क्या फिल्म 'धुरंधर' के जरिए भारतीय मुसलमानों को बदनाम किया जा रहा है? : मौलाना शहाबुद्दीन रजवी
सारांश
Key Takeaways
- फिल्म 'धुरंधर' ने बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड तोड़े हैं।
- मौलाना रजवी ने फिल्म को लेकर नाराजगी जताई है।
- फिल्म में पाकिस्तान से जुड़े दृश्य हैं।
- मुसलमानों की छवि को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है।
- फिल्म इंडस्ट्री को समाज को जोड़ने पर ध्यान देना चाहिए।
बरेली, 12 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। बॉलीवुड की नई फिल्म 'धुरंधर' इस समय बॉक्स ऑफिस पर शानदार कमाई कर रही है। हर दिन नए रिकॉर्ड टूट रहे हैं और इसके डायलॉग्स, कहानी और एक्शन को लेकर दर्शकों में जबरदस्त उत्साह है। भारत में फिल्म की लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है, जबकि कुछ खाड़ी देशों में इसे प्रतिबंधित भी किया गया है। इसी बीच, फिल्म के बारे में कई राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी सामने आ रही हैं।
ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने फिल्म पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है। उन्होंने स्पष्ट किया कि धुरंधर ही नहीं, बल्कि इस्लाम के दृष्टिकोण से इस तरह की कोई भी फिल्म उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि फिल्म में पाकिस्तान से जुड़े कई दृश्य प्रदर्शित किए गए हैं और पाकिस्तान के खिलाफ कई बातें कही गई हैं, क्योंकि वह भारत का दुश्मन देश है। समस्या तब उत्पन्न होती है जब पाकिस्तान को लेकर बनी फिल्मों के बहाने भारत के मुसलमानों को अपमानित या बदनाम किया जाता है।
मौलाना रजवी ने बताया कि भारत के मुसलमान, पाकिस्तान के मुसलमानों से कहीं अधिक संख्या में यहाँ रहते हैं और वे पहले भारतीय हैं। इसलिए पाकिस्तान पर फिल्म बनाकर भारत के मुसलमानों को निशाना बनाना अनुचित है।
उन्होंने आरोप लगाया कि आजकल जानबूझकर ऐसी फिल्में बनाई जा रही हैं जिनमें मुसलमानों के दृष्टिकोण को गलत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है ताकि फिल्म अधिक सफल हो और अधिक पैसा कमाया जा सके।
उन्होंने कुछ फिल्में जैसे उदयपुर फाइल्स, केरल फाइल्स, गुजरात फाइल्स और अब संभल से संबंधित फिल्म का उल्लेख करते हुए कहा कि इन सभी में धार्मिक मुद्दों को पेश कर कमाई का साधन बना लिया गया है। उनका कहना है कि फिल्म इंडस्ट्री का उद्देश्य समाज को जोड़ना, संस्कृति और तहजीब को बढ़ावा देना और नई पीढ़ी को अच्छे संस्कार देना था, लेकिन अब यह सब पीछे छूट गया है।
मौलाना रजवी ने कहा कि फिल्में किसी को अपमानित करने या किसी समुदाय की छवि को नुकसान पहुँचाने के लिए नहीं होतीं। लेकिन, आजकल के निर्देशक और फिल्मकार पैसे के लोभ में ऐसी कहानियाँ बना रहे हैं जो समाज में दूरी और गलतफहमियाँ बढ़ाती हैं। फिल्म इंडस्ट्री को यह समझना चाहिए कि कला का उद्देश्य जोड़ना है, बांटना नहीं।