क्या इंडी गठबंधन ने मुख्य चुनाव आयुक्त पर गंभीर आरोप लगाए?

सारांश
Key Takeaways
- इंडी गठबंधन ने सीईसी पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
- सीईसी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई सवालों का उत्तर नहीं दिया।
- राजनीतिक हमले की आलोचना की गई है।
- महाभियोग प्रस्ताव लाना एक चुनौती हो सकता है।
नई दिल्ली, 18 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। इंडी गठबंधन ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि उन्होंने संविधान की निष्पक्षता को नकारते हुए खुद को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का ‘राजनीतिक प्रवक्ता’ बना लिया है।
गठबंधन के नेताओं ने रविवार को आयोजित सीईसी की ‘विवादास्पद प्रेस कॉन्फ्रेंस’ को लेकर कहा कि इसमें टालमटोल, पक्षपात और गंभीर चुनावी गड़बड़ियों के प्रति चुप्पी स्पष्ट रूप से देखी गई।
संविधान क्लब में संयुक्त प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए गौरव गोगोई, महुआ मोइत्रा, संजय सिंह, मनोज झा, रामगोपाल यादव, तिरुची सिवा, अरविंद सावंत और जॉन ब्रिट्टास सहित इंडिया ब्लॉक के नेताओं ने चुनाव आयोग की साख पर उठ रहे सवालों को “संस्थागत पतन” कहा।
गौरव गोगोई ने कहा कि सीईसी ने किसी भी ठोस सवाल का जवाब नहीं दिया, विशेषकर सुप्रीम कोर्ट के 14 अगस्त के आदेश को लेकर, जिसमें बिहार में 65 लाख हटाए गए मतदाताओं का डेटा रोकने के आयोग के प्रयास को खारिज कर दिया गया था।
नेताओं ने कई गंभीर मुद्दों की ओर इशारा किया, जैसे कि महाराष्ट्र में पांच महीने के भीतर 70 लाख नए मतदाताओं का जुड़ना, दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले 42,000 मतों की कटौती, और आधार को मान्य पहचान पत्र के रूप में स्वीकार न करना। वहीं कर्नाटक के महादेवपुरा में राहुल गांधी द्वारा लगाए गए वोटर फ्रॉड के आरोपों की जांच करने के बजाय आयोग ने उनसे शपथपत्र मांगा।
महुआ मोइत्रा ने सीईसी के व्यवहार को “कठपुतली जैसी शर्मनाक प्रस्तुति” बताते हुए कहा कि उन्हें राजनीतिक हमले अपने “मालिकों” के लिए छोड़ देने चाहिए। मनोज झा ने आरोप लगाया कि प्रेस कॉन्फ्रेंस का समय जानबूझकर इस तरह तय किया गया था ताकि बिहार में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की अगुवाई में शुरू हुई ‘वोटर अधिकार यात्रा’ से ध्यान भटकाया जा सके।
सूत्रों के अनुसार, इंडी गठबंधन अब सीईसी के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने पर विचार कर रहा है। हालांकि, इसे पारित कराना बेहद मुश्किल है क्योंकि इसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी, जो मौजूदा स्थिति में लगभग असंभव है।
फिर भी विपक्ष का कहना है कि यह कदम केवल संवैधानिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी भी है। मनोज झा ने कहा, “चुनाव आयोग संविधान का पर्याय नहीं है, यह उसी से जन्मा है और इसे उस दस्तावेज को फाड़ने की इजाजत नहीं दी जा सकती जो इसे वैधता देता है।”