क्या बृजेश मिश्रा ने भारत के पहले एनएसए के रूप में सुरक्षा और कूटनीति को नई दिशा दी?

सारांश
Key Takeaways
- बृजेश मिश्रा ने भारत के पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उन्होंने 1998 के पोखरण-II परमाणु परीक्षण में केंद्रीय भूमिका निभाई।
- रूस का समर्थन जुटाने में उनकी क्षमता अद्वितीय थी।
- उन्होंने पाकिस्तान और चीन के साथ संबंधों में सुधार के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए।
- उनकी दूरदर्शिता ने भारत की सुरक्षा नीतियों को मजबूत किया।
नई दिल्ली, 27 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। आज के समय में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) का पद देश के सबसे प्रभावशाली पदों में गिना जाता है और वर्तमान एनएसए अजित डोभाल इस बात का प्रमाण हैं। लेकिन इस महत्वपूर्ण पद की बुनियाद रखने वाले व्यक्ति थे बृजेश मिश्रा, जो भारत के पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान सचिव थे। उनका कार्यकाल भारत की सुरक्षा और कूटनीति को नई दिशा देने में महत्वपूर्ण रहा।
29 सितंबर 1928 को मध्य प्रदेश में जन्मे बृजेश मिश्रा एक राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता द्वारका प्रसाद मिश्रा मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और इंदिरा गांधी के करीबी सहयोगी थे। उन्होंने अपने परिवार से राजनीति और कूटनीति की बारीकियां सीखी।
हालांकि, अटल बिहारी वाजपेयी की नीतियों के प्रति उनके झुकाव ने उन्हें भाजपा से जोड़ा।
1951 में भारत की विदेश सेवा (आईएफएस) में शामिल होने के बाद, मिश्रा ने अपने कूटनीतिक करियर की शुरुआत की। उन्होंने इंडोनेशिया में भारत के राजदूत और जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र के पास भारत के स्थायी प्रतिनिधि के रूप में कार्य किया।
विदेश मंत्रालय में सचिव के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद, 1998 में उन्हें वाजपेयी सरकार में प्रधान सचिव और भारत के पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया, जिसे उन्होंने मई 2004 तक संभाला। 1998 के पोखरण-II परमाणु परीक्षण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
जब कई देशों ने भारत पर प्रतिबंध लगाने की धमकी दी, तो मिश्रा ने अपने कूटनीतिक कौशल से वैश्विक मंच पर भारत का पक्ष मजबूती से रखा।
उन्होंने रूस का समर्थन प्राप्त किया और अमेरिका, चीन, और यूरोपीय संघ की आलोचनाओं को बेअसर किया। इसके अलावा, वाजपेयी की ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा, पाकिस्तान और चीन के साथ संबंधों में सुधार, और अमेरिका के साथ रणनीतिक संवाद की शुरुआत में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
मिश्रा ने भारत-चीन सीमा विवाद को सुलझाने के लिए विशेष प्रतिनिधि के रूप में वार्ताएं कीं। वाजपेयी के विश्वसनीय सलाहकार के रूप में उन्होंने संकटमोचक की भूमिका निभाई।
उन्होंने भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीति को एक मजबूत ढांचा प्रदान किया। उनकी दूरदर्शिता ने राष्ट्रीय सुरक्षा को सशक्त किया, जो आज भी देश की सुरक्षा नीतियों का आधार है।
28 सितंबर 2012 को नई दिल्ली में दिल की बीमारी के कारण उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु को एक युग का अंत माना गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी भारत की वैश्विक छवि में जीवित है।