क्या 'दूसरा राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन 2025' में मध्यस्थता की चुनौतियों और भविष्य पर चर्चा हुई?

सारांश
Key Takeaways
- मध्यस्थता की पेशेवर मान्यता आवश्यक है।
- जनता का विश्वास और जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है।
- सरकार का समर्थन मध्यस्थता को सशक्त बनाएगा।
- मध्यस्थता के क्षेत्र में सुधार के लिए संरचित प्रक्रिया की आवश्यकता है।
- भारत में विवाद समाधान के तंत्र को मजबूती प्रदान करनी होगी।
भुवनेश्वर, 28 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। देश के प्रमुख विधिक आयोजनों में से एक, 'दूसरा मध्यस्थता सम्मेलन 2025' का आयोजन भुवनेश्वर में हुआ। सम्मेलन के दूसरे दिन के इंटरैक्टिव सत्र 1 का शीर्षक था- 'मध्यस्थता: चुनौतियां और भविष्य का मार्ग'.
इस सत्र की अध्यक्षता न्यायमूर्ति सूर्यकांत, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने की, जबकि सह-अध्यक्षता न्यायमूर्ति विपुल एम पंचोली, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश और न्यायमूर्ति एमएम श्रीवास्तव, मुख्य न्यायाधीश, मद्रास उच्च न्यायालय ने की। इस महत्वपूर्ण सत्र में चार मुख्य विषयों पर चर्चा की गई, जिसमें मध्यस्थता एक पेशा, सरकार और मध्यस्थता, जनता का विश्वास और मध्यस्थता और न्याय तक पहुंच शामिल हैं.
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, जो कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष भी हैं, ने सम्मेलन के दौरान बताया कि देश में लगभग 2.5 लाख मध्यस्थों की आवश्यकता है, लेकिन वर्तमान में केवल 13,000 मध्यस्थ उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा कि संरचित मध्यस्थता आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। इस सत्र ने भारत में विवाद समाधान के तंत्र को मजबूत करने में मध्यस्थता की भूमिका पर जोर दिया और कहा कि मध्यस्थों को पेशेवर मान्यता, नीति समर्थन और जनता का भरोसा मिलना अत्यंत आवश्यक है.
इस सत्र में न्यायमूर्ति एम. सुंदर (मुख्य न्यायाधीश, मणिपुर उच्च न्यायालय), न्यायमूर्ति आर सुरेश कुमार (मद्रास उच्च न्यायालय), न्यायमूर्ति ए मुहम्मद मुस्ताक (केरल उच्च न्यायालय), न्यायमूर्ति सचिन दत्ता (दिल्ली उच्च न्यायालय), न्यायमूर्ति हरिनाथ नुनेपल्ली (आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय) सहित वरिष्ठ अधिवक्ता नंदिनी गोरे ने भी भाग लिया और अपने विचार साझा किए.
इस पूरे सत्र का संचालन जॉर्ज पोथन ने किया, जिन्होंने प्रतिभागियों के बीच सार्थक संवाद को प्रोत्साहित किया। यह सम्मेलन मध्यस्थता के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करने और देश में विवाद समाधान प्रक्रिया को और प्रभावी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.