क्या 'किसी राह में, किसी मोड़ पर' वो रात थी जब इंदीवर ने लिखा ‘मेरे हमसफर’ का दिल?

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क्या 'किसी राह में, किसी मोड़ पर' वो रात थी जब इंदीवर ने लिखा ‘मेरे हमसफर’ का दिल?

सारांश

क्या आपने कभी सोचा है कि एक गाना कैसे दिल को छू सकता है? 'मेरे हमसफर' का टाइटल सॉन्ग अपने इमोशंस के साथ आज भी जिंदा है। जानिए इस गाने के पीछे की दिलचस्प कहानी और उसके निर्माण की प्रक्रिया।

Key Takeaways

  • इंदीवर का गाना 'मेरे हमसफर' का टाइटल सॉन्ग है।
  • यह गाना प्रेम, दूरी, और किस्मत का प्रतीक है।
  • गाने के बोल केवल 20 मिनट में लिखे गए थे।
  • फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर बड़ी सफलता नहीं पाई, लेकिन क्लासिक बन गई।
  • गाने का निर्माण एक रात की हल्की बारिश में हुआ था।

नई दिल्ली, 12 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। कुछ गाने ऐसे होते हैं जो समय के साथ भी दिल पर अपनी गहरी छाप छोड़ जाते हैं। ऐसा ही एक गाना है मेरे हमसफर फिल्म का टाइटल सॉन्ग। हिंदी सिनेमा की गाथा गानों के बिना अधूरी है। यदि गानें और संगीत न हों, तो सिनेमा बिना रंग के हो जाता है।

कुछ गाने सिर्फ फिल्म से नहीं, बल्कि समय से भी जुड़ जाते हैं, और ऐसा ही एक गाना है “किसी राह में, किसी मोड़ पर।” मेरे हमसफर का यह गाना दिल से निकला था, और शायद यही कारण है कि 55 वर्षों के बाद भी यह दिल से निकलने को तैयार नहीं है। मेरे हमसफर 13 नवंबर 1970 को रिलीज हुआ था, और इसकी कहानी उतनी ही खूबसूरत है जितनी कि खुद फिल्म की। यह गाना केवल एक कहानी का हिस्सा नहीं था, बल्कि उसकी आत्मा बन गया।

यह बात खुद गीतकार इंदीवर ने 1980 के दशक में दिए एक साक्षात्कार में याद की थी, जो बाद में किताब “मेलोडी मेकर्स ऑफ हिंदी सिनेमा” (लेखक: गणेश अंजनेयुलु, 1992) में भी दर्ज हुई। उन्होंने बताया, “मैं पुणे के एक छोटे से होटल में था। रात के करीब बारह बजे बाहर हल्की बारिश हो रही थी। फिल्म की कहानी मेरे मन में घूम रही थी। दो लोग, जो जिंदगी के मोड़ पर बिछड़ते हैं और फिर किसी राह में मिलते हैं। उसी एहसास में मैंने वो पंक्ति लिखी – किसी राह में, किसी मोड़ पर... बस फिर बाकी शब्द अपने आप उतरते चले गए।” कहते हैं ये गाने के बोल महज 20 मिनट में तैयार कर दिए गए।

अगली सुबह जब उन्होंने यह गाना कल्याणजी-आनंदजी को सुनाया, तो संगीतकार जोड़ी कुछ क्षण खामोश रही और फिर कल्याणजी बोले, “इंदीवर, यह तो दिल की जमीन से निकला है।” उसी दिन धुन बनी, और अगले दो दिनों में यह गाना रिकॉर्ड भी हो गया। उस समय निर्देशक दुलाल गुहा ने अपने असिस्टेंट से कहा था, “अब फिल्म पूरी हो गई। कहानी को जो एहसास चाहिए था, वह मिल गया।”

फिल्म मेरे हमसफर (1970) के लिए यह गाना केवल एक भावनात्मक टुकड़ा नहीं था, बल्कि पूरी कहानी का प्रतीक बन गया- प्रेम, दूरी और किस्मत की लकीरों का। जब जितेन्द्र और शर्मिला टैगोर पर यह गाना फिल्माया गया, तो कहा जाता है कि शूट के दौरान पूरा सेट कुछ देर के लिए शांत हो गया था। कैमरे के पीछे खड़े दुलाल गुहा ने बाद में एक फिल्मी पत्रिका को दिए साक्षात्कार में कहा था, “वो सीन हम सबको रोक गया। हमें लगा जैसे किसी ने हमारे अपने बिछड़ने की कहानी हमारे सामने रख दी हो।”

फिल्म की रिलीज के समय यह गाना इतना लोकप्रिय हुआ कि रेडियो सिलोन और विविध भारती पर महीनों तक रोज बजता रहा। हालांकि फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर बहुत बड़ी सफलता नहीं हासिल की, लेकिन इस फिल्म को समय के साथ क्लासिक का दर्जा मिला। इसके संवाद, भावनात्मक गहराई और संगीत आज भी उस दौर की सादगी की याद दिलाते हैं।

Point of View

बल्कि यह उस समय की भावनाओं और हृदय के गहराईयों को छूने वाली है। हिंदी सिनेमा में गीतों का महत्व कभी कम नहीं हुआ, और 'मेरे हमसफर' इसका एक बेहतरीन उदाहरण है।
NationPress
12/11/2025

Frequently Asked Questions

क्या 'मेरे हमसफर' का गाना आज भी लोकप्रिय है?
हाँ, यह गाना आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है और समय के साथ क्लासिक का दर्जा प्राप्त कर चुका है।
इंदीवर ने यह गाना कैसे लिखा?
इंदीवर ने यह गाना पुणे के एक होटल में रात की बारिश के दौरान लिखा था।
क्या यह गाना फिल्म का मुख्य हिस्सा था?
यह गाना फिल्म की आत्मा बन गया था और पूरी कहानी को दर्शाता है।
क्या फिल्म 'मेरे हमसफर' ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता पाई?
नहीं, फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर बहुत बड़ी सफलता नहीं हासिल की, लेकिन इसे क्लासिक का दर्जा मिला।
इस गाने के बोल लिखने में कितना समय लगा?
गाने के बोल लिखने में इंदीवर को महज 20 मिनट लगे।