क्या दिल्ली हाईकोर्ट ने ‘ताज स्टोरी’ के खिलाफ याचिका खारिज की? कहा, ‘हम सुपर सेंसर बोर्ड नहीं हैं’
सारांश
Key Takeaways
- दिल्ली हाईकोर्ट ने 'ताज स्टोरी' के खिलाफ याचिका को खारिज किया।
- कोर्ट ने कहा, 'हम सुपर सेंसर बोर्ड नहीं हैं।'
- याचिकाकर्ता को केंद्र सरकार में रिवीजन अर्जी दाखिल करने की सलाह दी गई।
- फिल्म 31 अक्टूबर को रिलीज होने वाली है।
- परेश रावल ने फिल्म में वकील की भूमिका निभाई है।
नई दिल्ली, 30 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। दिल्ली हाई कोर्ट ने अभिनेता परेश रावल की फिल्म ‘ताज स्टोरी’ के खिलाफ दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया है। न्यायालय ने याचिकाकर्ता को चेतावनी देते हुए कहा कि फिल्म को प्राप्त सेंसर बोर्ड के सर्टिफिकेट के खिलाफ पहले केंद्र सरकार के समक्ष रिवीजन अर्जी दाखिल करें।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि वह सुपर सेंसर बोर्ड नहीं है। न्यायाधीश ने यह भी पूछा कि हाईकोर्ट में आने से पहले केंद्र सरकार के समक्ष याचिका क्यों नहीं दायर की गई? उन्होंने यह भी सवाल किया कि याचिकाकर्ता ने परेश रावल को पक्षकार क्यों बनाया? फिल्म के कंटेंट को लेकर अभिनेता की कहाँ जिम्मेदारी बनती है?
दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला ने इस याचिका की सुनवाई की। इस दौरान उन्होंने कहा, "क्या हम सुपर सेंसर बोर्ड हैं?"
हालांकि, याचिकाकर्ता ने कहा कि अदालत के पास पर्याप्त शक्तियां हैं। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "हमारी सीमाओं को समझने की कोशिश करें। हम सुपर सेंसर बोर्ड नहीं हैं। ऐसे मामलों में मुश्किल यह है कि कई बार पक्षकारों और वकीलों पर आरोप लग जाते हैं। इससे बचें। आपको अधिनियम के दायरे में रहकर अपना पक्ष रखना होगा। कृपया नियमों के किसी भी उल्लंघन की ओर ध्यान दिलाएं।"
हाईकोर्ट की फटकार के बाद याचिकाकर्ता ने याचिका वापस ले ली है। इससे फिल्म की रिलीज का रास्ता साफ हो गया है। फिल्म ‘ताज स्टोरी’ 31 अक्टूबर को रिलीज होने वाली है। इसमें परेश रावल एक वकील की भूमिका निभाते दिखाई देंगे।
बता दें कि यह याचिका दिल्ली के वरिष्ठ अधिवक्ता शकील अब्बास ने दायर की थी। इसमें ‘ताज स्टोरी’ के निर्माता, निर्देशक और अभिनेता परेश रावल को पक्षकार बनाया गया। साथ ही याचिकाकर्ता ने केंद्र सरकार और सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) को भी पक्षकार बनाया था।
याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि फिल्म ताजमहल और उससे जुड़ी ऐतिहासिक जानकारी को गलत तरीके से प्रस्तुत करती है, जिससे जनता के बीच भ्रम फैल सकता है और धार्मिक तथा सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न होने का खतरा है। याचिकाकर्ता का कहना था कि सीबीएफसी ने ट्रेलर और फिल्म की सामग्री की जिम्मेदारी से जांच नहीं की, जिससे जनता में भ्रम फैल सकता है।