क्या 2 दिसंबर 1984 की रात ने भोपाल को मौत का संदेश भेजा?
सारांश
Key Takeaways
- भोपाल गैस त्रासदी ने हजारों जिंदगियों को प्रभावित किया।
- प्रदूषण के खतरों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए यह दिवस महत्वपूर्ण है।
- सरकारों द्वारा प्रदूषण नियंत्रण के लिए विभिन्न उपाय किए जा रहे हैं।
- पर्यावरण सुरक्षा मानवता के लिए अनिवार्य है।
- मुआवजे के बावजूद, जीवन की कीमत कभी भी लौट नहीं सकती।
नई दिल्ली, 1 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। कल्पना कीजिए, एक ठंडी रात में अचानक हवा में जहर मिल जाए, जो तड़प-तड़पकर अनगिनत लोगों की जान ले ले। 2 दिसंबर 1984 की वह काली रात मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में कुछ ऐसी ही थी।
यूनियन कार्बाइड के कारखाने से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ, जो टैंक 610 में पानी के संपर्क में आने से उत्पन्न दबाव के कारण फट गया था। इस कीटनाशक बनाने वाली गैस के रिसाव से 2 हजार से अधिक मौतें हुईं और 50 हजार से ज्यादा लोग घायल और स्थायी रूप से अक्षम हो गए। आज 41 वर्षों बाद भी भोपाल की गलियों में वे घाव हैं, जो शायद ही कभी भर सकें।
इस दर्दनाक घटना को याद करते हुए, भारत हर साल 2 दिसंबर को राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाता है। 1985 में स्थापित कल्याण आयुक्त कार्यालय और भोपाल गैस रिसाव अधिनियम जैसे कदमों ने पीड़ितों को न्याय दिलाने का प्रयास किया।
मध्य प्रदेश के रसायन और पेट्रो रसायन विभाग की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देश पर अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने फरवरी 1989 में 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 3,000 करोड़ रुपए) का मुआवजा जमा किया।
ये रकम पीड़ितों को इंसाफ दिलाने के लिए थी। लेकिन, असली बंटवारा नवंबर 1992 में शुरू हुआ। शुरू में इसे "ओरिजिनल मुआवजा" कहा गया, जो घायलों, मृतकों के परिवारों और बीमार लोगों को दिया गया। कुल 5,74,394 क्लेम दाखिल हुए थे। 31 जुलाई 2024 तक 5,73,959 क्लेम स्वीकृत किए गए और कुल 1,549.33 करोड़ रुपए बांटे गए। यानी लगभग हर क्लेम को औसतन 27,000 रुपए मिले।
लेकिन, सवाल यह है कि क्या पैसे जिंदगियां लौटा सकते हैं? यह दिवस हमें चेतावनी देता है कि प्रदूषण सिर्फ हवा-पानी का नहीं, बल्कि सभ्यता का भी दुश्मन है।
आज ग्लेशियर पिघल रहे हैं, नदियां सूख रही हैं, और दिल्ली का प्रदूषण सांसों का दुश्मन बन चुका है। इस स्थिति में राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस का महत्व और भी बढ़ जाता है।
भोपाल की त्रासदी को विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक प्रदूषण आपदा मानते हुए, यह दिन जागरूकता फैलाने का एक मंच है। पर्यावरण सुरक्षा को मानव, प्रकृति और समाज के लिए अनिवार्य बताते हुए, यह प्रदूषण के कारकों जैसे फैक्ट्री उत्सर्जन, वाहन धुआं, प्लास्टिक कचरा और नियंत्रण के उपायों जैसे पौधरोपण, रिसाइक्लिंग, साफ ऊर्जा पर जोर देता है।