क्या दिल्ली के कर्तव्य पथ पर पहली बार कदमताल करेंगे डबल हंप बैक्ट्रियन ऊंट?
Key Takeaways
- भारतीय सेना ने आधुनिक उपकरणों के साथ-साथ पारंपरिक जानवरों को भी शामिल किया है।
- डबल हंप बैक्ट्रियन ऊंट पहली बार गणतंत्र दिवस पर कर्तव्य पथ पर नजर आएंगे।
- जंस्कारी पोनी भी सेना का हिस्सा बन चुकी हैं।
- इन जानवरों का उपयोग लॉजिस्टिक और पेट्रोलिंग में हो रहा है।
- चील का उपयोग एंटी-ड्रोन सिस्टम में किया जा रहा है।
नई दिल्ली, 30 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय सेना आधुनिकरण के एक नए युग में प्रवेश कर चुकी है। नये उपकरणों के साथ-साथ, वह पारंपरिक तरीकों से भी अपनी ताकत को बढ़ाने में लगी हुई है। पूर्वी लद्दाख की कठिन परिस्थितियों में सहायता के लिए लॉजिस्टिक ड्रोन, रोबोटिक म्यूल, और ऑल टेरेन व्हीकल के साथ-साथ डबल हंप बैक्ट्रियन ऊंट और जंस्कारी पोनी को भी शामिल किया गया है। गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य आकर्षण होगा रिमाउंट एंड वेटरनरी कोर का दस्ता, जिसमें पहली बार कर्तव्य पथ पर डबल हंप बैक्ट्रियन ऊंट और जंस्कारी पोनी का प्रदर्शन होगा। इस दस्ते का नेतृत्व महिला अधिकारी करेंगी।
पूर्वी लद्दाख के ठंडे रेतीले मरुस्थल में यह ऊंट लास्ट मील डिलिवरी और पेट्रोलिंग के उद्देश्य से सेना में शामिल किए गए हैं। पिछले दो वर्षों से ये ऊंट दुर्गम क्षेत्रों में रसद पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं। इनकी विशेषता यह है कि ये 15,000 से 18,000 फीट की ऊँचाई पर 150 से 200 किलो तक का वजन आसानी से उठा सकते हैं और -20 डिग्री सेल्सियस के तापमान में भी काम कर सकते हैं। लॉजिस्टिक के अलावा, पेट्रोलिंग में भी इनका उपयोग किया जा रहा है। पहले बैच में एक दर्जन से अधिक बैक्ट्रियन ऊंट शामिल किए गए हैं। कर्तव्य पथ पर दो बैक्ट्रियन ऊंट कदमताल करते नजर आएंगे, जो कि लद्दाख के अलावा दिल्ली में पहली बार दिखेंगे। आमतौर पर ये ऊंट मंगोलिया और सेंट्रल एशिया में पाए जाते हैं। माना जाता है कि पुरानी सिल्क रूट पर व्यापार करने आने के दौरान इनकी प्रजाति यहाँ रह गई थी। इन्हें लद्दाख के हुंडर गाँव में पाला गया है।
लद्दाख के स्थानीय लोग जंस्कारी पोनी का उपयोग करते आ रहे हैं। सेना ने इनकी विशेषताओं को देखते हुए इन्हें धीरे-धीरे रिमाउंट एंड वेटरनरी कोर में शामिल करना प्रारंभ कर दिया है। पिछले दो वर्षों से ये सेना का हिस्सा हैं। कर्तव्य पथ पर मार्च करते हुए 4 जंस्कारी पोनी (खच्चर) भी दिखेंगी। ये पोनी -40 डिग्री सेल्सियस के तापमान में 70 किलो से अधिक का वजन ले जाने में सक्षम हैं। 18,000 फीट के दुर्गम इलाके में ये आसानी से कार्य कर रहे हैं और अब ये भारतीय सेना की सहायता में जुटे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, लेह स्थित डीआरडीओ की डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई एल्टीट्यूड रिसर्च लैब ने आर्मी रिमाउंट एंड वेटरनरी कोर के साथ मिलकर डबल हंप बैक्ट्रियन ऊंट और जंस्कारी पोनी पर व्यापक रिसर्च के बाद उन्हें सेना में शामिल करने का निर्णय लिया।
दुश्मन के ड्रोन का शिकार करने के लिए एंटी-ड्रोन सिस्टम के साथ-साथ चील को भी शामिल किया गया है। ये प्रशिक्षित चील रेकी के साथ-साथ छोटे ड्रोन को निशाना बनाने में सक्षम हैं। गणतंत्र दिवस परेड में ऐसे 4 चील को भी दुनिया देखेगी जो छोटे ड्रोन का शिकार कर सकती हैं। ये चील पहली बार 2022 में भारत-अमेरिका के बीच उत्तराखंड के ओली में आयोजित संयुक्त अभ्यास “युद्धाभ्यास” में दिखाई दिए थे। इसके बाद कई अन्य अभ्यासों में भी इनका प्रदर्शन किया गया। रिमाउंट एंड वेटरनरी कोर के दस्ते में डॉग स्क्वायड में 10 कुत्ते भी कदमताल करते नजर आएंगे। इसमें 5 भारतीय नस्ल के मुढोल हाउंड, रामपुर हाउंड, चिप्पीपराई, कॉम्बाई, और राजा पलियम के साथ-साथ तीन प्रकार की पारंपरिक नस्ल के कुत्ते भी शामिल हैं।