क्या कर्नाटक सीएम ने पीएम मोदी से तूर दाल किसानों के लिए हस्तक्षेप की अपील की?
सारांश
Key Takeaways
- तूर दाल किसानों की आर्थिक सुरक्षा की चिंता
- एमएसपी खरीद में देरी
- केंद्र सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की अपील
- किसानों की आमदनी पर प्रभाव
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा का मुद्दा
बेंगलुरु, 9 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। कर्नाटक के मुख्यमंत्री एस सिद्दारमैया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर राज्य के 'तूर दाल' किसानों की चिंताओं और उनकी आर्थिक सुरक्षा को लेकर तुरंत हस्तक्षेप की मांग की है। मुख्यमंत्री ने पत्र में उल्लेख किया कि केंद्र सरकार की प्रक्रियागत देरी के कारण किसानों की आमदनी को अनावश्यक और अनुचित जोखिम का सामना करना पड़ रहा है।
पत्र में बताया गया है कि वर्तमान खरीफ सीजन 2025-26 में कर्नाटक में लगभग 16.80 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में तूर दाल की बुवाई की गई है और अनुमानित उत्पादन 12.60 लाख मीट्रिक टन से अधिक रहने की उम्मीद है। यह फसल कर्नाटक के प्रमुख जिलों जैसे कलबुरगी, यदगिर, बीदर, रायचूर, विजयपुरा आदि में किसानों के लिए आय का स्रोत है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्तमान में तूर दाल की बाजार कीमत 5,830 से 6,700 रुपए प्रति क्विंटल है, जबकि सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लगभग 8,000 रुपए प्रति क्विंटल है। हालांकि, उच्चतम फसल आने का समय दिसंबर 2025 से जनवरी 2026 तक है, और केंद्रीय सरकार द्वारा खरीद केंद्र केवल फरवरी-मार्च 2026 में खोले जाएंगे। यदि समय पर एमएसपी पर खरीद नहीं हुई, तो किसानों को गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ेगा।
सीएम ने पत्र में कहा कि कर्नाटक सरकार ने 6 नवंबर 2025 को एमएसपी आधारित तूर दाल खरीद के लिए एनएएफईडी और एनसीसीएफ के माध्यम से केंद्रीय सरकार को तत्काल स्वीकृति की प्रस्तावना भेजी थी, लेकिन अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है।
सिद्दारमैया ने कहा, "जब बाजार मूल्य एमएसपी से नीचे गिरता है, तो यह केवल आर्थिक सवाल नहीं, बल्कि किसानों और राज्य के बीच भरोसे का सवाल भी है। किसान ने सरकार के एमएसपी आश्वासन पर भरोसा कर फसल बोई है। हर दिन की देरी किसानों को संकट में डाल रही है।"
उन्होंने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि तत्काल एमएसपी खरीद की स्वीकृति दें और प्रमुख खरीद केंद्रों में तुरंत कार्रवाई सुनिश्चित करें, ताकि किसानों को लाभ मिल सके।
पत्र में चेतावनी दी गई है कि अगर इस नाजुक मोड़ पर और विलंब हुआ, तो किसान असंतोष, कीमतों में गिरावट, और एमएसपी में विश्वास टूटने जैसी समस्याओं का सामना करेंगे। उन्होंने कहा, "कर्नाटक के किसान हमेशा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा की रीढ़ रहे हैं, अब देश को उनके साथ खड़ा होना चाहिए।"
सिद्दारमैया ने इसे केवल प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि किसानों के प्रति नैतिक जिम्मेदारी और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा का सवाल बताया।