क्या न्यूनतम उपस्थिति के आधार पर लॉ छात्रों को परीक्षा देने से रोका जा सकता है?: दिल्ली हाईकोर्ट
सारांश
Key Takeaways
- न्यूनतम उपस्थिति के आधार पर छात्रों को परीक्षा से नहीं रोका जा सकता।
- कोर्ट ने सख्त उपस्थिति नियमों की समीक्षा की आवश्यकता बताई।
- जीआरसी का गठन सभी कॉलेजों के लिए अनिवार्य होगा।
- छात्रों की उपस्थिति की जानकारी उनके अभिभावकों को दी जानी चाहिए।
- कम उपस्थित छात्रों के लिए अतिरिक्त कक्षाएं आयोजित की जाएंगी।
नई दिल्ली, 3 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी भी लॉ छात्र को न्यूनतम उपस्थिति की कमी के चलते परीक्षा में बैठने से वंचित नहीं किया जा सकता है। एमिटी यूनिवर्सिटी में अध्ययनरत लॉ छात्र सुशांत रोहिल्ला के आत्महत्या मामले में एक स्वतः संज्ञान जनहित याचिका (पीआईएल) के संबंध में ये निर्देश जारी किए गए हैं।
सोमवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि किसी भी छात्र को सेमेस्टर परीक्षा में भाग लेने से नहीं रोका जा सकता और अनिवार्य उपस्थिति की कमी के कारण उनकी अगली सेमेस्टर में प्रगति को बाधित नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) को उपस्थिति नियमों में संशोधन का निर्देश दिया।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि कठोर उपस्थिति नियमों के चलते छात्रों में मानसिक तनाव और आत्महत्या जैसी घटनाएं नहीं होनी चाहिए। किसी युवा जीवन की हानि अनिवार्य उपस्थिति के नियमों की कीमत पर नहीं होनी चाहिए।
कोर्ट ने यह सुझाव दिया कि छात्रों को परीक्षा से रोकने के बजाय, कम कठोर नियमों की आवश्यकता है। सभी लॉ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के लिए शिकायत निवारण आयोग (जीआरसी) का गठन अनिवार्य होगा। यूजीसी को भी अपने नियमों में संशोधन करना होगा ताकि जीआरसी के 51 प्रतिशत सदस्य छात्र हों।
सुशांत रोहिल्ला ने 10 अगस्त 2016 को दिल्ली के सरोजनी नगर स्थित अपने आवास पर आत्महत्या की थी। आरोप था कि कम उपस्थिति के कारण संस्थान और कुछ सदस्यों ने उन्हें प्रताड़ित किया। उन्हें बीए एलएलबी पाठ्यक्रम में एक पूरा शैक्षणिक वर्ष दोहराने के लिए मजबूर किया गया, जिसके कारण उन्होंने आत्महत्या की।