क्या कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से सटे गांवों का विकास संभव है? इको डेवलपमेंट कमेटियों को मिले 1.14 करोड़

सारांश
Key Takeaways
- इको डेवलपमेंट कमेटियों को 1.14 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता मिली है।
- यह धनराशि ग्रामीण विकास और संघर्ष कम करने में खर्च होगी।
- ग्रामीणों को बाघ रक्षक कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षण दिया जाएगा।
- कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों की सर्वाधिक आबादी है।
- इस पहल से वन्यजीव संरक्षण मजबूत होगा।
नैनीताल, 19 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तराखंड के नैनीताल जिले के रामनगर में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से लगे गांवों की इको डेवलपमेंट कमेटियों (इडीसी) को 1 करोड़ 14 लाख रुपये की वित्तीय सहायता दी गई है। यह राशि 19 इडीसी को प्रदान की गई है। अब इस धन का उपयोग ग्रामीण विकास कार्यों और मानव–वन्यजीव संघर्ष को कम करने में किया जाएगा। विशेष बात यह है कि इन इको डेवलपमेंट कमेटियों को बाघ रक्षक कार्यक्रम से भी जोड़ा जा रहा है, जिससे ग्रामीण बाघ संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेंगे।
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व प्रशासन ने वन्यजीव संरक्षण और ग्रामीण विकास को एक साथ लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। पार्क प्रशासन द्वारा रिजर्व से सटे 19 इको डेवलपमेंट कमेटियों (इडीसी) को 1 करोड़ 14 लाख रुपये का वितरण किया गया है। यह राशि गांवों के बुनियादी ढांचे के विकास, आजीविका बढ़ाने वाले प्रोजेक्ट्स और मानव–वन्यजीव संघर्ष को कम करने वाली गतिविधियों पर खर्च की जाएगी। अधिकारियों का मानना है कि इस पहल से न केवल ग्रामीणों को प्रत्यक्ष लाभ मिलेगा, बल्कि उनकी सहभागिता से जंगल और वन्यजीवों की सुरक्षा भी मजबूत होगी।
इस अवसर पर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व प्रशासन ने बाघ रक्षक कार्यक्रम का भी ऐलान किया। इस योजना के अंतर्गत ग्रामीणों को प्रशिक्षण देकर बाघ संरक्षण के प्रति जागरूक और सक्रिय किया जाएगा। ग्रामीणों की मदद से मानव और बाघ के बीच बढ़ते टकराव को कम करने का प्रयास किया जाएगा। बाघ रक्षक कार्यक्रम से जुड़े ग्रामीण आगे चलकर वन विभाग की आंख और कान साबित होंगे। वे जंगलों और गांवों के बीच होने वाली गतिविधियों पर नजर रखेंगे, जिससे वन्यजीव संरक्षण की दिशा में ठोस परिणाम सामने आएंगे।
गौरतलब है कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व भारत में बाघों की सबसे अधिक आबादी वाला रिजर्व है। यहां बाघ और इंसानों के बीच टकराव की घटनाएं भी समय-समय पर सामने आती रही हैं। ऐसे में इको डेवलपमेंट कमेटियों को सशक्त बनाकर टकराव रोकने और संरक्षण कार्यों को आगे बढ़ाना एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
इस मामले में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक डॉ. साकेत बडोला ने कहा कि इको डेवलपमेंट कमेटियों को दी गई यह राशि गांवों के विकास के साथ-साथ बाघ संरक्षण की दिशा में भी उपयोग होगी। बाघ रक्षक कार्यक्रम के तहत ग्रामीणों को जोड़ा जाएगा, जिससे मानव–बाघ संघर्ष को कम करने में मदद मिलेगी और बाघों की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी।