क्या शिबू सोरेन ने झारखंड आंदोलन से राज्य निर्माण तक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई?

सारांश
Key Takeaways
- शिबू सोरेन का योगदान झारखंड के लिए अतुलनीय था।
- उन्होंने आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
- झारखंड का गठन 15 नवंबर 2000
- उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा आज भी प्रभावशाली है।
- वे तीन बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।
नई दिल्ली, 4 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड की राजनीति में सोमवार को एक नया मोड़ आया। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के संस्थापक शिबू सोरेन का निधन दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में हुआ। वे लंबे समय से बीमार थे और उनके निधन की खबर से झारखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। झारखंड के मुख्यमंत्री और उनके पुत्र हेमंत सोरेन ने एक भावुक संदेश में कहा, "आज मैं शून्य हो गया हूं।"
शिबू सोरेन केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि झारखंड आंदोलन के प्रतिबिंब थे। उनकी राजनीतिक यात्रा आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई से प्रारंभ हुई। 1970 और 80 के दशक में जब झारखंड को अलग राज्य बनाने की मांग उठ रही थी, तब शिबू सोरेन इस आंदोलन के एक प्रमुख नेता बनकर उभरे। शिबू सोरेन ने सूरज मंडल जैसे नेताओं के साथ मिलकर लंबा संघर्ष किया। उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने जन-जन तक अपनी आवाज पहुंचाई और परिणामस्वरूप वर्ष 2000 में झारखंड का नया राज्य बना।
उनका संघर्ष आदिवासी अस्मिता, जल, जंगल और जमीन के साथ-साथ सामाजिक न्याय की आवाज को राष्ट्रीय मंच तक ले गया। साल 2000 में झारखंड को अलग राज्य बनाने में शिबू सोरेन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। अलग राज्य बनने के बाद उन्होंने तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभाला, हालांकि वे किसी भी कार्यकाल को पूरा नहीं कर पाए। उनका पहला कार्यकाल 2 मार्च, 2005 से 11 मार्च, 2005, दूसरा कार्यकाल 27 अगस्त 2008 से 12 जनवरी 2009 और तीसरा कार्यकाल 30 दिसम्बर 2009 से 31 मई 2010 रहा।
शिबू सोरेन का जनसंपर्क और आदिवासी समाज के साथ जुड़ाव इतना मजबूत था कि वे हमेशा जनता के बीच लोकप्रिय बने रहे। चाहे संसद हो या सड़क, शिबू सोरेन ने हर मंच से आदिवासी समाज की आवाज उठाई। उन्होंने जल, जंगल और जमीन जैसे मुद्दों को राष्ट्रीय बहस का हिस्सा बनाया। उनका जीवन सामाजिक न्याय और क्षेत्रीय पहचान की लड़ाई की मिसाल बना रहा।
गौरतलब है कि झारखंड राज्य के गठन के समय राज्य का नाम 'बानांचल' रखने का सुझाव भी दिया गया था। इस नाम के पीछे तर्क था कि झारखंड क्षेत्र वनों से आच्छादित है और यह नाम क्षेत्र की भौगोलिक पहचान को बेहतर तरीके से दर्शाता है। 'बानांचल' शब्द 'वन' और 'अंचल' को मिलाकर बनाया गया था।
चाहे संसद हो या सड़क, उन्होंने हर मंच से आदिवासी समाज की आवाज बुलंद की। उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा आज भी राज्य की प्रमुख राजनीतिक ताकत है और उनके पुत्र हेमंत सोरेन ने राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया है। शिबू सोरेन का जीवन राजनीतिक संघर्ष, सामाजिक न्याय और क्षेत्रीय पहचान की लड़ाई की मिसाल है।