क्या दक्षिण कश्मीर में सेना की पहल से गोलियों की जगह सिलाई मशीनों की आवाज गूंज रही है?

सारांश
Key Takeaways
- दक्षिण कश्मीर में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सेना का प्रयास महत्वपूर्ण है।
- प्रोजेक्ट सद्भावना के तहत कौशल विकास पाठ्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।
- महिलाएं अब 20,000 रुपए तक की कमाई कर रही हैं।
- सेना के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव आया है।
- यह केंद्र महिलाओं के लिए आशा और अवसर का प्रतीक बन गया है।
नई दिल्ली, 16 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। जहां आतंकवादियों ने जम्मू कश्मीर में हजारों घरों को उजाड़ा है, वहीं भारतीय सेना अब यहाँ लोगों के घर बसाने और उनकी आजीविका को सहारा देने के लिए उन्हें प्रशिक्षण प्रदान कर रही है। विशेष रूप से, दक्षिण कश्मीर में महिलाओं को रोजगार से जोड़ने का कार्य किया जा रहा है।
सेना के सहयोग से, दक्षिण कश्मीर के शोपियां और पुलवामा जिलों में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए एंटरप्रेन्योरशिप एंड स्किल डेवलपमेंट सेंटर की स्थापना की गई है। बालापोर का यह केंद्र एक मील का पत्थर साबित हो रहा है। यही कारण है कि इस इलाके में गोलियों का शोर कम और सिलाई मशीनों की आवाज अधिक सुनाई देने लगी है, और इसका बड़ा श्रेय भारतीय सेना को जाता है।
सेना के प्रयासों की बदौलत, आज दक्षिण कश्मीर की कई महिलाएं 20,000 रुपए तक की कमाई कर रही हैं। इससे न केवल महिलाओं के जीवन में स्वावलंबन आया है, बल्कि सेना के प्रति उनका दृष्टिकोण भी बदल गया है। अब सैकड़ों महिलाएं और उनके परिवार सेना को एक सहयोगी के रूप में देख रहे हैं। इस अभियान से जुड़ी महिलाएं अपने और अपने परिवार का जीवनयापन करने में सक्षम हो गई हैं, जिससे उनके परिवारों को एक नई दिशा मिली है।
भारतीय सेना के अनुसार, यह एंटरप्रेन्योरशिप एंड स्किल डेवलपमेंट सेंटर 22 जुलाई 2020 को प्रोजेक्ट सद्भावना के अंतर्गत स्थापित किया गया था। यह 15 फरवरी 2021 से तोहा फाउंडेशन द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त कर रहा है। इस केंद्र की विशेषताओं में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई व्यावसायिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम शामिल हैं, जैसे कि सिलाई, कढ़ाई, फूड प्रोसेसिंग, कंप्यूटर और ड्राइविंग।
सेना के अनुसार, कश्मीर में प्रोजेक्ट सद्भावना और तोहा फाउंडेशन के संयुक्त प्रयास से अब तक 28 कौशल विकास पाठ्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं। इन पाठ्यक्रमों का कश्मीर की महिलाओं को बड़ा लाभ मिला है। इस वर्ष अकेले 150 लड़कियों ने विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण पूरा किया है। इस परियोजना का कुल खर्च लगभग 1.05 करोड़ रुपए है।
आर्थिक सहयोग की बात करें तो प्रोजेक्ट सद्भावना का योगदान 60 लाख रुपए है, जबकि तोहा फाउंडेशन का योगदान 45 लाख रुपए है। भारतीय सेना का कहना है कि यह केंद्र दक्षिण कश्मीर की महिलाओं के लिए आशा और अवसर का प्रतीक बन गया है, जो आत्मविश्वास, कुशलता और आर्थिक स्वतंत्रता की दिशा में प्रेरणा दे रहा है। बालापोर का यह केंद्र एक जीवंत उदाहरण है कि जब संस्थाएं मिलकर कार्य करती हैं, तो समाज में सकारात्मक बदलाव संभव होता है।