क्या आप जानते हैं फिल्म निर्माता चेतन आनंद ने हिंदी सिनेमा के 'काका' को कैसे खोजा?

सारांश
Key Takeaways
- चेतन आनंद ने सिनेमा में क्रांति की है।
- उन्होंने राजेश खन्ना जैसे सितारों को पहचान दी।
- उनकी फिल्में आज भी दर्शकों के दिलों में बसी हुई हैं।
- चेतन आनंद की विरासत आज भी जिंदा है।
- उनका दृष्टिकोन सिनेमा में नए आयामों को जोड़ता है।
मुंबई, 5 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय सिनेमा के गौरवमयी इतिहास में कुछ ऐसे नाम हैं, जो न केवल कला के प्रति अपनी संवेदनशीलता के लिए, बल्कि अपनी उत्कृष्ट दृष्टि के लिए भी हमेशा याद किए जाते हैं। चेतन आनंद, एक ऐसा व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने नवीनता को पर्दे पर उतारकर भारतीय सिनेमा को एक वैश्विक पहचान दिलाई। उनकी पुण्यतिथि 6 जुलाई को है। वह एक ऐसे निर्माता थे, जिन्होंने शानदार फिल्में बनाईं और राजेश खन्ना जैसे पहले सुपरस्टार को पहचान दिलाई।
3 जनवरी 1921 को लाहौर (पाकिस्तान) में एक वकील पिशोरी लाल आनंद के घर जन्मे चेतन आनंद ने अपनी शिक्षा गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय और लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से प्राप्त की। उन्हें हिंदू शास्त्रों और अंग्रेजी साहित्य में गहरी रुचि थी। 1930 के दशक में, वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े और फिर दून स्कूल में पढ़ाया, लेकिन उनका असली लक्ष्य सिनेमा था। 1940 के दशक में, उन्होंने सम्राट अशोक पर एक स्क्रिप्ट लिखी, जो उन्हें मुंबई ले आई। यहीं से शुरू हुआ उनका वह सिनेमाई सफर, जिसने भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा दी।
चेतन आनंद ने अपने पहले ही फिल्म से एक नया इतिहास रचा। उनकी वर्ष 1946 में आई डेब्यू फिल्म 'नीचा नगर' ने न केवल भारतीय सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई, बल्कि कान्स फिल्म फेस्टिवल में ग्रैंड प्रिक्स (अब पाल्म डी'ओर) पुरस्कार जीतकर भारत का नाम रोशन किया। यह फिल्म, जो मैक्सिम गोर्की के नाटक 'लोअर डेप्थ्स' से प्रेरित थी, सामाजिक यथार्थवाद का एक मजबूत उदाहरण थी। इसने पानी के नियंत्रण के जरिए गरीबों के शोषण की कहानी को पर्दे पर पेश किया।
1949 में, चेतन ने अपने छोटे भाई देवानंद के साथ नवकेतन प्रोडक्शंस की स्थापना की, जिसने हिंदी सिनेमा को कई यादगार फिल्में दीं। उनकी पहली फिल्म 1950 में आई 'अफसर' थी, जिसमें देवानंद और सुरैया ने अभिनय किया। इसके बाद 1954 में आई 'टैक्सी ड्राइवर', जो दर्शकों के बीच सफल रही। इस फिल्म ने न केवल दर्शकों का दिल जीता, बल्कि एसडी बर्मन को सर्वश्रेष्ठ संगीत के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार भी दिलाया।
फिल्में 'आंधियां' और 'फंटूश' ने उनकी बहुमुखी प्रतिभा को दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया। 1957 में, चेतन ने 'अर्पण' और 'अंजलि' जैसी फिल्मों का निर्देशन किया, जिनमें उन्होंने स्वयं भी अभिनय किया।
1960 में, चेतन ने अपनी प्रोडक्शन कंपनी हिमालया फिल्म्स की शुरुआत की और संगीतकार मदान मोहन, गीतकार कैफी आजमी और अभिनेत्री प्रिया राजवंश के साथ एक ऐसी टीम बनाई, जिसने हिंदी सिनेमा को कुछ अनमोल रत्न दिए। 'हकीकत' 1964 में आई, जो भारत की पहली पूर्ण लंबाई वाली युद्ध फिल्म रही और इसने 1962 के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि में देशभक्ति और युद्ध के दृश्यों को प्रस्तुत किया। इस फिल्म ने लद्दाख की 15,000 फीट ऊंचाई पर शूटिंग के साथ तकनीकी और कथानक के स्तर पर नए मानदंड स्थापित किए। इसे 1965 में नेशनल अवार्ड फॉर सेकंड बेस्ट फीचर फिल्म मिला।
चेतन आनंद का सबसे बड़ा योगदान रहा राजेश खन्ना को सिनेमा जगत में लाना। फिल्म निर्माता ने एक एक्टिंग प्रतियोगिता में राजेश खन्ना को खोजा और 1966 में आई फिल्म 'आखिरी खत' में उन्हें पहला ब्रेक दिया। इसके बाद, चेतन ने राजेश खन्ना को 1981 में रिलीज फिल्म 'कुदरत' में मौका दिया। इस फिल्म का गाना 'हमें तुमसे प्यार कितना' आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है।
चेतन आनंद की जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थीं अभिनेत्री प्रिया राजवंश, जिन्हें उन्होंने 'हकीकत' के दौरान खोजा। प्रिया ने चेतन की हर फिल्म में काम किया और दोनों का रिश्ता जीवनभर बना रहा। हालांकि, चेतन अपनी पत्नी उमा आनंद से अलग हो चुके थे और कानूनी कारणों से प्रिया के साथ विवाह नहीं कर सके। चेतन ने प्रिया को मुंबई के जुहू में अपने बंगले में आजीवन रहने का अधिकार दिया था।
चेतन की अन्य महत्वपूर्ण फिल्मों में 'हीर रांझा', 'हंसते जख्म' और 'हिंदुस्तान की कसम' शामिल हैं। 'हीर रांझा' के गाने, जैसे 'मिलो न तुम तो हम घबराएं' और 'यह दुनिया यह महफिल' आज भी लोकप्रिय हैं। 1988 में, चेतन ने दूरदर्शन के लिए 'परम वीर चक्र' सीरियल बनाया, जिसमें भारत के परम वीर चक्र विजेताओं की कहानियां दिखाई गईं। इस टीवी शो को दर्शकों से खूब सराहना मिली।
चेतन आनंद को उनके सिनेमाई योगदान के लिए कई सम्मान मिले। 1995 में कान्स फिल्म फेस्टिवल ने 'नीचा नगर' की गोल्डन जुबली मनाने के लिए चेतन को विशेष सम्मान दिया।
चेतन आनंद की सिनेमाई विरासत आज भी जीवित है। उनकी पत्नी उमा आनंद और बेटे केतन आनंद ने 2006 में उनकी जीवनी 'चेतन आनंद: द पोएटिक्स ऑफ फिल्म' प्रकाशित की और 2008 में एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई। चेतन आनंद का 6 जुलाई 1997 में निधन हो गया था।