क्या डिजिटल क्रांति ने हिंदी को नया मंच दिया है, लेखक अब प्रकाशक पर निर्भर नहीं?

सारांश
Key Takeaways
- हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है।
- डिजिटल युग में हिंदी लेखन में वृद्धि हुई है।
- लेखक अब स्वतंत्र रूप से अपने विचार साझा कर सकते हैं।
- युवाओं में हिंदी के प्रति प्रेम बढ़ा है।
- पारंपरिक प्रकाशकों पर निर्भरता कम हुई है।
नई दिल्ली, 14 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। इसके पश्चात, अगला एक सप्ताह हिंदी दिवस सप्ताह के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य केवल सरकारी औपचारिकता निभाना नहीं है, बल्कि हिंदी भाषा को नई ऊर्जा देना और इसके वैश्विक महत्व पर विचार करना है। आज जब दुनिया बहुभाषी संवाद और डिजिटल क्रांति की ओर बढ़ रही है, ऐसे में हिंदी की स्थिति, उसकी संभावनाएं और चुनौतियां गंभीर विमर्श का विषय बन गई हैं।
हिंदी केवल एक भाषा नहीं है, बल्कि करोड़ों भारतीयों की पहचान और भावनाओं की धड़कन है। आज हिंदी न केवल भारत की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है। हमने इस मुद्दे पर लेखकों और साहित्यकारों से बातचीत की। उनका मानना है कि हिंदी आज वैश्विक स्तर पर तेजी से आगे बढ़ रही है, लेकिन इसके सामने कुछ गंभीर चुनौतियां भी हैं।
जाने-माने लेखक नवीन चौधरी, जिन्होंने 'जनता स्टोर' और 'ढाई चाल' जैसे अद्वितीय उपन्यास लिखे हैं, ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में हिंदी और साहित्य को लेकर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा, "हिंदी भाषा और साहित्य को अलग-अलग दृष्टि से देखना चाहिए। हिंदी फल-फूल रही है, पिछले वर्षों में हिंदी को समझने और पढ़ने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है। 90 के दशक के आस-पास हिंदी के पाठक ने दूरी बनाई थी, लेकिन वर्तमान में हिंदी के पाठक बढ़े हैं। विशेष रूप से नए लेखकों को पढ़ा जा रहा है। हालाँकि, साहित्य की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।"
नवीन चौधरी ने कहा कि आज के समय में युवा वर्ग हिंदी से बहुत दूर नहीं हुआ है। हिंदी अभी भी बोली जाती है। हालाँकि, मूल हिंदी बोलने वाले थोड़े कम हुए हैं। हिंदी में कई भाषाओं का मिश्रण आ गया है, जो बोलचाल में जारी है।
उन्होंने हिंदी लेखकों के लिए मौजूद चुनौतियों के बारे में बताया कि आज के दौर में लेखक के लिए पाठकों को जोड़े रखना सबसे बड़ी चुनौती है, क्योंकि आजकल लोग पढ़ते कम हैं और फोन पर ज्यादा ध्यान देते हैं। ऐसे में लेखक को ऐसा कंटेंट देना होगा जिससे पाठक का ध्यान भटके नहीं। उन्होंने कहा कि 'नई हिंदी' जैसी कोई चीज नहीं है, क्योंकि हिंदी में हमेशा से क्षेत्रीयता का प्रभाव रहा है। यह कुछ प्रकाशकों द्वारा छोड़ा गया शिगूफा है।
लेखक नवीन चौधरी ने डिजिटल युग में हिंदी लेखन को लेकर कहा कि आज के दौर में लिखना आसान हो गया है। वर्तमान में पाठक इंटरनेट पर हिंदी लिखते हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि डिजिटल युग में हिंदी काफी मजबूत है।
इस विषय पर लेखिका विजयश्री तनवीर ने राष्ट्र प्रेस से कहा कि हिंदी का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। नई पीढ़ी में एक सुगबुगाहट देखी जा रही है, जिसमें हिंदी के प्रति प्रेम है। उन्होंने बताया कि मेरी खुद की बेटी हिंदी साहित्य की तरफ मुड़ी है, जबकि उसकी परवरिश अंग्रेजी माहौल में हुई है।
उन्होंने कहा कि 90 के दशक में हिंदी को लेकर काफी हीनता का भाव था। हिंदी पढ़ने वालों को लोग हीन भावना से देखते थे। उस वक्त लोग हाथों में अंग्रेजी की किताबें लेकर चलते थे ताकि उन्हें अंग्रेजी पाठक के तौर पर देखा जाए और हीन भावना न रहे। आज के दौर में यह परिदृश्य काफी बदल गया है। वर्तमान में युवा पीढ़ी के हाथों में हिंदी की किताबें देखी जा रही हैं।
विजयश्री तनवीर ने कहा कि डिजिटल दुनिया में हिंदी को नई उड़ान मिली है। लेखकों के पास सोशल मीडिया जैसे कई मंच हैं, और सबसे खास बात यह है कि अब लेखक, प्रकाशक के मोहताज नहीं रह गए हैं। लेखक के पास अपना हुनर दिखाने के लिए कई सारे विकल्प हैं। उन्होंने कहा कि डिजिटल युग में प्रकाशक की मनमानी पर रोक लगी है।
लेखक ने कहा कि आज के दौर में एक हिंदी लेखक के लिए चुनौती यह है कि नए लेखकों के पास धैर्य की कमी है। वे पढ़ना कम चाहते हैं और लिखना ज्यादा चाहते हैं। वे अपनी खामियां नहीं देखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी लेखकों और पाठकों के बीच फासला काफी कम हुआ है। 20 साल पहले लेखक प्रकाशक के पास भटकते थे और लंबी प्रक्रिया के बाद किताबें छपती थीं, लेकिन आज के दौर में ये चीजें खत्म हो गई हैं।
'नई हिंदी' और 'क्लासिक हिंदी' को लेकर उनका मानना है कि नई वाली हिंदी से इतना मतलब है कि इससे नए पाठकों को जोड़ना है। नई हिंदी का स्वरूप बदला है। साथ ही, इसका दायरा भी सीमित है। उन्होंने कहा कि वह क्लासिक हिंदी के ढर्रे पर ही चलती है और पुरानी हिंदी को ही अपनाती है।