क्या बाबा हरभजन सिंह की आत्मा आज भी नाथूला दर्रे पर सैनिकों की रक्षा करती है?

सारांश
Key Takeaways
- बाबा हरभजन सिंह की कहानी भक्ति और देशभक्ति का प्रतीक है।
- उनकी आत्मा आज भी सैनिकों की सुरक्षा करती है।
- स्मारक श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है।
- बाबा मंदिर तक पहुँचने के लिए 50 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं।
- श्रद्धालु यहाँ आशीर्वाद के लिए पानी की बोतल चढ़ाते हैं।
नई दिल्ली, 10 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। एक ऐसे देश में जहां की पौराणिक कथाएं समाज के ताने-बाने का अभिन्न हिस्सा हैं, भारतीय सेना के एक वीर सैनिक बाबा हरभजन सिंह की कहानी भक्ति और देशभक्ति की अनूठी मिसाल प्रस्तुत करती है। इनकी गाथा और किंवदंतियाँ मिलकर एक ऐसी अद्भुत कहानी बनाती हैं जो वहां तैनात सैनिकों के लिए आशा की किरण है और यात्रियों के लिए एक दिलचस्प अनुभव।
हरभजन सिंह, जिन्हें उनके साथी सैनिक स्नेह से ‘बाबा’ कहते थे, भारतीय सेना की 23वीं पंजाब रेजिमेंट में एक सैनिक के रूप में सेवा कर रहे थे। पंजाब के एक छोटे से गाँव में जन्मे, हरभजन सिंह का 11 सितंबर 1968 को नाथूला दर्रे के पास रहस्यमय परिस्थितियों में निधन हो गया। उनके असामयिक निधन के बाद, उनके साथी सैनिकों और अनुयायियों ने विभिन्न रूपों में उनकी उपस्थिति का अनुभव करना शुरू कर दिया।
कहा जाता है कि बाबा हरभजन सिंह की आत्मा नाथूला दर्रे पर तैनात सैनिकों पर ध्यान रखती है, उन्हें दुर्गम रास्तों में मार्गदर्शन करती है और उनके सुरक्षा और कल्याण की सुनिश्चितता करती है। 'इनक्रेडिबल इंडिया.जीओवी.इन' की वेबसाइट पर इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का उल्लेख मिलता है।
इस किंवदंती के बारे में सिक्किम सरकार का पर्यटन और नागरिक उड्डयन विभाग भी यही जिक्र करता है। इसकी वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, कहा गया है कि 1968 में सीमा पर गश्त के दौरान लापता हुए हरभजन सिंह ने अपने साथियों के सपनों में आकर अपनी मृत्यु की जानकारी दी और अपनी समाधि बनाने की इच्छा व्यक्त की। उनके निर्दोष निर्देश पर उनकी देह मिली और उनकी स्मृति में समाधि स्थापित की गई, जो धीरे-धीरे तीर्थ स्थल बन गया। श्रद्धालु यहाँ पानी की बोतल चढ़ाते हैं, जिसे कुछ दिनों बाद आशीर्वाद के रूप में वापस ले जाते हैं।
पुराना बाबा मंदिर, जहां हरभजन सिंह तैनात थे, तक पहुँचने के लिए 50 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। यह बंकर वह स्थान है जहां बाबा ने अपनी सेवा दी थी। हालांकि, पर्यटकों की सुविधा के लिए, कुपुप-गनाथंग रोड और मेनमेचो झील की ओर जाने वाले रास्ते पर एक नया बाबा मंदिर बनाया गया है, जिसे पर्यटक बड़ी संख्या में देखने आते हैं।
बाबा हरभजन सिंह का स्मारक 1983 में सिक्किम के गंगटोक में चांगू झील (त्सोम्गो झील) के पास उनकी निस्वार्थ सेवा और कर्तव्य के प्रति अटूट समर्पण के सम्मान में स्थापित किया गया था। इस स्मारक में बाबा हरभजन सिंह की एक कांस्य प्रतिमा और उनकी उपस्थिति का प्रतीक एक खाली बिस्तर रखा गया है।
हरभजन सिंह के चमत्कारी कारनामों को मिथक का दर्जा प्राप्त है, लेकिन समाचार लेखों में यह जिक्र भी मिलता है कि बाबा हरभजन सिंह के मंदिर में एक कमरा है, जिसे रोज़ाना साफ किया जाता है। वहाँ उनकी वर्दी और जूते रखे जाते हैं। रोज़ाना सफाई के बावजूद, जूतों में कीचड़ और बिस्तर की चादर पर सिलवटें मिलती हैं।
इस तरह सिक्किम के गंगटोक में स्थित बाबा हरभजन सिंह स्मारक, राष्ट्र सेवा में बाबा हरभजन सिंह जैसे वीर सैनिकों के बलिदानों की मार्मिक याद दिलाता है। यह केवल एक स्मारक नहीं, बल्कि आस्था, भक्ति और देशभक्ति का प्रतीक है, जो यहाँ आने वाले सभी लोगों में श्रद्धा और प्रशंसा का संचार करता है।