क्या पूर्व सीएम के बेटे चैतन्य बघेल की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं?

सारांश
Key Takeaways
- चैतन्य बघेल का मामला राजनीतिक एवं न्यायिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
- ईओडब्ल्यू की रिमांड में पूछताछ जारी है।
- सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय को शीघ्र सुनवाई के लिए निर्देशित किया है।
- छत्तीसगढ़ शराब घोटाले की गहराई में जाने की आवश्यकता है।
- मामले के प्रभावों का सभी संबंधित पक्षों पर पड़ने की संभावना है।
रायपुर, २४ सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। छत्तीसगढ़ के चर्चित शराब घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल की समस्याएं समाप्त होने का नाम नहीं ले रही हैं। ईओडब्ल्यू विशेष कोर्ट से जमानत खारिज होने के बाद उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने निर्णय सुरक्षित रख लिया है। अब चैतन्य बघेल को अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) की रिमांड में भेजा गया है।
उच्च न्यायालय से तुरंत राहत न मिलने के बाद ईओडब्ल्यू ने चैतन्य बघेल और व्यवसायी दीपेंद्र चावड़ा को गिरफ्तार कर विशेष अदालत में पेश किया, जहां ईओडब्ल्यू को दोनों की रिमांड सौंप दी गई। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पुत्र चैतन्य बघेल १३ दिन यानी ६ अक्टूबर तक ईओडब्ल्यू की रिमांड में रहेंगे, जबकि दीपेंद्र चावड़ा को २९ सितंबर तक पुलिस रिमांड पर सौंपा गया। इस दौरान ईओडब्ल्यू दोनों से पूछताछ करेगी।
छत्तीसगढ़ शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने चैतन्य बघेल को गिरफ्तार किया था।
पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके बेटे चैतन्य बघेल की याचिकाओं पर सुनवाई से स्पष्ट इनकार करते हुए उन्हें अंतरिम राहत के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की सलाह दी थी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय को निर्देश दिया कि वह दोनों की अर्जियों पर शीघ्र सुनवाई करे।
भूपेश बघेल और उनके बेटे की याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कड़ी टिप्पणियाँ की थीं। कोर्ट ने कहा था कि दोनों ने एक ही याचिका में पीएमएलए के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देते हुए जमानत जैसी व्यक्तिगत राहत की भी मांग की है, जो उचित नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने पिता-पुत्र के सीधे सुप्रीम कोर्ट आने पर भी सवाल उठाया था। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि जब किसी मामले में कोई प्रभावशाली व्यक्ति शामिल होता है, तो वह सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाता है। अगर हम हर मामले की सुनवाई करेंगे तो अन्य अदालतों का क्या उपयोग रह जाएगा? यदि ऐसा होता रहा तो गरीब लोग कहाँ जाएंगे? एक आम आदमी और साधारण वकील के पास सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने की कोई जगह नहीं बचेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने के नाम पर याचिकाकर्ता सीधे अंतिम राहत नहीं मांग सकते। कोर्ट ने कहा कि एक ही याचिका में आप सब कुछ नहीं मांग सकते। इसके लिए निर्धारित प्रक्रिया और मंच हैं। कोर्ट ने चैतन्य बघेल को जमानत याचिका के लिए उच्च न्यायालय जाने को कहा और यह भी निर्देश दिया कि उच्च न्यायालय इस पर शीघ्र सुनवाई करे। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए की धारा ५० और ६३ को चुनौती देने के लिए अलग से याचिका दाखिल करने की सलाह दी थी।