क्या 2025 में भारत के विभिन्न हिस्सों में भीड़ ने कानून को ताक पर रखा?
सारांश
Key Takeaways
- धार्मिक प्रतीकों के विवाद से उत्पन्न तनाव।
- अफवाहों का हिंसा में रूप लेना।
- कई स्थानों पर पुलिस की कार्रवाई की आवश्यकता।
- कानून-व्यवस्था की स्थिति में गिरावट।
- समाज में एकता और सहिष्णुता की आवश्यकता।
नई दिल्ली, 29 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। वर्ष 2025 में भारत के विभिन्न हिस्सों में कई कारणों से विवाद और तनाव की घटनाएं चर्चा का विषय बनी रहीं। कहीं धार्मिक प्रतीकों और पोस्टरों को लेकर संघर्ष हुआ, तो कहीं अफवाहों ने हिंसक रूप धारण कर लिया। राजस्थान के चौमूं से लेकर उत्तर प्रदेश के कानपुर और बरेली, और फिर नागपुर, इंदौर, पश्चिम बंगाल और लद्दाख तक समय-समय पर ये विवाद कानून-व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती बन गए। कई स्थानों पर पुलिस और सुरक्षाबलों को स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कठोर कदम उठाने पड़े।
हाल की घटना राजस्थान के चौमूं में सामने आई। शनिवार को जयपुर के निकट चौमूं कस्बे में एक धार्मिक स्थल के बाहर रेलिंग लगाने को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ, जो बाद में हिंसा में बदल गया। बस स्टैंड क्षेत्र में एक मस्जिद के पास 45 वर्षों से सड़क किनारे रखे पत्थरों को सहमति से हटाया गया था। हालांकि, अगले दिन जब रेलिंग लगाने का कार्य आरंभ हुआ, तो कई निवासियों ने विरोध किया। देखते ही देखते यह विरोध हिंसा में तब्दील हो गया, लेकिन पुलिस ने त्वरित कार्यवाही करते हुए स्थिति को काबू कर लिया।
26 सितंबर को उत्तर प्रदेश के बरेली में 'आई लव मोहम्मद' जैसे पोस्टरों को लेकर हिंसा हुई थी। जुमे की नमाज के बाद शहर में तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई। बड़ी संख्या में लोग 'आई लव मोहम्मद' के पोस्टर लेकर एकत्र हुए। इस दौरान कुछ लोगों के विरोध के कारण माहौल बिगड़ गया और दोनों पक्षों के बीच पत्थरबाजी शुरू हो गई। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा।
इस विवाद की शुरुआत 4 सितंबर को उत्तर प्रदेश के कानपुर से हुई थी। पुलिस ने 25 से अधिक व्यक्तियों को हिरासत में लिया और 15 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। यह मामला केवल कानपुर तक सीमित नहीं रहा, बल्कि बरेली सहित अन्य क्षेत्रों और पूरे देश में तनाव का कारण बना। यह विवाद लगभग एक महीने तक समाचारों में छाया रहा।
2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग होकर केंद्र शासित प्रदेश बने लद्दाख में 24 सितंबर को सुरक्षाबलों के बीच झड़प में चार प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई, जबकि 70 अन्य घायल हुए थे। 10 सितंबर को सोनम वांगचुक ने लेह शहर में क्षेत्र को छठी अनुसूची में शामिल करने, राज्य का दर्जा देने और लद्दाख के संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा की मांग को लेकर अनशन शुरू किया था। 24 सितंबर को सोनम ने तब अपना अनशन तोड़ा, जब शहर में बड़े पैमाने पर हिंसा शुरू हो गई।
लेह में अनियंत्रित भीड़ ने सुरक्षाबलों पर पथराव किया और सीआरपीएफ के एक वाहन में आग लगा दी। भाजपा कार्यालय और स्थानीय संस्थान के कार्यालय में भी आगजनी की गई। हालात बेकाबू होने पर सुरक्षा बलों ने फायरिंग की, जिससे चार प्रदर्शनकारियों की मौत हुई।
पश्चिम बंगाल में 11 अप्रैल को शमशेरगंज के जाफराबाद में उपद्रवियों ने तोड़फोड़ की और कई घरों में आग लगा दी। आरोप था कि टीएमसी के पार्षद ने हिंसा भड़काई थी। इस दौरान जाफराबाद के अलावा सूती, धुलियां और जांगीपुर जैसे क्षेत्रों में भी हिंसा हुई।
17 मार्च को नागपुर में एक अफवाह के कारण विवाद उत्पन्न हुआ। क्षेत्र में यह अफवाह फैली कि औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग को लेकर प्रदर्शन के दौरान एक धार्मिक किताब की पंक्तियां लिखी चादर को जलाया गया। इसके बाद एक वर्ग भड़क गया और शहर के कई इलाकों में पथराव और आगजनी की घटनाएं हुईं, जिसके बाद कर्फ्यू लगाना पड़ा।
हिंसा में फहीम खान को मुख्य आरोपी माना गया। एफआईआर के अनुसार, उसने भीड़ इकट्ठा कर पुलिस थाने के बाहर प्रदर्शन किया और लोगों को भड़काया। आरोप है कि उसने पत्थरबाजी की साजिश रची, जिसके लिए पहले से पत्थर जमा किए गए थे।
9 मार्च को इंदौर के महू में चैंपियंस ट्रॉफी में भारत की जीत के बाद उत्सव मना रहे लोगों पर पथराव किया गया। इस दौरान कुछ अराजक तत्वों ने पथराव और आगजनी की। इस हिंसा में 6 लोग घायल हुए जबकि दो दुकानों और कई वाहनों को आग के हवाले किया गया।