क्या आईआईटी गुवाहाटी ने सस्ता नैनो सेंसर बनाया है जो कैंसर कारक तत्वों का तुरंत पता लगाएगा?

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क्या आईआईटी गुवाहाटी ने सस्ता नैनो सेंसर बनाया है जो कैंसर कारक तत्वों का तुरंत पता लगाएगा?

सारांश

आईआईटी गुवाहाटी द्वारा विकसित नवीनतम नैनो सेंसर ने प्रदूषण की पहचान करने में नई क्रांति लाई है। यह सेंसर न केवल पानी में पारे और एंटीबायोटिक दवाओं का तुरंत पता लगाता है, बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए संभावित खतरों से भी बचाव करता है। जानें इस प्रोजेक्ट के महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में।

Key Takeaways

  • आईआईटी गुवाहाटी ने एक नया नैनो सेंसर विकसित किया है।
  • यह सेंसर पानी में पारे और एंटीबायोटिक दवाओं का तुरंत पता लगाता है।
  • सेंसर केवल 10 सेकंड में परिणाम देता है।
  • यह जैविक तरल पदार्थों पर भी काम करता है।
  • यह पारंपरिक तरीकों की तुलना में सस्ता और सरल है।

नई दिल्ली, 1 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के अनुसंधानकर्ताओं ने एक नवीनतम सेंसर विकसित किया है जो पानी में पारे और एंटीबायोटिक दवाओं के प्रदूषण की पहचान कर सकता है। ये दोनों तत्व मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक खतरनाक हो सकते हैं और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं।

आज के युग में तेज शहरीकरण, औद्योगिक कचरा और दवाओं का अत्यधिक उपयोग पानी को लगातार प्रदूषित कर रहा है। इससे न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुँच रहा है, बल्कि मानव स्वास्थ्य भी संकट में है।

यह नया सेंसर अत्यंत छोटे कणों (नैनो मटेरियल) से निर्मित किया गया है। इसमें कार्बन डॉट्स का उपयोग किया गया है, जो अल्ट्रावॉयलेट (यूवी) रोशनी में चमकते हैं। लेकिन जैसे ही पानी में पारा या टेट्रासाइक्लिन (एक एंटीबायोटिक) की उपस्थिति होती है, इनकी चमक में कमी आ जाती है। इससे त्वरित पहचान संभव होती है कि पानी दूषित है या नहीं।

आईआईटी गुवाहाटी के रसायन विज्ञान विभाग के प्रोफेसर लाल मोहन कुंडू ने कहा, “पारा और एंटीबायोटिक्स जैसे प्रदूषकों का पता लगाना न केवल पानी में, बल्कि जैविक तरल पदार्थों में भी अत्यंत आवश्यक है। पारे के संपर्क में आने से कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है। अत्यधिक एंटीबायोटिक्स स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। यह सेंसर पानी में पारे और टेट्रासाइक्लिन की बहुत कम मात्रा का भी पता लगाने में सक्षम है।”

टेट्रासाइक्लिन का उपयोग आमतौर पर निमोनिया और फेफड़ों के संक्रमण में किया जाता है, लेकिन यदि इनका सही ढंग से निपटान नहीं किया जाता है, तो ये पानी में मिलकर पर्यावरण और मानव जीवन के लिए खतरा उत्पन्न कर सकते हैं। इसी प्रकार, पारा शरीर में पहुँचने पर कैंसर, नसों की बीमारियां और हृदय रोग पैदा कर सकता है।

इस प्रोजेक्ट में दूध प्रोटीन और थाइमिन (डीएनए का एक हिस्सा) से कार्बन डॉट्स बनाए गए हैं। ये बहुत सस्ते और सुरक्षित माने जाते हैं। सेंसर इतना संवेदनशील है कि यह केवल 10 सेकंड में परिणाम प्रदान करता है और बहुत कम प्रदूषण स्तर का भी पता लगा सकता है।

शोधकर्ताओं ने इसे न केवल नल और नदी के पानी पर, बल्कि दूध, मूत्र और रक्त जैसे जैविक नमूनों पर भी परीक्षण किया। परिणाम अत्यधिक सटीक रहे। खास बात यह है कि टीम ने इस सेंसर को कागज की पट्टियों पर भी चढ़ाया है। अब केवल एक छोटी यूवी लाइट की सहायता से कोई भी आसानी से पता कर सकता है कि पानी दूषित है या नहीं।

वैज्ञानिकों का कहना है कि यह सेंसर पारंपरिक तरीकों की तुलना में बहुत सस्ता और सरल है। इसका जैविक खतरों से सुरक्षित होना इसे भविष्य में मेडिकल जांच और स्वास्थ्य सेवाओं में भी उपयोगी बना सकता है। हालांकि, इसे बाजार में लाने से पहले और परीक्षण की आवश्यकता होगी।

Point of View

बल्कि हमारे स्वास्थ्य की सुरक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। ऐसे नवाचारों की आवश्यकता है जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से हमें स्वस्थ और सुरक्षित जीवन जीने में मदद करें।
NationPress
01/09/2025

Frequently Asked Questions

आईआईटी गुवाहाटी का यह नैनो सेंसर कैसे काम करता है?
यह सेंसर पानी में पारे और एंटीबायोटिक्स की उपस्थिति का पता लगाने के लिए अल्ट्रावॉयलेट रोशनी का उपयोग करता है। जब पानी में ये तत्व होते हैं, तो सेंसर की चमक कम हो जाती है।
क्या यह सेंसर अन्य जैविक तरल पदार्थों पर भी काम कर सकता है?
हाँ, इस सेंसर का परीक्षण दूध, मूत्र और रक्त जैसे जैविक नमूनों पर भी किया गया है और परिणाम सटीक रहे हैं।
इस सेंसर की कीमत क्या होगी?
यह सेंसर पारंपरिक तरीकों की तुलना में बहुत सस्ता और सरल है, लेकिन इसकी बाजार में कीमत अभी तय नहीं हुई है।
क्या यह सेंसर स्वास्थ्य सेवाओं में उपयोगी हो सकता है?
जी हाँ, इसका जैविक खतरों से सुरक्षित होना इसे मेडिकल जांचों में उपयोगी बना सकता है।
क्या यह सेंसर जल प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में मदद करेगा?
बिल्कुल! यह सेंसर जल प्रदूषण की पहचान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और मानव स्वास्थ्य की सुरक्षा करेगा।