क्या बिष्णुपद मुखर्जी का योगदान भारतीय चिकित्सा विज्ञान में अद्वितीय है?

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क्या बिष्णुपद मुखर्जी का योगदान भारतीय चिकित्सा विज्ञान में अद्वितीय है?

सारांश

बिष्णुपद मुखर्जी का जीवन और कार्य भारतीय चिकित्सा विज्ञान के लिए महत्वपूर्ण थे। उनका योगदान औषधीय अनुसंधान और दवा मानकीकरण में अद्वितीय है, जिससे उन्होंने विज्ञान को समाज की सेवा का माध्यम बनाया। उनकी उपलब्धियाँ आज भी चिकित्सा क्षेत्र में महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।

Key Takeaways

  • बिष्णुपद मुखर्जी का जीवन औषधीय विज्ञान में समर्पण का प्रतीक है।
  • उनका शोध भारत में दवा मानकीकरण को सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण था।
  • मुखर्जी की अध्यक्षता में 'भारतीय फार्माकोपिया' का दूसरा संस्करण प्रकाशित हुआ।
  • उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • उनकी उपलब्धियाँ आज भी चिकित्सा क्षेत्र में प्रेरणा स्रोत हैं।

नई दिल्ली, 29 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। भारत के चिकित्सा इतिहास में कुछ ऐसे प्रतिष्ठित नाम हैं, जिन्होंने विज्ञान को केवल प्रयोगशाला तक सीमित नहीं रखा, बल्कि समाज की सेवा का माध्यम बनाया। बिष्णुपद मुखर्जी, ऐसे ही एक वैज्ञानिक थे जिनका जीवन औषधीय अनुसंधान, दवा मानकीकरण और चिकित्सा शिक्षा को समर्पित रहा।

1 मार्च 1903 को पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के बैरकपुर में जन्मे मुखर्जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल से हासिल की। आगे की पढ़ाई के लिए वे कोलकाता आए, जहां उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से इंटरमीडिएट और कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से बैचलर ऑफ मेडिसिन की डिग्री प्राप्त की।

मुखर्जी ने ईडन अस्पताल में ग्रीन-आर्मटिज के अधीन 18 महीने तक कार्य किया, लेकिन उनका असली मोड़ तब आया जब उन्होंने सर रामनाथ चोपड़ा के मार्गदर्शन में कलकत्ता स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन में शोध कार्य आरंभ किया। चोपड़ा ने उन्हें चिकित्सा पद्धति छोड़कर शोध में उतरने के लिए प्रेरित किया, और यही निर्णय भारतीय औषधि विज्ञान के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ।

1930 में वे ड्रग इन्क्वायरी कमीशन में सहायक सचिव बने और भारत में दवा मानकीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण रिपोर्ट तैयार की। 1931 से 1933 तक उन्होंने स्वदेशी वनस्पति दवाओं पर शोध किया। उन्हें रॉकफेलर फाउंडेशन से फेलोशिप मिली, जिसके तहत वे चीन, अमेरिका और जापान गए। उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय, म्यूनिख और हैम्पस्टेड में प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों के साथ कार्य किया।

1947 में उन्हें सेंट्रल ड्रग्स लेबोरेटरी का नेतृत्व सौंपा गया। बाद में उन्होंने चित्तरंजन नेशनल कैंसर रिसर्च सेंटर में निदेशक का पद संभाला। सेवानिवृत्ति के बाद भी उन्होंने बायोकेमिस्ट्री विभाग में विजिटिंग वैज्ञानिक के रूप में योगदान देना जारी रखा। मुखर्जी के नेतृत्व में 'कोडेक्सा' का गठन हुआ, जो आज भी वनस्पति दवाओं का प्रमुख संदर्भ ग्रंथ माना जाता है।

उन्होंने उस समिति की अध्यक्षता की जिसने 1966 में 'भारतीय फार्माकोपिया' का दूसरा संस्करण प्रकाशित किया। उनके योगदान को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें पद्मश्री (1962), ग्रिफिथ मेमोरियल पुरस्कार, निल्मोनी ब्रह्मचारी स्वर्ण पदक, आचार्य पिसीरे पदक (1976), एन.के. सेन मेमोरियल पदक (1963), और स्कीब इंटरनेशनल अवॉर्ड (1962) शामिल हैं।

1946 से 1952 तक वे भारतीय विज्ञान कांग्रेस संघ के महासचिव रहे और 1962 में इसके अध्यक्ष बने। वे विश्व स्वास्थ्य संगठन की विशेषज्ञ समिति के सदस्य भी रहे, जहां उन्होंने भारत की वैज्ञानिक दृष्टिकोण को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया। 1947 में, उन्हें केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला के निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया और तीन साल तक फार्माकोग्नॉसी प्रयोगशाला की दोहरी जिम्मेदारी भी संभाली। इस अवधि के दौरान, जब उन्होंने दवा अनुसंधान के लिए एक विशेष प्रयोगशाला की अवधारणा को आगे बढ़ाया, तो सीएसआईआर ने एडवर्ड मेलनबी की सहायता से केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई), लखनऊ की स्थापना की और मुखर्जी को संस्थान का पहला स्थायी निदेशक नियुक्त किया गया।

30 जुलाई 1979 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनका योगदान आज भी भारतीय चिकित्सा प्रणाली की नींव में जीवित है। उन्होंने विज्ञान को सेवा का माध्यम बनाया और भारत को औषधीय शोध के क्षेत्र में वैश्विक पहचान दिलाई।

Point of View

बल्कि यह हमें प्रेरित करता है कि विज्ञान का उपयोग समाज के उत्थान में कैसे किया जा सकता है। उनका जीवन और कार्य युवा वैज्ञानिकों के लिए एक आदर्श उदाहरण है, और हमें उनके योगदान को याद रखना चाहिए।
NationPress
29/07/2025

Frequently Asked Questions

बिष्णुपद मुखर्जी का मुख्य योगदान क्या था?
उनका मुख्य योगदान औषधीय अनुसंधान, दवा मानकीकरण और चिकित्सा शिक्षा में था।
बिष्णुपद मुखर्जी ने किस संस्थान की स्थापना की?
उन्होंने केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआई) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बिष्णुपद मुखर्जी को कौन-कौन से पुरस्कार मिले?
उन्हें पद्मश्री, ग्रिफिथ मेमोरियल पुरस्कार, और आचार्य पिसीरे पदक सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।