क्या हिम्मत शाह की कलाकृतियां बोलती हैं? टेराकोटा को दिया समकालीन रूप

Click to start listening
क्या हिम्मत शाह की कलाकृतियां बोलती हैं? टेराकोटा को दिया समकालीन रूप

सारांश

हिम्मत शाह, जिनका जन्म गुजरात के लोथल में हुआ, ने मूर्तिकला में नवीनता के साथ टेराकोटा को एक नया रूप दिया। उनकी कला में आधुनिकता और पारंपरिकता का अनोखा संगम देखने को मिलता है। उनकी रचनाओं ने न केवल भारतीय कला में बल्कि विश्व स्तर पर भी एक नई पहचान बनाई है।

Key Takeaways

  • हिम्मत शाह ने टेराकोटा को समकालीन रूप में प्रस्तुत किया।
  • उन्होंने स्व-निर्मित औजारों का उपयोग किया।
  • उनकी मूर्तियों का प्रदर्शन विभिन्न अंतरराष्ट्रीय दीर्घाओं में हुआ है।

नई दिल्ली, 21 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। गुजरात के लोथल में जन्मे भारत के प्रमुख मूर्तिकार हिम्मत शाह ने अपनी रचनात्मकता से मूर्तिकला को नए जीवन में लाने का कार्य किया है। ललित कला अकादमी का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले हिम्मत शाह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने अपनी कला में विभिन्न रूपों और माध्यमों का प्रयोग किया, जैसे कि जले हुए कागज के कोलाज, वास्तुशिल्पीय भित्ति चित्र, रेखाचित्र, टेराकोटा और कांसे की मूर्तियां, हालांकि उन्होंने अपनी पहचान को एक मूर्तिकार के रूप में बनाए रखा।

हिम्मत शाह का जन्म 22 जुलाई 1933 को गुजरात के लोथल में एक जैन परिवार में हुआ था। लोथल, जो हड़प्पा सभ्यता (3,300-1,300 ईसा पूर्व) का एक महत्वपूर्ण स्थल है, ने उनके टेराकोटा के साथ गहरे संबंध को आकार दिया।

बचपन में ही उनके परिवार ने उनकी कला में रुचि को पहचाना और शाह को भावनगर के घरशाला में पढ़ाई के लिए भेजा, जो कि गुजरात में राष्ट्रवादी पुनर्जागरण से जुड़ा एक विद्यालय था। उन्होंने प्रसिद्ध कलाकार-शिक्षक जगुभाई शाह के मार्गदर्शन में कला की शिक्षा प्राप्त की। चौदह वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़कर अहमदाबाद का रुख किया और अनुभवी कलाकार रसिकलाल पारिख के सानिध्य में सीएन कला निकेतन में अध्ययन किया।

हिम्मत शाह ने जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट, बॉम्बे और फिर एम.एस. यूनिवर्सिटी, बड़ौदा (1956-60) में अध्ययन किया। इसके बाद, वे 1967 में फ्रांसीसी सरकार की छात्रवृत्ति पर पेरिस गए, जहाँ उन्होंने एटेलियर 17 में प्रिंटमेकर S.W. हेटर और कृष्णा रेड्डी के अधीन अध्ययन किया। विदेश में रहते हुए उन्होंने यूरोपीय आधुनिकता के साथ संवाद स्थापित किया।

हिम्मत शाह ने स्व-निर्मित औजारों और नवीन तकनीकों के माध्यम से अपने पसंदीदा माध्यम, टेराकोटा को एक समकालीन रूप दिया। उन्होंने अपनी कृतियों को आकार देने के लिए विभिन्न हस्त औजारों, ब्रशों और उपकरणों का इस्तेमाल किया। इसके साथ ही, उन्होंने ईंट, सीमेंट और कंक्रीट से स्मारकीय भित्ति चित्र भी डिजाइन और निर्मित किए।

वह ग्रुप 1890 के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, जिसकी स्थापना 1962 में हुई थी। उन्होंने अपनी मूर्तिकला में आधुनिकता को प्रमुखता दी। 1980 के दशक में उन्होंने अपनी अनूठी मूर्तिकला शैली विकसित की, जिसमें प्लास्टर, सिरेमिक और टेराकोटा से बने सिर और अन्य वस्तुएं शामिल थीं, जिन्हें अक्सर चांदी या सोने से लेपित किया जाता था। 2000 के दशक में उन्होंने जयपुर में अपने स्टूडियो की स्थापना की।

उनकी मूर्तियों को लौवर, रॉयल एकेडमी ऑफ आर्ट्स, बिएनले डी पेरिस, म्यूजियम लुडविग, म्यूजियो डे ला नेसिओन और नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट, दिल्ली जैसी कई प्रमुख दीर्घाओं में प्रदर्शित किया गया है। 2016 में, उनके जीवन पर आधारित एक प्रदर्शनी, 'हैमर ऑन द स्क्वायर', म्यूजियम ऑफ आर्ट, नई दिल्ली में प्रदर्शित की गई।

हिम्मत शाह को 1956 और 1962 में ललित कला अकादमी के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्हें 1988 में साहित्य कला परिषद पुरस्कार और 2003 में मध्य प्रदेश सरकार से कालिदास सम्मान प्राप्त हुआ। 2 मार्च 2025 को हृदयघात के कारण जयपुर में उनका निधन हो गया।

Point of View

बल्कि कला के माध्यम से सामाजिक संवाद को भी प्रोत्साहित करती हैं। उनकी कला ने न केवल देश में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारतीय कला की पहचान को मजबूती दी है।
NationPress
04/09/2025

Frequently Asked Questions

हिम्मत शाह का जन्म कब हुआ था?
हिम्मत शाह का जन्म 22 जुलाई 1933 को गुजरात के लोथल में हुआ था।
हिम्मत शाह की सबसे प्रसिद्ध कला शैली क्या है?
हिम्मत शाह की सबसे प्रसिद्ध कला शैली टेराकोटा और अन्य आधुनिक माध्यमों का समावेश है।
हिम्मत शाह को कौन-कौन से पुरस्कार मिले हैं?
हिम्मत शाह को ललित कला अकादमी का राष्ट्रीय पुरस्कार, साहित्य कला परिषद पुरस्कार और कालिदास सम्मान जैसे पुरस्कार मिले हैं।