क्या झारखंड के भोगनाडीह में 'हूल दिवस' पर पुलिस और ग्रामीणों में झड़प हुई?

Click to start listening
क्या झारखंड के भोगनाडीह में 'हूल दिवस' पर पुलिस और ग्रामीणों में झड़प हुई?

सारांश

साहिबगंज, 30 जून (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड के भोगनाडीह में संथाल 'हूल' क्रांति दिवस पर पुलिस और आदिवासियों के बीच हुई झड़प ने स्थिति को तनावपूर्ण बना दिया। जानें इस घटना के पीछे की पूरी कहानी और क्या है आगे का हाल।

Key Takeaways

  • हूल दिवस पर झड़प ने प्रशासनिक विफलता को उजागर किया।
  • पुलिस और आदिवासियों के बीच संघर्ष का मुख्य कारण अनुमति का अभाव था।
  • स्थानीय समुदाय की आवाज़ को अनसुना करना खतरनाक हो सकता है।

साहिबगंज, 30 जून (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड के साहिबगंज जिले के भोगनाडीह में सोमवार को संथाल 'हूल' क्रांति दिवस पर आदिवासियों के एक समूह और पुलिस-प्रशासन के बीच एक तीव्र झड़प हुई। इस घटना में पुलिस ने लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े।

इस संघर्ष में कुछ पुलिसकर्मी और ग्रामीण घायल हुए हैं। पुलिस के तीन घायल जवानों को इलाज के लिए अस्पताल भेजा गया है। वहीं, स्थिति अभी भी तनावपूर्ण बनी हुई है।

साहिबगंज के उपायुक्त हेमंत सती सहित कई वरिष्ठ अधिकारी मौके पर तैनात हैं। गांव में भारी संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई है।

1855-56 में अंग्रेजों के खिलाफ हुए संथाल 'हूल' क्रांति के नायकों सिदो-कान्हू और अन्य शहीदों की याद में हर साल 30 जून को उनके गांव भोगनाडीह में राज्य सरकार की ओर से राजकीय कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जिसमें मुख्यमंत्री भी शामिल होते हैं। इस वर्ष भी राजकीय कार्यक्रम होना है, जिसमें मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि के रूप में राज्य के शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन को भाग लेना है।

हालांकि, राजकीय कार्यक्रम के समानांतर सिदो-कान्हू मुर्मू हूल फाउंडेशन ने भी उसी स्थान पर अलग कार्यक्रम का आयोजन किया है, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को आमंत्रित किया गया है।

जिला प्रशासन ने इस कार्यक्रम के लिए अनुमति नहीं दी है। सोमवार को जब पुलिस-प्रशासन की टीम फाउंडेशन की ओर से स्मारक स्थल के पास लगाए गए टेंट-पंडाल को हटाने लगी, तो लोग आक्रोशित हो गए। इसी दौरान दोनों पक्षों के बीच संघर्ष शुरू हो गया। फाउंडेशन के समर्थकों द्वारा तीर चलाए जाने की खबरें हैं, वहीं पुलिस ने लाठियां भांजी। इसके बाद, फाउंडेशन के सदस्यों ने स्मारक स्थल पर ताला लगा दिया और घोषणा की कि यदि उनका कार्यक्रम नहीं होगा, तो सरकारी कार्यक्रम भी नहीं होने दिया जाएगा।

इसके पहले रविवार को भी फाउंडेशन के कार्यकर्ताओं और पुलिस-प्रशासन के बीच टकराव की स्थिति बनी थी। पुलिस-प्रशासन ने रविवार को फाउंडेशन के कार्यक्रम के लिए टेंट-पंडाल लगा रहे 13 मजदूरों को हिरासत में ले लिया था। इसके विरोध में सिदो-कान्हू मुर्मू हूल फाउंडेशन के कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने स्मारक स्थल की ओर जाने वाले रास्ते को बांस-बल्ला लगाकर अवरुद्ध कर दिया था।

देर शाम प्रशासन ने फाउंडेशन के लोगों से वार्ता के बाद मजदूरों को रिहा कर दिया था। हूल दिवस पर राजकीय कार्यक्रम के समानांतर अलग कार्यक्रम का आयोजन करने वाले फाउंडेशन के प्रमुख मंडल मुर्मू हैं, जो शहीद सिदो-कान्हू के वंशज हैं। वह पिछले विधानसभा चुनाव में बरहेट विधानसभा क्षेत्र से झामुमो के उम्मीदवार के रूप में खड़े सीएम हेमंत सोरेन के प्रस्तावक बने थे, लेकिन चुनावी प्रक्रिया के दौरान ही भाजपा में शामिल हो गए।

Point of View

वहीं दूसरी ओर स्थानीय संगठन ने अपने अधिकारों की मांग की। यह स्थिति हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या सरकार स्थानीय समुदाय की आवाज सुनने में पर्याप्त रूप से सक्षम है?
NationPress
23/07/2025

Frequently Asked Questions

हूल दिवस क्या है?
हूल दिवस संथाल आदिवासियों द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष की याद में मनाया जाता है। यह हर साल 30 जून को मनाया जाता है।
हूल दिवस पर क्या हुआ?
हूल दिवस पर भोगनाडीह में पुलिस और आदिवासियों के बीच झड़प हुई, जिसमें पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का उपयोग किया।
क्या इस घटना में लोग घायल हुए?
हां, इस झड़प में कुछ पुलिसकर्मी और ग्रामीण घायल हुए हैं।
राजकीय कार्यक्रम कौन आयोजित कर रहा है?
राजकीय कार्यक्रम राज्य सरकार द्वारा आयोजित किया जा रहा है, जिसमें मुख्यमंत्री भी शामिल होंगे।
फाउंडेशन का कार्यक्रम क्यों विवादास्पद है?
फाउंडेशन ने बिना अनुमति के कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय लिया, जिससे प्रशासन और पुलिस की कार्रवाई हुई।