क्या हरदीप सिंह पुरी ने 1984 के सिख विरोधी दंगों को याद करते हुए भावनाएं साझा कीं?
 
                                सारांश
Key Takeaways
- 1984 सिख विरोधी दंगे एक काला अध्याय हैं।
- हरदीप सिंह पुरी ने दंगों का जिक्र किया।
- कांग्रेस नेताओं की भूमिका पर सवाल उठाए गए।
- समाज में समावेशिता और शांति की आवश्यकता है।
- दंगों में जान गंवाने वालों के प्रति श्रद्धांजलि।
नई दिल्ली, 31 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। 31 अक्टूबर को 1984 के सिख विरोधी दंगों की 41वीं बरसी पर केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने उन सभी को श्रद्धांजलि दी जो इस नरसंहार में अपनी जान गंवा चुके हैं। उन्होंने कहा कि आज हम स्वतंत्र भारत के इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक की याद कर रहे हैं।
हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि मैं आज भी 1984 के उन काले दिनों को याद करके सिहर उठता हूं, जब निर्दोष सिख पुरुषों, महिलाओं और बच्चों का बेरहमी से कत्लेआम किया गया था। उनकी संपत्तियों और धार्मिक स्थलों को भीड़ ने लूट लिया था, जो कांग्रेस नेताओं के नेतृत्व में हुई थी। यह सब इंदिरा गांधी की हत्या का 'बदला' लेने के नाम पर किया गया था।
केंद्रीय मंत्री ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर लिखा, "यह वह समय था जब पुलिस मूकदर्शक बनकर खड़ी थी, जबकि सिखों को उनके घरों, वाहनों और गुरुद्वारों से बाहर निकाला जा रहा था और जिंदा जलाया जा रहा था। राज्य की मशीनरी औंधे मुंह गिरी हुई थी। रक्षक ही अपराधी बन चुके थे।"
उन्होंने कहा, "सिखों के घरों और संपत्तियों की पहचान के लिए मतदाता सूचियों का इस्तेमाल किया गया। कई दिनों तक भीड़ को रोकने की कोई कोशिश नहीं की गई। इसके बजाय, 'जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती हिलती है' वाले अपने बयान से प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सिखों के नरसंहार का खुला समर्थन किया।"
हरदीप सिंह पुरी ने नानावती आयोग की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा, "सालों बाद, नानावती आयोग (2005) ने इस सब की पुष्टि की, जिसने बहुत स्पष्ट रूप से कहा कि 'कांग्रेस (आई) के नेताओं के खिलाफ विश्वसनीय सबूत हैं जिन्होंने भीड़ का नेतृत्व किया और हमलों को उकसाया।' यह रिपोर्ट भी वही पुष्टि करती है, जो पीड़ित हमेशा से जानते थे। कांग्रेस नरसंहार को रोकने में विफल नहीं रही, बल्कि उसने इसे संभव बनाया।"
उन्होंने कहा, "मेरी सिख संगत के अन्य सदस्यों की तरह, यह हिंसा मेरे घर के पास भी पहुंची। मैं उस समय जिनेवा में एक युवा प्रथम सचिव के रूप में तैनात था और अपने माता-पिता की सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित था। मेरे हिंदू दोस्त ने समय रहते उन्हें बचाया।"
हरदीप सिंह पुरी ने दंगों में जान गंवाने वालों को श्रद्धांजलि दी और पीड़ित परिवारों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की। उन्होंने कहा, "यह समय समावेशी विकास और शांति के उस युग को महत्व देने का है जिसमें हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में रह रहे हैं। आज भारत न सिर्फ अपने अल्पसंख्यकों को सुरक्षित रखता है, बल्कि बिना किसी पूर्वाग्रह या भेदभाव के सबका साथ, सबका विकास भी सुनिश्चित करता है।"
 
                     
                                             
                                             
                                             
                                             
                             
                             
                             
                            