क्या कृपालुजी महाराज ने ढाई साल में 18 साल की शिक्षा पूरी की? ‘जगद्गुरुत्तम’ की आध्यात्मिक यात्रा ने मानवता को दिखाई राह

सारांश
Key Takeaways
- कृपालुजी महाराज ने ढाई साल में 18 साल की शिक्षा पूरी की।
- उनकी शिक्षाएं प्रेम, भक्ति और मानवता पर आधारित हैं।
- प्रेम मंदिर का निर्माण 2012 में हुआ है।
- उन्हें जगद्गुरु की उपाधि 34 साल की उम्र में मिली।
- आज भी उनके अनुयायी उनकी शिक्षाओं का पालन कर रहे हैं।
नई दिल्ली, 5 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। जब भी मानवता दिशा भटकने लगती है और जीवन की आपाधापी में लोग आत्मिक शांति और संतुलन खोने लगते हैं, तब कुछ दिव्य संत अवतरित होते हैं जो जीवन की मूलभूत समस्याओं का समाधान बताते हैं। ऐसे ही एक दिव्य व्यक्तित्व थे जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज, जिन्हें उनके अनुयायी ‘कृपा अवतार’, ‘रसिक संत’ और ‘जगद्गुरुत्तम’ के नाम से जानते हैं, की शिक्षाएं आज भी लाखों लोगों के जीवन को प्रेरणा और दिशा दे रही हैं। कृपालु जी महाराज की शिक्षाएं केवल धार्मिक या आध्यात्मिक विषयों पर नहीं, बल्कि आधुनिक जीवन की जटिलताओं का समाधान भी प्रदान करती हैं।
श्री कृपालुजी महाराज का जन्म 1922 में शरद पूर्णिमा की रात उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के मनगढ़ गांव में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनका जन्म नाम राम कृपालु त्रिपाठी था, लेकिन उनकी असाधारण प्रतिभा ने उन्हें कम उम्र में ही विशेष बना दिया।
बचपन से ही उनकी रुचि अध्ययन और आध्यात्मिक चिंतन में थी। 15 साल‘व्याकरणाचार्य’ की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद 1942 में काव्यतीर्थ और 1943 में दिल्ली विद्यापीठ से आयुर्वेदाचार्य की डिग्री प्राप्त की।
उन्होंने केवल ढाई वर्षों में 18 वर्ष की शिक्षा पूरी की। इस दौरान वे न केवल शास्त्रों में पारंगत हुए, बल्कि अखंड संकीर्तन और भक्ति भजनों का भी अध्ययन किया।
16 साल की आयु में उनकी आध्यात्मिक यात्रा एक नए मोड़ पर पहुंची। वे राधा-कृष्ण के प्रति अगाध प्रेम में इतना लीन हो गए कि चित्रकूट के घने जंगलों की ओर निकल पड़े। चित्रकूट, जो भगवान राम और सती अनुसुइया से जुड़ा हुआ है, वहां उन्होंने परमहंस की अवस्था में कुछ दिन बिताए।
1957 में काशी विद्वत परिषद ने उन्हें शास्त्रार्थ के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने 10 दिनों तक वैदिक संस्कृत में प्रवचन दिए। उनकी विद्वता और ज्ञान को देखकर परिषद ने सर्वसम्मति से उन्हें ‘जगद्गुरु’ की उपाधि प्रदान की।
कृपालुजी महाराज की शिक्षाएं प्रेम, भक्ति और मानवता के मूल मंत्र पर आधारित हैं। उन्होंने कहा कि सच्ची भक्ति वह है जो मनुष्य को ईश्वर से जोड़ती है और उसे जीवन में शांति और संतोष देती है।
श्री कृपालुजी महाराज की महत्वपूर्ण देन में से एक प्रेम मंदिर है, जिसका निर्माण 2001 में शुरू हुआ और 2012 में उद्घाटन हुआ। इस मंदिर में श्री राधा-गोविंद और श्री सीता-राम की पूजा की जाती है।
नवंबर 2013 में उन्होंने अपनी प्रकट लीलाओं को समाप्त किया, लेकिन उनके अनुयायी मानते हैं कि उनकी आत्मा आज भी उनके प्रवचनों और शिक्षाओं में जीवित है। लाखों अनुयायी उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में उतार रहे हैं।