क्या बोन मैरो ही सब कुछ तय करता है, जैसे इम्युनिटी और ब्लड ग्रुप?

सारांश
Key Takeaways
- बोन मैरो रक्त कोशिकाओं का निर्माण करता है।
- यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है।
- बोन मैरो की कमजोरी से गंभीर बीमारियां हो सकती हैं।
- आधुनिक चिकित्सा में स्टेम सेल थेरेपी का महत्व बढ़ रहा है।
- आयुर्वेद में इसे मज्जा धातु कहा गया है।
नई दिल्ली, २५ सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। हमारे शरीर की कार्यप्रणाली में अस्थि मज्जा अर्थात बोन मैरो की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह हड्डियों के भीतर स्थित एक स्पंजी ऊतक है, जिसे रक्त निर्माण का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। प्रत्येक दिन लगभग ५०-१०० अरब नई रक्त कोशिकाएं इन्हीं से तैयार होती हैं।
इसमें दो प्रकार के मज्जा होते हैं: लाल मज्जा और पीला मज्जा। लाल मज्जा से लाल रक्त कोशिकाएं, श्वेत रक्त कोशिकाएं और प्लेटलेट्स बनते हैं, जबकि पीला मज्जा वसा को संचित करता है और आवश्यकता पड़ने पर रक्त निर्माण में सहायक होता है। बचपन में अधिकांश हड्डियों में लाल मज्जा होता है, लेकिन उम्र बढ़ने पर इसका एक बड़ा हिस्सा पीले मज्जा में बदल जाता है और वृद्धावस्था में यह मुख्यतः छाती, श्रोणि और पसलियों की हड्डियों में सक्रिय रहता है।
बोन मैरो न केवल रक्त का निर्माण करता है, बल्कि हमारी प्रतिरक्षा शक्ति की नींव भी रखता है। यहीं से बनने वाली श्वेत रक्त कोशिकाएं शरीर को वायरस, बैक्टीरिया और फंगस से सुरक्षा प्रदान करती हैं। यही कारण है कि जब भी शरीर में अधिक रक्तस्राव होता है, अस्थि मज्जा तुरंत सक्रिय होकर नई रक्त कोशिकाएं बनाने लगता है। इतना ही नहीं, यही हमारे ब्लड ग्रुप को भी निर्धारित करता है।
आधुनिक शोध यह दर्शाते हैं कि अस्थि मज्जा से उत्पन्न कुछ कोशिकाएं मस्तिष्क की सूजन को प्रभावित करती हैं, यानी इसका असर मानसिक स्वास्थ्य पर भी होता है। इसके अंदर मौजूद निच नामक सूक्ष्म वातावरण स्टेम कोशिकाओं को यह निर्देश देता है कि उन्हें किस प्रकार की कोशिका बनना है। यही कारण है कि भविष्य की चिकित्सा पद्धतियों में स्टेम सेल थेरेपी, कृत्रिम अंग निर्माण और ऊतक पुनर्निर्माण में इसका महत्व तेजी से बढ़ रहा है।
बोन मैरो की कमजोरी कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है। इनमें एप्लास्टिक एनीमिया (जहां बोन मैरो पर्याप्त रक्त कोशिकाएं नहीं बना पाता), ल्यूकेमिया (रक्त कैंसर), मायलोफाइब्रोसिस (मज्जा का सख्त होना), थैलेसीमिया (असामान्य आरबीसी का निर्माण) और कीमोथेरेपी या संक्रमण से होने वाली समस्याएं शामिल हैं। ऐसे मामलों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट जीवन रक्षक साबित होता है।
आयुर्वेद में बोन मैरो को मज्जा धातु कहा गया है। चरक संहिता के अनुसार, मज्जा हड्डियों के भीतर स्थित वह पोषक तत्व है जो शरीर को बल और स्थिरता प्रदान करता है। गिलोय, अश्वगंधा, शतावरी, चुकंदर, अनार, घी और दूध जैसे आहार को मज्जा धातु के लिए श्रेष्ठ माना गया है। वात दोष की वृद्धि और पोषण की कमी अस्थि मज्जा की कमजोरी का प्रमुख कारण माने जाते हैं।