क्या सामाजिक क्रांति के जनक बिंदेश्वर पाठक ने सुलभ शौचालय की सोच से समाज की तस्वीर बदली?

सारांश
Key Takeaways
- बिंदेश्वर पाठक का कार्य स्वच्छता में महत्वपूर्ण है।
- सुलभ शौचालय ने लाखों लोगों की जिंदगी में सुधार किया।
- उनके नवाचार ने पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दिया।
- उन्होंने महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा का ख्याल रखा।
- उनका योगदान वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त है।
नई दिल्ली, 15 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय समाजशास्त्री और सामाजिक उद्यमी डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने स्वच्छता और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में एक ऐसी क्रांति का आगाज़ किया, जिसने न केवल भारत बल्कि वैश्विक स्तर पर लाखों लोगों के जीवन में सुधार लाया। सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक के रूप में, उनकी विरासत आज भी स्वच्छ भारत के सपने को प्रेरित करती है। आइए जानते हैं कि बिंदेश्वर पाठक की पुण्यतिथि पर उनके जीवन से जुड़ी प्रेरणादायी बातें।
बिंदेश्वर पाठक का जन्म 2 अप्रैल 1943 को बिहार के वैशाली जिले के रामपुर बघेल गांव में एक परंपरागत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। समाजशास्त्र में स्नातक और पटना विश्वविद्यालय से पीएचडी प्राप्त पाठक ने अपने शोध का विषय 'बिहार में कम लागत की सफाई प्रणाली के माध्यम से सफाईकर्मियों की मुक्ति' चुना।
यह विषय उनके जीवन के मिशन का आधार बना। 1968 में गांधी शताब्दी समारोह समिति के साथ काम करते हुए, उन्होंने मैला ढोने की कुप्रथा और खुले में शौच की समस्या को गहराई से समझा। यहीं से सुलभ इंटरनेशनल की नींव रखने की प्रेरणा मिली।
1970 में बिंदेश्वर पाठक ने सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य मानवाधिकार, पर्यावरणीय स्वच्छता, और सामाजिक सुधार को बढ़ावा देना था। उनके द्वारा विकसित सुलभ शौचालय मॉडल ने भारत में सार्वजनिक स्वच्छता की तस्वीर को पूरी तरह से बदल दिया।
बिंदेश्वर पाठक ने कम लागत वाले ट्विन-पिट पोर-फ्लश शौचालय का आविष्कार किया, जो स्थानीय सामग्री से बनाया जा सकता था। इस मॉडल ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता को सुलभ और किफायती बना दिया। आज देशभर में 10,000 से अधिक सुलभ शौचालय और 15 लाख से ज्यादा घरों में शौचालय इस मॉडल के तहत बनाए गए हैं।
उनका सबसे उल्लेखनीय योगदान सुलभ शौचालयों को बायोगैस संयंत्रों से जोड़कर अपशिष्ट को ऊर्जा और जैविक खाद में बदलने की तकनीक विकसित करना था। इस तकनीक ने अपशिष्ट को ऊर्जा और खाद में बदलकर पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दिया। उनकी यह नवाचार तकनीक भारत सहित दक्षिण अफ्रीका, नेपाल, भूटान और अफगानिस्तान जैसे देशों में अपनाई गई।
उन्होंने वंचित समुदायों, विशेषकर महिलाओं, के लिए स्वच्छता सुविधाओं को प्राथमिकता दी। सुलभ ने स्कूलों, स्लम क्षेत्रों और ग्रामीण इलाकों में शौचालय बनाए, जिससे महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा में सुधार हुआ।
बिंदेश्वर पाठक को उनके कार्यों के लिए अनेक सम्मान मिले। 1991 में उन्हें पद्म भूषण, 2009 में स्टॉकहोम वाटर पुरस्कार और 2016 में गांधी शांति पुरस्कार से नवाजा गया। मरणोपरांत 2024 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया।
15 अगस्त 2023 को 80 वर्षएम्स में हृदय गति रुकने से उनका निधन हो गया था, लेकिन उनके कार्यों की गूंज आज भी समाज में जीवित है।