्तान चले जाने के बावजूद भारत में रहने का निर्णय लिया। उन्होंने पुणे के सेंट विंसेंट हाई स्कूल और मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की और बाद में सुल्तान ‘बॉबी’ पदमसी के थिएटर ग्रुप से अपने रंगमंचीय सफर की शुरुआत की।
साल 1947 में लंदन की ‘रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामाटिक आर्ट’ में प्रशिक्षण ने उनकी कला को एक नया आयाम दिया। 1950 में ‘बीबीसी ब्रॉडकास्टिंग अवॉर्ड’ और ‘ब्रिटिश ड्रामा लीग अवॉर्ड’ जीतने के बाद वह भारत लौटे, क्योंकि उनकी आत्मा भारतीय रंगमंच से जुड़ी थी। अल्काजी ने 1954 में मुंबई में थिएटर यूनिट की स्थापना की और 1962 से 1977 तक नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के निदेशक के रूप में भारतीय रंगमंच को नई दिशा दी।
उनके नेतृत्व में एनएसडी भारत का प्रमुख रंगमंच प्रशिक्षण संस्थान बना, जिसने नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, रोहिणी हट्टंगड़ी, नादिरा बब्बर और अनुपम खेर जैसे कलाकारों को तराशा। उन्होंने 50 से अधिक नाटकों का निर्देशन किया, जिनमें गिरीश कर्नाड के ‘तुगलक’, धर्मवीर भारती के ‘अंधा युग’ और मोहन राकेश के ‘आषाढ़ का एक दिन’ जैसे कालजयी नाटक शामिल हैं।
‘अंधा युग’ को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में मंचित कर उन्होंने रंगमंच को प्रोसेनियम मंच से ऐतिहासिक स्थलों तक ले जाने का साहस दिखाया।
उनकी बेटी अमल अल्लाना ने अपनी किताब ‘इब्राहिम अल्काजी: होल्डिंग टाइम कैप्टिव’ में उनके जीवन और योगदान को बखूबी उकेरा है। यह किताब, 2024 में प्रकाशित होगी। इसमें अल्काजी के व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन पर प्रकाश डाला गया है।
1966 में पद्मश्री, 1991 में पद्म भूषण और 2010 में पद्म विभूषण से नवाजे गए अल्काजी का मानना था, “कला का स्रोत जीवन से जुड़ा होना चाहिए।”
उनका दृष्टिकोण केवल नाटकों का मंचन नहीं था, बल्कि रंगमंच को एक ऐसी कला बनाना था जो सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव का माध्यम बने। उन्होंने स्टैनिस्लाव्स्की की मेथड एक्टिंग और भारतीय पारंपरिक रंगमंच की तकनीकों का समन्वय किया।
अमल ने लिखा है कि उनके पिता के लिए रंगमंच केवल एक कला नहीं, बल्कि जीवन का दर्शन था। किताब में उनके बचपन, 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से प्रभावित होने और प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप के साथ उनके जुड़ाव की कहानियां हैं।
अल्काजी ने 1977 में पत्नी रोशन अल्काजी के साथ दिल्ली में आर्ट हेरिटेज गैलरी की स्थापना की, जो समकालीन कला को बढ़ावा देने का एक मंच बना। उनके संग्रह में 19वीं और 20वीं सदी की ऐतिहासिक तस्वीरें शामिल हैं।