क्या चीनी विदेश मंत्रालय ने यूएन 2758 प्रस्ताव पर चीन का पक्ष स्पष्ट किया?

सारांश
Key Takeaways
- यूएन 2758 प्रस्ताव ने चीन के सभी अधिकारों को बहाल किया।
- एक चीन सिद्धांत को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है।
- यूएन में चीन के प्रतिनिधित्व का मुद्दा सुलझ गया है।
- ताइवान का स्थान कभी नहीं बदला है।
- चुनौती देने से अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को नुकसान होगा।
बीजिंग, 1 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। चीनी विदेश मंत्रालय ने 30 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 2758 प्रस्ताव के संबंध में चीन के दृष्टिकोण पर एक दस्तावेज जारी किया।
दस्तावेज में बताया गया है कि 25 अक्टूबर 1971 को 26वीं यूएन महासभा ने भारी बहुमत से 2758 प्रस्ताव पारित किया, जिसके तहत चीन लोक गणराज्य के सभी अधिकार बहाल किए गए और इसे यूएन में एकमात्र कानूनी प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी गई। यह प्रस्ताव चीन के समग्र प्रतिनिधित्व के मुद्दे, जिसमें ताइवान भी शामिल है, का पूर्ण समाधान करता है।
इस दस्तावेज में कहा गया है कि यूएन महासभा के 2758 प्रस्ताव की स्वीकृति से एक चीन सिद्धांत को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है। मतदान की प्रक्रिया से यह स्पष्ट होता है कि अमेरिका और कुछ अन्य देशों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को एक चीन सिद्धांत से हटाने का प्रयास विफल रहा है। 2758 प्रस्ताव को चुनौती देना, विश्व युद्ध के बाद स्थापित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था और यूएन की प्रतिष्ठा को चुनौती देने के समान है, जो ऐतिहासिक प्रवृत्तियों के विपरीत है और अंततः निश्चय ही असफल होगा।
इस दस्तावेज में यह भी उल्लेख किया गया है कि ताइवान कभी भी एक स्वतंत्र देश नहीं रहा है। ताइवान जलडमरूमध्य के दोनों तटों का पूर्ण एकीकरण नहीं हुआ है, लेकिन ताइवान का चीन का हिस्सा होने का स्थान कभी भी नहीं बदला और इसे बदलने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
(साभार--चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)