क्या गुजरात के वापी में ‘वोकल फॉर लोकल’ अभियान ने स्वदेशी उद्योगों को नया जीवन दिया?

सारांश
Key Takeaways
- स्थानीय उद्योगों को ‘वोकल फॉर लोकल’ से नया जीवन मिला है।
- स्वदेशी उत्पादों की मांग बढ़ी है।
- रोजगार के नए अवसर सृजित हो रहे हैं।
- स्थानीय संसाधनों पर निर्भरता बढ़ी है।
- गुणवत्तापूर्ण उत्पादों की उपलब्धता में सुधार हुआ है।
गुजरात, 3 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। वैश्विक बाजार में टैरिफ युद्ध और कड़ी प्रतिस्पर्धा के चलते भारत के छोटे, लघु और गृह उद्योगों को विदेशी उत्पादों के सामने टिके रहना चुनौतीपूर्ण हो गया है। लेकिन, गुजरात की औद्योगिक नगरी वापी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘मेक इन इंडिया’ अभियानों ने स्थानीय उद्योगों को नई ऊर्जा दी है। इन अभियानों के चलते वापी के छोटे-लघु और गृह उद्योगों को न केवल बाजार मिल रहा है, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी उत्पन्न हो रहे हैं।
वापी को गुजरात का औद्योगिक हब माना जाता है, जहां हजारों छोटे-बड़े उद्योग सक्रिय हैं। यहां के लघु उद्योग विशेष रूप से रोजमर्रा की आवश्यकताओं के सामान जैसे बैग, लेमिनेट्स और अन्य घरेलू उत्पादों के लिए प्रसिद्ध हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में विदेशी सामानों की बाढ़ और वैश्विक ब्रांड्स के दबदबे के कारण स्थानीय उद्योगों को मंदी का सामना करना पड़ा।
सावला लेमिनेट्स के सप्लायर निमेष सावला ने कहा, “पहले विदेशी सामानों के कारण हमारे स्थानीय उत्पादों को बाजार में स्थान नहीं मिल रहा था। लेकिन ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘मेक इन इंडिया’ के चलते लोगों में स्वदेशी वस्तुओं के प्रति जागरूकता बढ़ी है। इससे वापी के उद्योगों में नया उत्साह आया है और बाजार में मांग बढ़ रही है।”
महावीर सेल्स एजेंसी के मयूर जैन ने बताया कि उनकी यूनिट स्कूल बैग और लगेज बैग जैसे उत्पाद बनाती है, जिसमें अब पूरी तरह स्वदेशी कच्चे माल का उपयोग हो रहा है। हम फैब्रिक, चैन और अन्य सामग्री स्थानीय बाजार से ले रहे हैं। पहले विदेशी ब्रांड्स का दबदबा था, लेकिन अब स्वदेशी अभियान ने हमें नया बाजार और प्रोत्साहन दिया है। इस बदलाव से न केवल स्थानीय उत्पादकों को फायदा हो रहा है, बल्कि आपूर्तिकर्ताओं और कर्मचारियों को भी रोजगार के नए अवसर मिल रहे हैं।”
स्थानीय कारोबारी नुरीद्दीन अंसारी ने कहा कि ‘वोकल फॉर लोकल’ ने लोगों के बीच स्वदेशी उत्पादों के प्रति रुचि बढ़ाई है। पहले बैग उद्योग में ज्यादातर कच्चा माल चीन से आता था। अब हम स्थानीय संसाधनों पर निर्भर हैं, जिससे उत्पादन क्षमता बढ़ी है और व्यापार में वृद्धि हुई है। इस बदलाव से उपभोक्ताओं को भी किफायती और गुणवत्तापूर्ण स्वदेशी उत्पाद मिल रहे हैं।”
वापी के ग्राहक जिग्नेश महेसूरिया ने सरकार के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा, “जब अमेरिका जैसे देश भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाकर हमारे उद्योगों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं, तब केंद्र सरकार का यह अभियान छोटे उद्योगों के लिए संजीवनी साबित हो रहा है।”
उन्होंने कहा कि यदि देश का हर नागरिक स्वदेशी वस्तुओं को अपनाए, तो भारत वैश्विक प्रतिस्पर्धा में और मजबूत होगा। ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियानों ने वापी जैसे औद्योगिक केंद्रों में स्थानीय उद्यमियों को नई उम्मीद दी है। यह न केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि भारत को वैश्विक मंच पर और सशक्त बनाने का प्रयास भी है।