क्या न्यायपालिका में एआई के उपयोग के लिए कोई औपचारिक नीति नहीं बनी है?

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क्या न्यायपालिका में एआई के उपयोग के लिए कोई औपचारिक नीति नहीं बनी है?

सारांश

केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया कि न्यायपालिका में एआई के उपयोग के लिए कोई औपचारिक नीति नहीं बनी है। सुप्रीम कोर्ट ने एआई के संभावित उपयोग के लिए एक कमेटी का गठन किया है, लेकिन सभी समाधान अभी पायलट चरण में हैं। क्या ये नई तकनीक न्यायपालिका में बदलाव ला पाएगी?

Key Takeaways

  • केंद्र सरकार ने न्यायपालिका में एआई के औपचारिक नीति का अभाव बताया।
  • सुप्रीम कोर्ट ने एआई कमेटी का गठन किया है।
  • न्यायपालिका ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का पायलट उपयोग शुरू किया है।
  • चुनौतियों में एल्गोरिद्म में पक्षपात और डेटा सुरक्षा शामिल हैं।
  • कानूनी अनुसंधान विश्लेषण सहायक जैसे टूल विकसित किए गए हैं।

नई दिल्ली, 5 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। केंद्र सरकार ने शुक्रवार को लोकसभा में बताया कि न्यायपालिका में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के उपयोग से संबंधित अभी तक कोई औपचारिक नीति या दिशा-निर्देश नहीं बनाए गए हैं।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक क्षेत्र में एआई के संभावित उपयोग की जांच के लिए एक एआई कमेटी का गठन किया है, लेकिन सभी एआई-आधारित समाधान अभी भी नियंत्रित पायलट चरण में हैं।

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि न्यायपालिका वर्तमान में केवल उन्हीं क्षेत्रों में एआई का उपयोग कर रही है, जिन्हें ई-कोर्ट फेज-3 की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट में मंजूरी दी गई है।

उन्होंने कहा, "न्यायपालिका एआई को अपनाने में कई बड़ी चुनौतियों का सामना कर रही है, जैसे कि एल्गोरिद्म में पक्षपात, भाषा और अनुवाद संबंधी समस्याएं, डेटा गोपनीयता और सुरक्षा, और एआई द्वारा तैयार सामग्री की मैनुअल जांच की आवश्यकता।"

मेघवाल ने बताया कि ई-कमेटी की अध्यक्षता एक सुप्रीम कोर्ट जज द्वारा की जा रही है, जिसमें छह हाई कोर्ट जज और तकनीकी विशेषज्ञों की एक सब-कमेटी शामिल है। यह कमेटी सुरक्षित कनेक्टिविटी, डेटा संरक्षण, प्रमाणीकरण व्यवस्था और ई-कोर्ट परियोजना के तहत डिजिटल ढांचे की मजबूती का आकलन कर रही है।

कानून मंत्री ने बताया कि न्यायिक अनुसंधान में सहायता के लिए कानूनी अनुसंधान विश्लेषण सहायक (एलईजीआरएए) नामक एआई टूल विकसित किया गया है। यह जजों को कानूनी दस्तावेजों और निर्णयों के विश्लेषण में सहायता करता है।

इसी के साथ डिजिटल कोर्ट 2.1 नामक एक और एआई आधारित प्लेटफॉर्म विकसित किया गया है। यह जजों और न्यायिक अधिकारियों के लिए केस से जुड़ी सभी जानकारी एक ही विंडो में उपलब्ध कराता है। इस सिस्टम में एएसआर-श्रुति (वॉयस-टू-टेक्स्ट) और पाणिनी (अनुवाद) जैसी सुविधाएं भी शामिल हैं, जो आदेश और फैसलों की डिक्टेशन को आसान बनाती हैं।

उन्होंने बताया कि अब तक पायलट फेज में इन एआई समाधानों में किसी प्रकार की सिस्टमैटिक बायस या गलत सामग्री जैसी समस्याएं सामने नहीं आई हैं।

मेघवाल ने कहा कि हाल के दिनों में अदालतों में मॉर्फ्ड या फर्जी डिजिटल सामग्री प्रस्तुत किए जाने के मामलों में वृद्धि हुई है। न्यायपालिका ने इसे एक गंभीर खतरे के रूप में पहचाना है, क्योंकि यह न केवल न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है, बल्कि सार्वजनिक धारणा पर भी असर डालता है।

उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की विभिन्न धाराओं के तहत कार्रवाई की जाती है, जैसे कि पहचान की चोरी (66सी), कंप्यूटर संसाधन का उपयोग कर धोखाधड़ी (66डी), अश्लील या आपत्तिजनक सामग्री (67, 67ए, 67बी) का प्रकाशन या प्रसारण। इसी तरह भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धाराएं भी इन अपराधों पर लागू होती हैं।

Point of View

बल्कि इसके उपयोग को लेकर लोगों में चिंता भी बढ़ रही है। सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि न्यायपालिका में प्रौद्योगिकी का सही और सुरक्षित उपयोग हो सके।
NationPress
05/12/2025

Frequently Asked Questions

क्या न्यायपालिका में एआई का उपयोग सुरक्षित है?
न्यायपालिका में एआई का उपयोग कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, लेकिन वर्तमान में पायलट चरण में किसी प्रकार की सिस्टमैटिक बायस या गलत सामग्री की समस्या नहीं आई है।
सरकार एआई के उपयोग के लिए कब नीति बनाएगी?
केंद्र सरकार ने अभी तक एआई के उपयोग के लिए कोई औपचारिक नीति नहीं बनाई है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने संभावनाओं की जांच के लिए एक कमेटी बनाई है।
क्या न्यायपालिका में एआई के उपयोग से न्यायिक प्रक्रिया प्रभावित होगी?
अगर एआई का उपयोग सही तरीके से किया जाए तो यह न्यायिक प्रक्रिया में सुधार ला सकता है, लेकिन इसके लिए सही नीति और दिशा-निर्देश की आवश्यकता है।
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