क्या स्त्री-मन की सशक्त आवाज हैं डॉ. प्रभा खेतान, जिन्होंने हिंदी साहित्य को नया नजरिया दिया?

सारांश
Key Takeaways
- प्रभा खेतान ने नारी के मन की गहराइयों को उजागर किया।
- उन्होंने 'स्त्री उपेक्षिता' का अनुवाद किया।
- उनकी रचनाएं नारी के अधिकारों के लिए प्रेरणादायक हैं।
नई दिल्ली, 19 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। हिंदी साहित्य की भूमि पर ऐसे कई सशक्त रचनाकार हैं, जिन्होंने अपनी कलम से स्त्री-मन की गहराइयों को न केवल बखूबी प्रस्तुत किया है, बल्कि नारी की आंतरिक उलझनों को अत्यंत सुंदरता से उकेरने का कार्य किया है। इनमें डॉ. प्रभा खेतान का नाम विशेष रूप से लिया जाता है, जो कविता के माध्यम से भावनाओं की दुनिया का निर्माण करती हैं। इसके साथ ही, उनकी आलोचना, निबंध और लेखकीय नारीवादी विचारों के द्वारा हिंदी साहित्य को एक नई दिशा प्रदान की है।
उनकी रचनाएं नारी की अंदरूनी उलझनों और समाज की बेड़ियों को इतनी स्पष्टता से दर्शाती हैं कि पाठक को सोचना अनिवार्य हो जाता है। उन्होंने फ्रांसीसी रचनाकार सिमोन द बोउवार की 'द सेकंड सेक्स' का हिंदी अनुवाद 'स्त्री उपेक्षिता' किया, जो उनके नारीवादी विचारों को स्पष्ट करता है।
प्रभा खेतान बहुआयामी प्रतिभा की धनी रहीं। उन्होंने कविता, उपन्यास, निबंध, अनुवाद और आत्मकथा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण रचनाएं कीं। उनका लेखन मुख्यतः स्त्री जीवन की बारीकियों और मुक्ति पर केंद्रित है। बंगाली स्त्रियों के माध्यम से उन्होंने भारतीय समाज की स्त्री-विरोधी संरचनाओं को उजागर किया।
नारीवादी चिंतन की धुरी के रूप में पहचानी जाने वालीं डॉ. प्रभा खेतान का जन्म १ नवंबर १९४२ को कोलकाता में हुआ। उनकी साहित्यिक यात्रा १२ वर्ष की आयु में प्रारंभ हुई थी। उन्होंने साहित्य साधना में स्त्री के सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और नैतिक मूल्यों को गहराई से समझा।
प्रभा खेतान ने 'बाजार के बीच, बाजार के खिलाफ: भूमंडलीकरण और स्त्री के प्रश्न', 'शब्दों का मसीहा सार्त्र', 'आओ पेपे घर चले', 'तालाबंदी', 'अग्निसंभवा', 'छिन्नमस्ता', 'अपने-अपने चेहरे', 'पीली आंधी', 'स्त्री पक्ष' और 'अन्या से अनन्या' जैसी रचनाएं लिखीं, जो पाठकों द्वारा अत्यधिक सराही गईं। 'अन्या से अनन्या' में उन्होंने एक साहसी और निडर स्त्री का चित्रण किया, जो शीघ्र ही लोकप्रिय हो गई।
इस पुस्तक में प्रभा खेतान ने अपने जीवन की कहानी को इतनी ईमानदारी से प्रस्तुत किया कि इसे पढ़कर एक स्त्री के रोजमर्रा में आने वाली कठिनाइयों का पता चल सकेगा।
'अन्या से अनन्या' में भारतीय स्त्रियों की स्वतंत्रता पर प्रभा खेतान लिखती हैं, "पर कोई भी सती रह नहीं पाती। हां, सतीत्व का आवरण जरूर ओढ़ लेती है या फिर आत्मरक्षा के नाम पर जौहर की ज्वाला में छलांग लगा लेती है। व्यवसाय जगत में कुछ अन्य समस्याएं भी सामने आईं। कारण, किसी भी समाज में कुछ ऐसे कोड होते हैं, जो स्त्री-पुरुषों के आपसी संबंध को निर्धारित करते हैं।"
स्त्री-विषयक मामलों में अत्यधिक सक्रिय प्रभा खेतान ने १९६६ में फिगुरेट नामक महिला स्वास्थ्य देखभाल संस्था की स्थापना की। इसके अलावा, वह प्रभा खेतान फाउंडेशन की संस्थापक-अध्यक्ष भी रहीं। नारीवादी लेखन के लिए उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा प्राप्त हुई। २० सितंबर २००८ को उनका निधन हो गया, लेकिन 'अन्या से अनन्या' जैसी रचनाएं आज भी नारी सशक्तीकरण की प्रेरणा बनी हुई हैं।