क्या बिहार चारा घोटाले में उपेंद्र नाथ बिस्वास का अनुभव अनमोल है?
सारांश
Key Takeaways
- चारा घोटाला बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटना है।
- उपेंद्र नाथ बिस्वास ने निष्पक्षता से जांच की।
- लालू यादव को दोषी ठहराया गया।
- जांच में कई राजनीतिक मुद्दे उजागर हुए।
- भ्रष्टाचार और संगठित साजिश का उदाहरण।
कोलकाता, 26 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के चर्चित चारा घोटाले की जांच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सीबीआई के पूर्व संयुक्त निदेशक उपेंद्र नाथ बिस्वास ने इस मामले को अपने जीवन का सबसे चुनौतीपूर्ण और ऐतिहासिक अध्याय बताया है। उपेंद्र नाथ बिस्वास को अक्सर उस व्यक्ति के रूप में जाना जाता है जिसने लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने पर मजबूर किया।
84 वर्षीय सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी ने राष्ट्र प्रेस से विशेष बातचीत में बताया कि उन्होंने इस घोटाले से जुड़े 75 में से सात मामलों की जांच की थी और ये सातों मामले उनके लिए अनमोल हैं, क्योंकि इनमें पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को दोषी ठहराया गया था।
बिस्वास ने कहा, "ये सभी सात मामले लालू प्रसाद यादव से संबंधित थे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट तक राहत पाने की कोशिश की, लेकिन हम हर स्तर पर जीते। यह जांच पूरी तरह सबूतों और निष्पक्षता पर आधारित थी।"
उन्होंने बताया कि जांच के दौरान उन्हें कई दबावों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने किसी भी तरह के राजनीतिक हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया।
उन्होंने कहा, "मुझ पर कई बार लालू प्रसाद यादव पर नरमी बरतने का दबाव डाला गया, लेकिन मैंने कानून और सच्चाई के साथ समझौता नहीं किया। मुझे साफ तौर पर कहा गया था कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे लालू बेदाग साबित हों, लेकिन मैंने सच्चाई के साथ खड़े रहने का निर्णय लिया।"
बिस्वास ने याद किया कि जब यह मामला सामने आया, तब बिहार सरकार खुद जांच करना चाहती थी, लेकिन पटना उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए अनुमति नहीं दी कि "राज्य सरकार स्वयं एक पक्ष है, इसलिए वह निष्पक्ष जांच नहीं कर सकती।" इसके बाद जांच सीबीआई को सौंपी गई।
बिस्वास ने बताया कि प्रारंभिक जांच में यह सामने आया कि घोटाले में शामिल अधिकांश आरोपी निचले स्तर के अधिकारी थे, लेकिन जब गहराई से पड़ताल की गई, तो उनकी कड़ियां सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंचीं।
उन्होंने कहा, "अपराध करने वालों ने उच्च स्तर के लोगों को रिश्वत दी, जिसके बाद आदेश जारी किए गए। यह सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि एक संगठित साजिश थी जिसने पूरे प्रशासनिक ढांचे को चुनौती दी।"
यह घोटाला 1990 से 1996 के बीच सामने आया, जब बिहार के पशुपालन विभाग के अधिकारियों ने नकली आपूर्तिकर्ताओं के माध्यम से सैकड़ों करोड़ रुपए के गबन की साजिश रची। इन अधिकारियों ने पशु चारा, चारे और पशु चिकित्सा दवाओं की झूठी आपूर्ति दिखाकर फर्जी बिल जमा किए और भुगतान के नाम पर सरकारी कोष से भारी रकम निकाली। बाद में वही पैसा अवैध रूप से गबन कर लिया गया।
यह भी आरोप लगाया गया कि निकाली गई राशि का अंततः गबन किया गया। जांच के दौरान, तत्कालीन राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सुप्रीमो और मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव सहित कई राजनेताओं और नौकरशाहों की भूमिका सामने आईं।