क्या केरल स्थापना दिवस पर आशा कार्यकर्ताओं का 266 दिनों का विरोध समाप्त हुआ?

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क्या केरल स्थापना दिवस पर आशा कार्यकर्ताओं का 266 दिनों का विरोध समाप्त हुआ?

सारांश

केरल के आशा कार्यकर्ताओं ने 266 दिनों का विरोध समाप्त कर दिया है और अब आंदोलन को जिलों में ले जाने की योजना बनाई है। इस दौरान, उनकी मासिक मानदेय में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन वे इसे पर्याप्त नहीं मानते। क्या यह उनका नया संघर्ष है? जानिए पूरी खबर।

Key Takeaways

  • आशा कार्यकर्ताओं का 266 दिनों का विरोध समाप्त हुआ।
  • मासिक मानदेय में 1,000 रुपये की वृद्धि हुई।
  • आंदोलन अब जिलों में जाएगा।
  • कार्यकर्ताओं ने "जिन्होंने हमें नजरअंदाज किया, उन्हें वोट नहीं" का नारा दिया।
  • यह आंदोलन महिलाओं के नेतृत्व में चल रहा है।

तिरुवनंतपुरम, 31 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। केरल में आगामी स्थानीय निकाय चुनावों के चलते सचिवालय के सामने आशा कार्यकर्ताओं का 266 दिनों से जारी लंबा विरोध प्रदर्शन अब समाप्त हो रहा है। स्वास्थ्य स्वयंसेवकों ने निर्णय लिया है कि वे अब अपने आंदोलन को जिलों और लोगों के बीच ले जाएंगे।

आशा संघर्ष समिति ने बताया कि केरल स्थापना दिवस पर शनिवार को धरना समाप्त किया जाएगा। धरना समाप्त करना कोई हार नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक परिवर्तन है।

यह निर्णय राज्य सरकार द्वारा उनके मासिक मानदेय में 1,000 रुपये की बढ़ोतरी के बाद लिया गया है, जिससे यह 7,000 रुपये से बढ़कर 8,000 रुपये हो गया है।

श्रमिकों, जिन्होंने मूल रूप से 21,000 रुपये की मांग की थी, ने इस बढ़ोतरी को "मामूली" बताया, लेकिन इसे एक नैतिक जीत माना।

समिति के नेता एम.ए. बिंदु ने कहा, "हमारे सभी अधिकार संघर्ष के जरिए ही मिले हैं। जो लोग पहले हमारे विरोध का मज़ाक उड़ाते थे, अब वे इसके असर को मान रहे हैं। सरकार में यह बदलाव हमारी लगातार चली लड़ाई का परिणाम है।"

एसोसिएशन के नेताओं ने कहा कि 33 रुपये प्रतिदिन की बढ़ोतरी न्यूनतम मजदूरी की मांग से बहुत कम है और उन्होंने सेवानिवृत्ति लाभों की घोषणा न करने के लिए सरकार की आलोचना की।

केरल आशा स्वास्थ्य कार्यकर्ता संघ के अध्यक्ष वी.के. सदानंदन ने कहा, "हमारे संघर्ष का तरीका बदल रहा है, लेकिन उसकी भावना नहीं।"

उन्होंने घोषणा की कि उनका समूह अब आगामी चुनावों में सत्तारूढ़ वाम मोर्चे के खिलाफ प्रचार करेगा।

आशा कार्यकर्ताओं ने "जिन्होंने हमें नजरअंदाज किया, उन्हें वोट नहीं" के नारे के साथ पूरे राज्य में घर-घर जाकर अभियान चलाने की योजना बनाई है।

संगठन शनिवार को इसे "विजय दिवस" के रूप में भी मनाएगा, जिसमें राज्य भर के कार्यकर्ता भाग लेंगे।

यह विरोध प्रदर्शन हाल के दिनों में सबसे लंबे समय तक चलने वाले श्रमिक आंदोलनों में से एक था और महिलाओं के नेतृत्व में जमीनी स्तर पर संगठन का प्रतीक बन गया।

हालांकि सरकार ने वेतन वृद्धि का श्रेय सीआईटीयू जैसे सहयोगी यूनियनों को दिया, आशा नेताओं ने कहा कि असली श्रेय प्रदर्शनकारी श्रमिकों को जाता है।

इस बीच, मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने चुनाव से पहले कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं, जिनमें सामाजिक कल्याण पेंशन में बढ़ोतरी और महिलाओं, पेंशनभोगियों और युवाओं के लिए नए लाभ शामिल हैं। लेकिन, आशा कार्यकर्ताओं का कहना है कि उचित वेतन और मान्यता के लिए उनकी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है।

Point of View

तो वह अपने हक के लिए लड़ सकता है। आशा कार्यकर्ताओं का संघर्ष केवल उनके लिए नहीं, बल्कि सभी श्रमिकों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन गया है। यह दर्शाता है कि एकजुटता में ताकत है।
NationPress
31/10/2025

Frequently Asked Questions

आशा कार्यकर्ताओं का विरोध क्यों हुआ?
आशा कार्यकर्ताओं ने अपने मानदेय में वृद्धि और बेहतर कार्य परिस्थितियों की मांग की थी।
क्या उनके विरोध का कोई परिणाम निकला?
हाँ, सरकार ने उनके मासिक मानदेय में 1,000 रुपये की वृद्धि की है।
आशा कार्यकर्ताओं का अगला कदम क्या होगा?
वे अब अपने आंदोलन को जिलों में ले जाने की योजना बना रहे हैं।
क्या यह आंदोलन महिलाओं द्वारा नेतृत्व किया गया?
जी हाँ, यह आंदोलन महिलाओं के नेतृत्व में हुआ है और यह एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
क्या सरकार ने उनकी मांगों को पूरा किया?
सरकार ने कुछ मांगों को स्वीकार किया, लेकिन कार्यकर्ता इसे पर्याप्त नहीं मानते।